- मुरैना विधानसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस के लिए बीएसपी 'खतरा'
मुरैना विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी ने रघुराज कंषाना को प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस ने राकेश मावई पर दांव लगाया है. इसके अलावा बीएसपी ने रामप्रकाश राजौरिया को मैदान में उतारा है. मुरैना विधानसभा में कहने को तो बीजेपी का दबदबा रहा है, लेकिन कांग्रेस भी पीछे नहीं है, और बीएसपी ने चुनौती पेश की है.
मुरैना विधानसभा में 1962 से अभी तक 13 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें सात बार भाजपा और उसकी विचारधारा वाली पार्टी चुनाव जीती है, वहीं कांग्रेस का चार,बीएसपी और प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी का एक-एक बार इस सीट पर कब्जा रहा है.
कास्ट फैक्टर अहम
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुरैना विधानसभा सीट पर कास्ट फैक्टर सबसे अहम होता है. यही वजह ही राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों के चयन में इस बात का खास ख्याल रखा है. बीजेपी ने रघुराज सिंह कंषाना को उम्मीदरवार घोषित किया है, वहीं कांग्रेस ने राकेश मावई पर दांव लगाया है. वहीं बीएसपी ने ब्राह्मण नेता माने जाने वाले राम प्रकाश राजौरिया को मैदान में उतारा है.
- बीजेपी की परंपरागत सीट दिमनी पर बसपा कर सकती है सेंधमारी
दिमनी विधानसभा सीट पर बीजेपी ने गिर्राज दंडोतिया को प्रत्याशी बनाया है. वहीं कांग्रेस की ओर से रविंद्र सिंह तोमर चुनावी मैदान में है. बसपा की ओर से राजेन्द्र सिंह कंषाना चुनावी समर में है. अब तक के चुनावों में दिमनी विधानसभा सीट बीजेपी की परंपरागत सीटों में गिनी जाती है. यहां आठ बार भारतीय जनता पार्टी, दो बार निर्दलीय, दो बार कांग्रेस और एक बार बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली है. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री मंत्री बंशीलाल खटीक का दबदबा रहा. उन्होंने 5 बार दिमनी सीट पर जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंचे. इस सीट पर जातिगत समीकरण हावी हैं. बीजेपी के प्रत्याशी गिर्राज दंडोतिया के लिए ठाकुर वोट बैंक सबसे बड़ी चुनौती हैं, जो कांग्रेस प्रत्याशी रवींद्र तोमर के लिए एकजुट हो गए हैं. दलित वोट भी कांग्रेस तरफ जाता दिख रहा है तो दंडोतिया को ब्राह्मण वोटर्स को साधना ही मुश्किल हो रहा है.
- सुमावली सीट पर किसी एक दल का नहीं रहा प्रभाव, बड़ा फैक्टर है जातिगत समीकरण
उपचुनाव में सबसे ज्यादा पांच सीटें मुरैना जिले की हैं, जिनमें एक सीट सुमावली भी शामिल हैं. जहां उपचुनाव हो रहा है. सुमावली सीट कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते ऐदल सिंह कंषाना के इस्तीफे से खाली हुई हैं. बसपा का प्रभाव होने की वजह से इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है.
सुमावली विधानसभा क्षेत्र में अब तक हुए 10 विधानसभा चुनावों में कोई भी राजनीतिक दल इस क्षेत्र को अपना गढ़ नहीं बना सका. सुमावली में अब तक तीन-तीन बार कांग्रेस और बीजेपी को जीत मिली है, तो दो बार बहुजन समाज पार्टी और एक-एक बार जनता दल और जनता पार्टी के प्रत्याशी ने जीत का स्वाद चखा है. जबकि इस बार भी मुकाबला कांटे का दिख रहा है.
सुमावली के जातिगत समीकरण
चंबल अंचल की सीट होने के चलते यहां जातिगत समीकरण सबसे अहम माने जाते हैं. सुमावली में गुर्जर समुदाय के सबसे ज्यादा वोटर हैं. जबकि कुशवाहा, क्षत्रिए और ब्राह्यण वोटर भी यहां प्रभावी भूमिका में रहते हैं.अब तक सबसे ज्यादा 6 बार गुर्जर समुदाय के नेता इस सीट से विधायक बने हैं. इसलिए इस बार भी बीजेपी ने गुर्जर तो कांग्रेस ने कुशवाहा समुदाय के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. जबकि बसपा ने ब्राह्यण प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया है.
- जौरा सीट पर जातिगत समीकरण बड़ा फैक्टर, हर बार होता है परिवर्तन
ये सीट कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन से खाली हुई है. इस सीट पर बीजेपी ने पूर्व विधायक सूबेदार सिंह सिकरवार रजौधा पर भरोसा जताया है. तो वहीं कांग्रेस ने युवा चेहरा और जमीनी स्तर पर काम करने वाले पंकज उपाध्याय पर दांव लगाया है. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने दो बार बसपा से विधायक रहे सोने राम कुशवाह को उम्मीदवार बनाया है. लिहाजा बसपा के प्रभाव होने की वजह से इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है.
जौरा सीट का जातिगत समीकरण