भोपाल। लॉकडाउन में जीवन बचाने के प्रयासों में रोजगार व्यवस्था ठप होकर रह गई है. जिस कारण हर रोज कमा कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले ऑटो चालक परेशान हैं. ऑटो रिक्शा चालकों का जीवन अनलॉक होने के बाद भी पटरी पर नहीं आ पा रहा है, क्योंकि लोग संक्रमण के डर से ऑटो रिक्शा का उपयोग नहीं कर रहे हैं. दूसरा बीच-बीच में लॉकडाउन के चलते धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही जिंदगी फिर बेपटरी हो गई है.
कोरोना काल में परेशान ऑटो चालक लोग ऑटो रिक्शा का नहीं कर रहे उपयोग
जून में प्रदेश अनलॉक हुआ और ऑटो टैक्सी चालकों के लिए गाइडलाइन जारी कर संचालन की परमिशन भी दी गई, लेकिन कोरोना के डर से अनलॉक में भी ऑटो रिक्शा चालकों का धंधा पटरी पर नहीं आया है, क्योंकि संक्रमण के डर के कारण लोग ऑटो रिक्शा का सफर करने से कतरा रहे हैं, जिससे इनके पास दो पैसे आने भी कम हो गए.
बैंक बना रहे किश्त भरने का दबाव
दूसरी तरफ ज्यादातर लोगों ने ऑटो रिक्शा बैंक से लोन लेकर खरीदा है, धंधा चौपट होने के कारण ऑटो चालक लोन की किश्त भी अदा नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि सरकार ने पहले तीन माह और फिर तीन माह दो किश्तों में मोरटोरियम के जरिए लोन अदा करने की राहत तो दी, लेकिन ज्यादातर बैंक अपने ग्राहकों को इस सुविधा का लाभ देने से कतरा रहे हैं. बैंकों को डर है कि उनका लोन कहीं एनपीए में ना चला जाए, इसलिए बैंक मोरटोरियम व्यवस्था के बाद भी ऑटो चालकों पर नियमित किश्त भरने का दबाव बना रहे हैं.
ऑटो चालक लतीफ खान का कहना है कि उन्होंने ऑटो लोन की जरिए खरीदा था, बैंक वाले कह रहे हैं कि हम सरकार को नहीं जानते, हमसे ब्याज सहित पैसा वसूला जा रहा है. सरकार की राहत की बात करो, तो कह रहे हैं कि जिस ने बोला है, उससे जाकर बात करो, हमें तो हर महीने अपनी किश्त चाहिए, नहीं तो हम आपका सिबिल खराब कर देंगे.
सरकार से भी नहीं मिली कोई राहत
ऑटो चालकों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की तरफ से केवल 5 किलो गेहूं दिया गया था तो उसमें क्या हो रहा है. वो भी कब का खत्म हो चुका है. नेता आते हैं और 5 किलो गेहूं दे जाते हैं कि उबाल कर खा लो. ऐसे में हमारे आगे परिवार के भरण पोषण क संकट खड़ा हो गया है. चार महीने से धंधा बंद पड़ा है और अभी भी आर्थिक स्थिति सुधरी नहीं है.
जो सक्षम है, वह किश्तों को भरें
बैंकों के रवैये को लेकर वित्त विशेषज्ञ नवीन कुशवाहा बताते हैं कि 6 महीने की किश्त पहले 3 महीने और फिर 3 महीने सरकार की तरफ से राहत दी गई थी, कि ग्राहक चाहे तो 6 महीने किश्त भर के मोरटोरियम का फायदा ले सकता है. अगर वह सक्षम हैं और भर सकता है, तो उसकी कोशिश यह होनी चाहिए कि उसे भरना चाहिए और अगर वह सक्षम नहीं है, तो उसे सुविधा का लाभ लेना चाहिए. बस यही है कि भविष्य में 6 महीने की किश्त एडजस्ट की जाएंगी, जो ब्याज सहित होंगी, वह माफ नहीं की जाएंगी, उस किश्त को भरना जरूरी है. जहां तक बैंक के द्वारा किश्त के लिए दबाव बनाया जा रहा है, तो बैंक का सोचना भी गलत नहीं है कि जो व्यक्ति सक्षम है, वह किश्तों को भरें, लेकिन सक्षम नहीं है, तो वह सुविधा को ले सकता है. हालांकि बैंक किसी पर दबाव नहीं बना सकता है.
ग्राहकों का नहीं बिगड़ेगा सिविल
बैंक द्वारा ग्राहकों को सिविल बिगाड़ने की धमकी पर उनका कहना है कि इस बारे में अभी तक खुलकर चर्चा नहीं हुई है, पर मेरा मानना है कि इस अवधि का सिविल पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि जब कोई व्यक्ति भविष्य में लोन लेना चाहेगा, तो इस छह महीने की मोरटोरियम की जानकारी सभी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को होगी. बैंकों द्वारा ग्राहकों पर दबाव बनाए जाने का एक और कारण मानते हुए नवीन कुशवाहा कहते हैं कि लोन डूब ना जाए और कई लोग इस सुविधा का अनुचित लाभ ना उठा लें, इसलिए बैंक इस तरह की बात कर रहे हैं.