भोपाल।कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पार्टी नेता राहुल गांधी इन दिनों ‘भारत जोड़ो यात्रा' में व्यस्त हैं. इस यात्रा को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों की राय सामने आई है. उनका मानना है कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा' कांग्रेस सांसद को एक गंभीर राजनेता के रूप में स्थापित करेगी और उन्हें अपनी मजबूत प्रतिद्वंद्वी भाजपा का मुकाबला करने में बड़ी मदद करेगी, लेकिन देश के विभिन्न राज्यों से गुजर रही इस यात्रा का स्थायी प्रभाव छोड़ने के लिए इसे किसी एक विशेष मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था.
20 नवंबर को एमपी में राहुल गांधी आएंगे: तमिलनाडु के कन्याकुमारी से सात सितंबर को शुरू हुई कांग्रेस की लगभग 150 दिनों की यह 3 हजार 570 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा सात नवंबर को महाराष्ट्र में प्रवेश कर गई थी (bharat jodo yatra mp). गांधी के नेतृत्व वाली यह यात्रा 20 नवंबर को मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में महाराष्ट्र से प्रवेश करने के बाद लगभग आधी दूरी तय कर लेगी. यात्रा जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में समाप्त होगी. इस यात्रा का लक्ष्य कांग्रेस पार्टी के संगठन को पुनर्जीवित करना है.
यात्रा का देश की राजनीति पर असर पड़ेगा:राज्य में यात्रा की तैयारियों की निगरानी कर रहे मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा का मार्ग किसी स्थान पर पार्टी की राजनीतिक कमजोरी या मजबूती को ध्यान में रखकर तय नहीं किया गया है. वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस यात्रा का देश की राजनीति पर असर पड़ेगा. पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान ने कहा कि, यात्रा का भारतीय राजनीति पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा और यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में राहुल गांधी को गैर-गंभीर राजनेता के रूप में चित्रित करने के भाजपा के सुनियोजित अभियान को प्रभावी ढंग से नुकसान पहुंचाएगी. इस यात्रा से राहुल गांधी देश के एक प्रमुख नेता के रूप में भी उभरेंगे.
भारत जोड़ो यात्रा किसी खास मुद्दे पर केंद्रित नहीं:पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी और ओलंपियन असलम शेर खान ने कहा कि, 'यह यात्रा भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा खेली जा रही है. विभाजन और ध्रुवीकरण की राजनीति के खिलाफ कांग्रेस की ओर से की जा रही है. राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं के भारी दबाव के बावजूद गांधी परिवार को पार्टी अध्यक्ष के पद से दूर रखने के अपने शब्दों पर कायम रहकर खुद को एक गंभीर राजनेता साबित किया है. पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से कर राहुल गांधी ने साबित कर दिया है कि वह भारतीय राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले गंभीर राजनेता हैं.' हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने तर्क दिया कि, इस राष्ट्रव्यापी पैदल यात्रा को अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा किसी खास मुद्दे पर केंद्रित नहीं है और इसलिए इसे उस तरह का जनसमर्थन नहीं मिल रहा है जैसा कि अतीत में इस तरह की यात्राओं को मिला करता था.
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दांडी यात्रा का जिक्र:राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने कहा कि, 'महात्मा गांधी ने नमक विरोधी कानून भंग करने के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ ध्यान केंद्रित करते हुए दांडी यात्रा निकाली या नमक सत्याग्रह किया और इसलिए इसे स्वेच्छा से भारी जनसमर्थन मिला था. उन्होंने कहा कि इसी तरह 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा पूरी तरह से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में बड़े पैमाने पर लामबंदी पर केंद्रित थी और उस समय इसे भी लोगों से भारी जनसमर्थन मिला था.'
कांग्रेस को मिलता काफी फायदा:आगे राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने कहा कि, 'कांग्रेस की यात्रा सांप्रदायिकता और नफरत से लड़ने जैसे विशिष्ट मुद्दों पर केंद्रित होनी चाहिए थी. इससे पार्टी को काफी फायदा मिलता और आम लोगों से भारी समर्थन मिल सकता था.' वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई का मानना है कि. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में दम नहीं है और उन्होंने इसे गुजरात और हिमाचल प्रदेश में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़ने की कोशिश की. कमलनाथ ने कहा, 'भारत जोड़ो यात्रा का मार्ग किसी स्थान पर पार्टी की राजनीतिक कमजोरी या मजबूती को ध्यान में रखकर तय नहीं किया गया है. भारत जोड़ो यात्रा केवल राजनीतिक यात्रा नहीं है. यह अनेकता में एकता की भारतीय संस्कृति और संविधान को बचाने की यात्रा है. राहुल गांधी ने यह यात्रा निकालने की इसलिए सोची क्योंकि हमारी संस्कृति और संवैधानिक संस्थाएं खतरे में हैं.'