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पारुल के पाला बदलने पर सुर्खियों में 'सुरखी', कांग्रेस के चक्रव्यूह में फंसे शिवराज के मंत्री

कांग्रेस में पारुल साहू की आमद से सुरखी विधानसभा सीट हाइप्रोफाइल हो गई है, इससे गोविंद सिंह राजपूत को सुरखी विधानसभा में कड़ी टक्कर मिलने वाली है.

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पारुल साहू और गोविंद सिंह राजपूत

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Published : Sep 19, 2020, 3:53 PM IST

Updated : Sep 19, 2020, 7:01 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश उपचुनाव के चलते सियासी गलियारों में उठापटक जारी है. बीजेपी की पूर्व विधायक पारुल साहू के कांग्रेस में शामिल होने से सुरखी विधानसभा सीट पर कड़ा मुकाबला हो सकता है. पारुल की कांग्रेस में एंट्री से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर गया है, तो बीजेपी में पशोपेश की स्थिति बन गई है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास सिपहसालार गोविंद सिंह राजपूत को सुरखी विधानसभा में कड़ी टक्कर मिलने वाली है.

पारुल साहू की कांग्रेस में एंट्री

सुरखी विधानसभा से भाजपा की विधायक रहीं पारुल साहू ने शुक्रवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया है. पारुल की घर वापसी बता रही है कि आगामी उपचुनाव की सभी सीटों में सुरखी विधानसभा सीट का मुकाबला सबसे प्रतिष्ठा पूर्ण होगा. खास बात यह है कि गोविंद सिंह राजपूत के बाहुबल-धनबल का मुकाबला करने में पारुल साहू हर तरह से सक्षम हैं, जिसके चलते सुरखी विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी टक्कर देखने को मिलेगी.

एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे कमलनाथ

दरअसल, सिंधिया समर्थक बागी विधायकों को सबक सिखाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपहसालार शिवराज सरकार के परिवहन एवं राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और मंत्री तुलसी सिलावट को सबक सिखाने के लिए कमलनाथ हर स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. पारुल साहू की कांग्रेस में आमद इन्हीं प्रयासों का नतीजा है.

गोविंद राजपूत को पहले भी दे चुकी हैं शिकस्त

जहां तक पारुल साहू की पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें, तो पारुल साहू का परिवार कांग्रेस पृष्ठभूमि का है. उनके पिता संतोष साहू सागर जिले की बंडा सीट से कांग्रेस विधायक रह चुके हैं. संतोष साहू ने बीजेपी के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री हरनाम सिंह राठौर को प्रतिष्ठा पूर्ण मुकाबले में हराया था. हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में सागर संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट की दावेदारी कर रहे संतोष साहू असलम शेर खान को सागर से टिकट दिए जाने पर नाराज हो गए थे और उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया था.

2013 में बेटी की करवाई थी राजनीति में एंट्री

संतोष साहू भाजपा की राजनीति में खुले तौर पर सक्रिय नजर नहीं आए, लेकिन 2013 में जब सुरखी विधानसभा से गोविंद सिंह राजपूत को टक्कर देने के लिए बीजेपी के पास कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं था. तब बीजेपी ने संतोष साहू की बेटी पारुल साहू को मैदान में उतारा. जहां कड़ी टक्कर के बाद पारुल साहू ने गोविंद सिंह राजपूत को शिकस्त दी. वहीं अब कांग्रेस ने भी बीजेपी के उसी दाव को चलकर गोविंद सिंह राजपूत को कड़ी टक्कर दी है.

गोविंद ने पारुल पर की थी अभद्र टिप्पणी

एक तरफ कांग्रेस विधायकों की गद्दारी का माहौल बनाने में कांग्रेस सफल रही है, तो वहीं गोविंद सिंह राजपूत के बाहुबल-धनबल से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने पारुल की एंट्री कराई है, जो गोविंद सिंह राजपूत का हर स्तर पर मुकाबला करने में सक्षम हैं. 2018 विधानसभा चुनाव के पहले गोविंद सिंह राजपूत ने पारुल साहू को दारूवाली विधायक कह दिया था. जिसके चलते उनकी काफी किरकिरी भी हुई थी.

पारुल ने किया एक घमंडी आदमी से मुकाबला

प्रदेश कांग्रेस के महासचिव और पूर्व विधायक नारायण प्रजापति पारुल की कांग्रेस में एंट्री को लेकर कहा कि सागर जिले में कांग्रेस को जान और ताकत साहू परिवार ने दिया है. पारुल का कांग्रेस में आना उनकी घर वापसी है. पारुल ने सुरखी में एक घमंडी आदमी से मुकाबला किया है. पारुल जानती है कि वह उसका घमंड कैसे चूर करेगी. क्षेत्र की जनता चाहती थी कि पारुल कांग्रेस में आए और क्षेत्र का विकास करें. पारुल साहू के आने से कांग्रेस को ताकत मिली है. अब सुरखी से कांग्रेस विधायक ही चुना जाएगा.

गोविंद सिंह राजपूत ने जनादेश को किया कलंकित

पूर्व मंत्री और सुरखी विधानसभा के प्रभारी विधायक लखन घनघोरिया का कहना है, सुरखी का जनमानस गोविंद सिंह के अहंकार से बहुत ज्यादा नाराज है. बीते दिनों गोविंद सिंह ने जनादेश को कलंकित करते हुए जनता की चुनी हुई सरकार को पलटने में अहम भुमिका निभाई है. स्वाभाविक रूप से कांग्रेस कार्यकर्ता उद्देलित था कि गोविंद सिंह राजपूत को कैसे सबक सिखाया जाए. पारुल की कांग्रेस में एंट्री से सुरखी विधानसभा को अपनी जागीर समझने वाले को सबक सिखाएंगे.

पारुल को जाने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता

पारुल साहू की कांग्रेस में सदस्यता को लेकर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, उनको भाजपा में काम नहीं करना था, अब कांग्रेस में करना है, तो कांग्रेस में करें, उनकी मर्जी है. भाजपा को कोई असर नहीं पड़ता है. उन्होंने कहा कि भाजपा कार्यकर्ता आधारित पार्टी है. बड़े-बड़े नेता पहले भी गए हैं, लेकिन बीजेपी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है. एक कार्यकर्ता के जाने से जितना दुख होना चाहिए, उतना दुख हमें होता है.

Last Updated : Sep 19, 2020, 7:01 PM IST

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