भोपाल।अच्छा हुआ जो तुमने इस दुनिया में आंखे खोलने से पहले ही मुंह मोड़ लिया. जो दुनिया तुम्हें वक्त रहते जिंदगी न दे पाई. न मौत के बाद आखिरी सफर का कोई इंतजाम था उसके पास. मानवता भी कितनी बार शर्मसार होगी. पत्थर रखिए अपने सीने पर और उस बाप की हिम्मत को सलाम कीजिए कि जिसने अपने मासूम बच्चे की लाश को मोटरसाईकिल की डिग्गी में सहेजना पड़ा. इलाज के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य और अस्पताल दर अस्पताल दौड़ा रहे सिस्टम में जिंदगी की कीमत तो थी ही नहीं, लाश को घर ले जाने एम्बुलेंस भी नहीं मिल पाई. घटना सिंगरौली जिले की है. लेकिन पहली नहीं मुरैना में आठ बरस के बच्चे ने दो बरस के भाई की लाश को शव वाहन के लिए दो घंटे सड़क पर संभाला था. दमोह में कचरा गाड़ी में लाश अंतिम संस्कार के लिए पहुंचाई गई थी. (child death) (how many times will humanity be ashamed) (innocent child body in diggy of motorcycle)
जहां खिलौने होने थे वहां रखी थी मासूम की लाशःस्वास्थ्य सेवाओं का डंका बजाते यूपी और एमपी की कलई खोलती है ये घटना. यूपी के सोनभद्र जिले के रहने वाले दिनेश अपनी पत्नि की डिलेवरी के लिए एमपी के सिंगरौली आए. फिर सिंगरौली में जिला अस्पताल से निजी अस्पताल की दौड़ में जाने कब कोख में ही बच्चे ने दम तोड़ दिया. आखिरी में जिला अस्पताल में हुई डिलेवरी और बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. जिस बच्चे को वक्त रहते इलाज नहीं मिला. मौत के बाद उसे एम्बुलेंस तक नहीं मिल पाई. मोटर साईकिल की जिस डिग्गी में एक बाप अपने मासूम के लिए खिलौने लाता उसमें मासूम बच्चे की लाश रखकर कलेक्ट्रेट पहुंचा कि बताइए बच्चे की लाश को अपने घर तक कैसे ले जाऊं. (bhopal man has become helpless)