भोपाल। ये कितना अफसोसनाक है कि जो शख्स पूरी जिंदगी भोपाल गैस पीड़ितों के साथ इस शहर की हर मुश्किल में आवाज बना रहा, उसके जाने के बाद उसके परिवार के हिस्से आए मुसीबतों के पहाड़ के सामने उसका अपना परिवार तन्हा खड़ा है. अपने तीन बच्चों की बमुश्किल परवरिश कर पा रहीं सायरा जब्बार के एक बयान में कितना बड़ा सवाल है कि जब्बार साहब की खुद्दारी और ईमान की कीमत अब उनके बच्चे चुका रहे हैं. भोपाल गैस त्रासदी का चेहरा अब्दुल जब्बार की मौत के बाद से उनकी पत्नि सायरा और तीन बच्चे मुफलिसी और मुश्किलों के दौर से गुजर रहे हैं और हैरत की बात ये कि हर हाथ का साथ बन जाने वाले जब्बार भाई के अपने परिवार की खैर खबर लेने वाला भी कोई नहीं. ईटीवी भारत खास बातचीत के दौरान सायरा जब्बार अपने दिल का दर्द साझा किया. (Thanks to government for padmashree)
समाज सेवी अब्दुल जब्बार को पद्मश्री मिलने पर परिवार में खुशी, लेकिन आर्थिक तंगी से गुजर रहा परिवार
पद्मश्री के बजाए पेंशन दे देतेः गैस पीड़ितों के इंसाफ की लंबी लड़ाई और भोपाल में पर्यावरण के लिए किए गए कार्यों को लेकर अब्दुल जब्बार मरणोपरांत पद्मश्री से भी नवाजे गए. पत्नी सायरा पद्मश्री का प्रमाण पत्र और तमगा दिखाते हुए कहती हैं ये हासिल है. पूरी जिंदगी खपा देने के बदले ये मिला है बस. फिर कहतीं हैं पद्मश्री देने के लिए शुक्रगुजार हूं मैं सरकार की. उनके काम को सराहा इतनी इज्जत बख्शी. इससे बेहतर होता कि अगर पद्मश्री के बजाए मेरी पेंशन शुरु कर देते तो बच्चों की फीस तो भर जाती. जब्बार साहब की खुद्दारी खून में है मेरे बच्चों के. वो मुश्किल से जूझते रहेंगे पर कभी कहेंगे नहीं. वो उसी खुद्दारी से जी सकें इसलिए इतना चाहती हूं कि कुछ न हो सके तो मेरे बेटे को सरकारी नौकरी मिल जाए. बारहवीं का इम्तिहान दिया है इस साल. सायरा बताती हैं काम तो वो अभी से कर रहा है. पार्ट टाइम नौकरी करके घर का और अपना खर्चा निकालता है. (If government given pension it would have helpful)