भोपाल। यूं तो पार्ट-ए, पार्ट-बी और पार्ट-सी के रूप में आजादी के बाद से ही मध्य प्रदेश अस्तित्व में रहा है. इसमें महाकौशल, सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. लेकिन 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनने के बाद राज्य के पुनर्गठन के लिए मशक्कत तेज हुई. 1 नवंबर 1956 को संपूर्ण मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया.
34 महीने में मध्य प्रदेश का स्वरूप सामने आया था:दरअसल, देश की आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन को लेकर लंबी मशक्कत चली. राज्यों के पुनर्गठन के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. आयोग के सामने तमाम तथ्य और सिफारिशों को रखने के लिए पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में महाकौशल के नेताओं ने एक बैठक की, जिसमें निर्णय लिया गया कि महाकौशल मध्य भारत भोपाल और विंध्य प्रदेश के क्षेत्रों को जोड़कर ऐसे प्रदेश की रचना की जाए, जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की तरह हो. इन तमाम सिफारिशों को आयोग के समक्ष रखने का जिम्मा दुर्ग के घनश्याम सिंह गुप्त और द्वारका प्रसाद मिश्र को सौंपा गया था. तमाम सिफारिशों पर विचार विमर्श के बाद करीब 34 महीने में मध्यप्रदेश का स्वरूप सामने आया था.
इन क्षेत्रों को मिलाकर बना था मध्य प्रदेश:राज्यों के पुनर्गठन के लिए 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया था. इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति सैयद फजल अली और सदस्य डॉ. केएम पणिक्कर, पंडित हृदयनाथ कुंजरू थे. आयोग ने भाषा के आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश की. ब्रिटिश काल में प्रदेश को सेंट्रल इंडिया के नाम से जाना जाता था. इसमें महाकौशल सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. मध्य प्रदेश का अस्तित्व 1947 से ही था. उस समय मध्यप्रदेश को पार्ट ए, पार्ट बी और पार्ट सी में बांटा गया था.
- पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी, इसमें बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें थी.
- पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर, इंदौर थी पश्चिम की रियासतों को इसमें शामिल किया गया था.
- पार्ट-सी की राजधानी रीवा थी. इसमें विंध्य प्रदेश शामिल था.
इन चार जिलों के लिए कड़ी मशक्कत:मध्य प्रदेश के पुनर्गठन को लेकर बुंदेलखंड के चार जिलों के लिए मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन नेताओं में खींचतान चलती रही. बुंदेलखंड के चार जिले झांसी, बांदा, हमीरपुर और जालौन को प्रदेश के नेता अपने साथ रखना चाहते थे. इसके पीछे तर्क दिया गया था कि इससे बुंदेलखंड एक ही राज्य में आ जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत इसके लिए तैयार नहीं थे.