भोपाल। एक शहर जिसमें तंग गलिया ही नहीं...गलियों में रहने वाले शायर भी उसकी शिनाख्त हैं. एक ऐसा शहर जिसे शेरों में बांधा है इसी शहर के बाशिंदों ने. एक शहर जिसमें रहने वाले शायरों की फेहरिस्त बेगमों के दौर से शुरु होती है और सिलसिला अब तक जारी है. एक शहर जिसके शायर अपने नाम के साथ लिए चलते हैं अपने शहर का नाम....तखल्लुस भोपाली लगाते हैं. तो भोपाल गौरव दिवस पर जानिए कि खुद को पहले भोपाली की पहचान देने वाले कौन से थे ये शायर.....भोपाल को लेकर इन शायरों ने लिखे कौन से अशआर...और देश दुनिया की नामचीन हस्तियों ने क्या कहा था भोपाल के लिए.
बासिद भोपाली से मंजर भोपाली....ये शायर भोपाली:वैसे शेरो-शायरी का शौक नवाबी दौर से ही शुरु हो गया था. लेकिन खास वो शायर जिन्होंने अपने नाम के साथ भोपाली तखल्लुस लगाया उन शायरों की भी लंबी फेहरिस्त है. इनमें बासिद भोपाली, वकील भोपाली, शाहिद भोपाली, साहिर भोपाली, सिराज मीर खां सेहर भोपाली, असद भोपाली, शैरी भोपाली, युसूफ कैसर भोपाली, मंजर भोपाली जैसे शायर जिन्होंने अपने शहर की मोहब्बत को अपने तखल्लुस के साथ हमेशा से जोड़कर रखा. इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी कहते हैं कि ''भोपाल में शायरी का शौक या कहें की दौर तो बेगमों के जमाने से ही शुरु हो गया था. लेकिन फिर ये आलम हुआ कि हर गली में एक शायर. खास बात ये है कि यहां शायर ज्यादा तादात में होने के बावजूद उनकी शायरी बहुत आला दर्जे की रही. केवल शायर नहीं जो सुनने वाले भी हैं, उनका भी स्तर ऐसा रहा कि लोग भोपालियों के सामने शायरी पढ़ने में खौफ खाते थे कि कोई कमजोर शेर ना निकल जाए.
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कैसे-कैसे शेरों में बंधा भोपाल...सुनिए
सैयद खालिद गनी साहब के पास उन तमाम शायरों की शायरी का कलेक्शन मौजूद है, जिसमें इन शायरों ने भोपाल को अपनी शायरी में दर्ज किया है.
एक गुमनाम शायर का ये शेर सुनिए जिसमें भोपाल को बांधा गया है.
भोपाल की ताकत को दुनिया को दिखा देंगे,
हिटलर तेरी तोपों में हम बांस चला देंगे