भोपाल।पहले साईं बाबा अब भगवान सहस्त्रबाहु, बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री के विरोधियों की कतार भी लंबी हो रही है. साईं बाबा के मामले में उनकी खिलाफत महाराष्ट्र तक सिमटी थी, लेकिन हैहय क्षत्रीय समाज तो अब हिंदी भाषी राज्यों में धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ एफआईआर को आंदोलन की शक्ल में छेड़ चुका है. मध्यप्रदेश समेत छत्तीसगढ़ दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार में हैहय समाज की ओर से लगातार तीन दिन तक एफआईआर करवाई जा रही है. समाज ने धीरेन्द्र शास्त्री को अल्टीमेटम दिया था कि अगर उन्होंने माफी नहीं मांगी तो एफआईआर दर्ज की जाएगी. हैहय क्षत्रीय समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम नारायण ताम्रकार का कहना है कि उन्होंने माफी नहीं मांगी, इसलिए देश भर में समाज की ओर से एफआईआर शुरु हो चुकी है. इसके बाद आगे की रणनीति बनेगी. उधर भगवान परशुराम के देश में इकलौते कथावाचक का दावा है कि ये विवाद ही बेमानी है क्योंकि भगवान सहस्त्रबाहु और परशुराम को एक दूसरे से अलग करके देखे ही नहीं जा सकते. समाज की नाराजगी के बाद एमपी के बाद अब यूपी के कानपुर में धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है.
धीरेन्द्र शास्त्री का पूरे देश में विरोध:हैहय वंशी क्षत्रीय समाज भगवान सहस्त्रबाहू पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी से नाराज होकर देश में धीरेन्द्र शास्त्री का विरोध करेगा. हैहय क्षत्रीय समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम नारायण ताम्रकार के अनुसार देश भर में भगवान सहस्त्रबाहू के 20 करोड़ से ज्यादा अनुयायी हैं. अकेले मध्यप्रदेश में ही इनकी तादात पचास लाख है. सीहोर के कोतवाली थाने में पहली शिकायत दर्ज हुई और अब ये आंदोलन की शक्ल में पूरे देश में धीरेन्द्र शास्त्री का विरोध किया जाएगा. ताम्रकार के मुताबिक बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री ने सहस्त्रबाहु भगवान का जो अपमान किया है. उसके विरोध में हिंदी भाषी राज्यों में धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ एफआईआर का अभियान छेड़ा है. इसके बाद समाज बैठकर आगे की रणनीति तैयार करेगा.
परशुराम नारायण अवतार हैं तो सहस्त्रबाहु सुदर्शन: भगवान परशुराम के लंबे अध्ययन के साथ देश में परशुराम कथा के अकेले कथावाचक रमेश शर्मा अपने अध्ययन के आधार पर कहते हैं, भगवान परशुराम नारायण के अवतार हैं और नारायण के ह्रदय में जो सुदर्शन विराजा है. वो सहस्त्रबाहू है. दोनों अलग कैसे हुए. नारायण और सुदर्शन जैसे अलग नहीं. वैसे भगवान परशुराम और भगवान सहस्त्रबाहू को अभिन्न करके देखा नहीं जा सकता. असल में सहस्त्रबाहु जी और परशुराम जी की रचना प्रभु की लीला है. मनुष्यों को चाहिए कि वे भगवान की लीला को समझें. उसके संदेश को आत्मसात करें, लेकिन उनके युद्ध को रेखांकित किया जा रहा है.