भोपाल। देश के सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले टाइगर स्टेट और लैपर्ड स्टेट मध्यप्रदेश में पिछले 9 सालों में 456 बाघ और तेंदुए दम तोड़ चुके हैं, इसमें कई बाघ और तेंदुओं को कभी करंट लगाकर तो कभी फंदा लगाकर मारा जा रहा है. बाघों की संख्या बढ़ने से टेरेटोरियल फाइट भी मौत की वजह बन रही है, हालांकि इन घटनाओं के बाद भी सुखद पहलू यह है कि प्रदेश की झोली में एक बार फिर टाइगर स्टेट का तमगा आ सकता है. बाघों की गिनती के दौरान मध्यप्रदेश के जंगलों से सुखद समाचार मिले हैं. माना जा रहा है कि इस बार प्रदेश में बाघों की संख्या साढ़े 600 तक जा सकती है, हालांकि 2022 की रिपोर्ट पेश होने में काफी देरी हुई है, 7 अप्रैल माह बाघ संरक्षण परियोजना के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं, इसी दिन यह रिपोर्ट पेश हो सकती है.
करंट लगातार बाघ-तेंदुओं की ली जा रही जान:जहां 3 मार्च को आज दुनिया विश्व वन्यजीव दिवस बना रही है, वहीं टाइगर और लैपर्ड स्टेट एमपी में लगातार की बाघ तेंदुओं की मौत की संख्या की वजह से इनकी सुरक्षा को लेकर सवाल उठते रहे हैं, पिछले 9 सालों में प्रदेश में बाघ और तेंदुओं की मौतें की संख्या चौंकाने वाली है. विधानसभा में कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया है कि "पिछले 9 सालों में करीब 465 बाघ और तेंदुओं की मौत हुई है."
- साल 2014 से 2018 के बीच प्रदेश में 115 बाघों की मौत हुई, जबकि इस दौरान 209 तेंदुए मारे गए.
- साल 2020 में प्रदेश में 19 बाघों की मौत हुई.
- साल 2021 में 26 और साल 2022 में 25 बाघों की मौत हुई है.
- इसी तरह साल 2020 में प्रदेश में 8 तेंदुओं की मौत हुई.
- साल 2021 में 14 और साल 2022 में 22 तेंदुओं की मौत हुई है.
- इस साल भी 15 फरवरी तक प्रदेश में 9 बाघों की मौत हो चुकी है.
क्यों हो रही बाघों की मौत:जीतू पटवारी को जवाब देते हुए सरकार ने बताया है कि कई बाघों की मौत आपसी लड़ाई में हुई तो कई की मौत विषेला पदार्थ खाने से, कई फंदे में फंसने का शिकार हुए तो, कईयों की मौत बिजली के करंट लगने से भी हुई है.