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प्रदेश की वित्तीय जरुरतों के मद्देनजर बजट प्रबंधन में बदलाव जरुरीः एमएस आहूवालिया

भोपाल के मिंटो हाल में 'परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक वित्त व्यवस्था' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस विषय पर योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष एमएस अहलूवालिया ने व्याख्यान दिया.

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परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक वित्त व्यवस्था विषय पर वर्कशाप

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Published : Feb 18, 2020, 7:55 PM IST

भोपाल। योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष एमएस अहलूवालिया ने राज्यों की बढ़ती वित्तीय जरूरतों और वित्तीय सीमाओं को देखते हुए वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन कानून को नये संदर्भों में दोबारा लिखने की जरूरत बताई है. उन्होंने कहा कि, सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण आर्थिक अधोसंरचना परियोजनाओं में बजट की कमी को दूर करने के लिए निजी व सार्वजनिक भागीदारी का कानून बनाने पर भी विचार करना चाहिए. आहूवालिया मिंटो हाल में 'परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक वित्त व्यवस्था' विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे. जिसका आयोजन वित्त विभाग ने किया था.

इस दौरान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि, पूरे विश्व का आर्थिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है. लिहाजा वित्तीय संस्थाओं और बजट व्यवस्था करने वाली सरकारों को भी अपनी सोच में परिवर्तन लाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि, भारत जैसे देश में महत्वाकांक्षी युवाओं का बड़ा समुदाय रहता है और उसकी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए ज्यादा बजट संसाधनों की आवश्यकता है. लगातार बदल रहे भारत और राज्यों के लिए वित्तीय व्यवस्थाएं करना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. इसलिए बैंकों, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्रों को परिवर्तन के साथ स्वयं को बदलने की आवश्यकता है. बजट निर्माण की प्रक्रिया से अलग हटकर वैकल्पिक व्यवस्था और नवाचार विचारों पर काम करने की जरूरत है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि, मध्य प्रदेश जैसे राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं, लेकिन उनके आधार पर आर्थिक गतिविधियों का विस्तार करने के प्रयासों में कमी रहती है. कई देशों के बजट व्यवस्थाएं भी जवाबदारी व बजट प्रबंधन जैसे कानूनों के बिना भी अच्छी स्थिति में हैं.

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अहलूवालिया ने कहा कि, योजनाएं बनाना, उसके लिए बजट का प्रावधान करना और समय रहते उन्हें उपलब्ध संसाधनों में पूरा करना, पूरे विश्व में एक मान्य प्रक्रिया है. ये भी तथ्य है कि, सरकारों के वित्तीय संसाधन सीमित हैं, लेकिन परियोजनाएं महत्वाकांक्षी. सरकारों के पास सिर्फ आर्थिक अधोसंरचना परियोजनाओं के अलावा सामाजिक जिम्मेदारियों के कई कार्यों को प्राथमिकता देनी होती हैं. दोनों काम एक साथ पूरा करने में कई चुनौतियां सामने आती हैं. उन्होंने कहा कि, सिर्फ बजट संसाधनों पर निर्भर रहने की परंपरा से हटकर सोचने की जरूरत है.

ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र की ओर देखना पड़ता है. निजी क्षेत्र किसी भी प्रकार का खतरा उठाने से बचता है, जबकि सरकार हानि और लाभ से परे जनकल्याण के उद्देश्य के लिए समर्पित होती हैं. उन्होंने कहा कि, मध्यप्रदेश के वन संसाधनों की सघनता को देखते हुए इसके आधार पर बजट संसाधन जुटाने पर भी विचार किया जा सकता है. क्षेत्र विशेष की अधोसंरचना परियोजनाओं के लिए भी ये प्रक्रिया अपनाई जा सकती है.

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