भोपाल। 1984 के भोपाल गैस त्रासदी मामले में पीड़ितों के लिए मुआवजे का मसला खत्म होता नहीं दिख रहा है. पीड़ितों के लिए संघर्ष कर रहे स्वयंसेवी संगठनों द्वारा यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों से 7 हजार 844 करोड़ रुपए की अतिरिक्त मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है. इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए NGO's ने मांग की है कि सरकार ही अब पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दे.
नहीं मिला न्याय:भोपाल गैस त्रासदी हादसे के पीड़ित संगठनों ने ऑनलाइन उपलब्ध कराए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. इन्होंने फैसले में कई गलतियां होने की बात कही है. इनका कहना है कि जजों का झुकाव पहले से ही यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) के पक्ष में था. बता दें कि गैस पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की याचिका को बेंच ने बीती 14 मार्च को खारिज कर दिया था.
एनजीओ कर रहे मदद: शीर्ष अदालत ने पिछले हफ्ते गैस त्रासदी के पीड़ितों को अधिक मुआवजा देने के लिए यूसीसी की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7 हजार 844 करोड़ रुपए की मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को खारिज कर दिया था. इस हादसे में 3 हजार से अधिक लोग मारे गए थे और पर्यावरणीय क्षति भी हुई थी. पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले गैर सरकारी संगठन (NGO) भी सक्षम अदालतों में जीवित बचे लोगों की दूसरी पीढ़ी के दावों को लेकर केस लड़ रहे हैं.
गैस त्रासदी मामले में न्यायालय का इग्नोरेंस: भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने पीटीआई-भाषा को बताया कि हम कई मामलों में सुधारात्मक याचिका पर 14 मार्च के फैसले की कड़ी निंदा करते हैं. अब हम सरकार से पीड़ितों को अतिरिक्त राहत के साथ मुआवजा देने की मांग करेंगे. उन्होंने कहा कि संगठन जीवित बचे लोगों की दूसरी पीढ़ी की ओर से उनके लिए न्याय पाने सक्षम अदालतों में दावे दायर करने पर भी विचार कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि न्यायाधीशों ने इस बुनियादी तथ्य के बारे में "अनभिज्ञता" प्रदर्शित की है कि UCC के खतरनाक कचरे से भोपाल में भूजल का प्रदूषण 1984 की गैस आपदा से पहले का है. उन्होंने इस बात को नजरअंदाज किया है कि मौजूदा संदूषण UCC द्वारा आपदा से पहले और बाद में जहरीले कचरे के असुरक्षित डंपिंग के कारण हैं. ढींगरा ने आरोप लगाया कि अदालत द्वारा जमीन को उसकी मूल स्थिति में वापस करने की शर्त को भी नजरअंदाज कर दिया गया, जिसके तहत कंपनी ने पट्टे पर जमीन ली थी. रशीदा बी अध्यक्ष, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन तर्कों को नजरअंदाज कर दिया कि UCC ने फरवरी 1989 में आपदा को लेकर मामले को निपटाने के लिए धोखाधड़ी के तरीकों का इस्तेमाल किया था.