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पुण्यतिथि विशेष: तीखे व्यंग्यों के साथ चुटीले अंदाज में व्यवस्था की खामियां बताते थे हरिशंकर परसाई - भोपाल न्यूज

हरिशंकर परसाई की आज 63वीं पुण्यतिथि है. परसाई हिंदी के पहले रचनाकार थे, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के- फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा. हरिशंकर परसाई की पुण्यतिथि पर राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने श्रद्धांजलि अर्पित की है.

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Published : Aug 10, 2020, 11:34 AM IST

भोपाल। व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर, तीखे व्यंग्यों के द्वारा चुटीले अंदाज में व्यवस्था की खामियों और आम जन के दर्द को अभिव्यक्ति देने वाले हरिशंकर परसाई की आज 63वीं पुण्यतिथि है. परसाई ने व्यंग्य को हल्के-फुल्के होने के भाव से उठाकर नई पहचान दिलाई और लोकप्रिय बनाया. उनका निधन आज ही के दिन 10 अगस्त, 1995 को हुआ था. राज्यसभा सांसद और कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने हरिशंकर परसाई की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की है.

हरिशंकर परसाई का जन्म होशंगाबाद के जमानी में 22 अगस्त 1926 को हुआ था. परसाई हिंदी के पहले रचनाकार थे, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा. उनकी व्यंग्य रचनाएं हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं, बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने- सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा था.

सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन-मूल्यों के अलावा जीवन पर्यन्त विस्ल्लीयो पर भी अपनी अलग कोटिवार पहचान है. उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान-सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है. उनकी भाषा-शैली में खास किस्म का अपनापन महसूस होता है.

हरिशंकर परसाई की प्रमुख रचनाएं और कहानियां

  • संग्रह - हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव.
  • उपन्यास- रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल
  • संस्मरण- तिरछी रेखाएं.
  • लेख संग्रह- तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, उखड़े खंभे , सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं.
  • बस की यात्रा परसाई रचनावली

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