भोपाल। मध्यप्रदेश में करीब 32 प्रकार के पेड़ संकट की श्रेणी में हैं. प्रदेश के जंगलों में ये पेड़ विलुप्त होने की कगार पर आ गए हैं. जबकि इनमें से कई पेड़ों का औषधीय महत्व है. वन विभाग इन पेड़ों की प्रजातियों को बचाने के लिए बड़े स्तर पर इनके पौधे तैयार कर लगाने की कोशिश में जुटा है, ताकि इन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके. विभाग के रिटायर्ड अधिकारियों का कहना है कि इन पेड़ों को विलुप्त होने से बचाने के लिए वन अमले को भी पेड़ों की पहचान कराना जरूरी है.
प्रदेश में 32 पेड़ों की प्रजातियां संकट में मध्यप्रदेश में तकरीबन 216 प्रकार के वृक्षों की प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से कई पेड़ों की प्रजातियों की संख्या में कमी आई है. जबकि इनकी उपयोगिता लगातार बनी हुई है. वन विभाग के विशेषज्ञों की मानें तो वृक्ष प्रजातियों के घास में गंभीर बदलाव आ रहे हैं. इसी तरह करीब 32 प्रकार के पेड़ संकट की श्रेणी में आ गए हैं. जबकि इनमें से कई पेड़ों का औषधि महत्व भी है.
वन विभाग ऐसे संकटग्रस्त पेड़ों को बड़ी संख्या में रोपने की कोशिश में जुटा है. वन विभाग के प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल के मुताबिक ऐसे संकटग्रस्त पेड़ों को लगातार रोकने का काम किया जा रहा है. प्रदेश की नर्सरियों में पेड़ों के पौधे बड़ी संख्या में तैयार कराए जा रहे हैं. लोगों से भी अपील की जा रही है कि इन पौधों को रोपा जाए.
पेड़ों की यह प्रजातियां संकट में
- कर्कट, शल्यकर्णी, दहीमन और मैदा वृक्ष की प्रजातियां सबसे ज्यादा खतरे में है.
- धनकट, हडुआ, तमोली, चिरौंजी, सलई, धवा, हल्दु, अंजन, तिनसा, तिलवन, भिलमा, हर्रा, और भुड़कूट वृक्ष की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है.
- बीजा, गदहा, पलाश, लोध्र, गरुड़ और सोन पाठा प्रजातियों पर खतरा है.
- इनमें रोहिना, काला शीशम, कुल्लू, जहरमोहरा, अधकपारी, कुंभी, गब्दी, केड़क प्रजातियां संवेदनशील श्रेणी में रखी गई है.
- पाकर, कुचला, उदाल, कुंवारिन के वृक्ष ऐसे हैं जिन्हें अभी से नहीं बचाया गया तो आने वाले सालों में संकट की श्रेणी में आ जाएंगे.
क्या कहते हैं विभाग के रिटायर्ड अधिकारी
वन विभाग के रिटायर्ड अधिकारियों की मानें तो पेड़ों की कई प्रजातियों के संकट में आने के लिए आम लोगों का प्रकृति से दूर होना एक अहम कारण है. आम लोग गिने-चुने 8 से 10 पेड़ों के अलावा दूसरी पेड़ों की प्रजातियां को ही नहीं पहचानते. वन विभाग के रिटायर्ड अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता सुदेश बाघमारी कहते हैं कि संकट की श्रेणी में आए कई पेड़ों का औषधि महत्व है. शल्यकर्णी का उल्लेख चरक संहिता तक में मिलता है. यह घाव भरने का काम करता है. ऐसा ही महत्व दूसरे पेड़ों का है, लेकिन मौजूदा स्थिति में देखा जाए तो वन विभाग के अधिकांश मैदानी अमले को ही पेड़ों की प्रजातियों की जानकारी नहीं है. ऐसी स्थिति में आखिर कैसे पेड़ों को बचाया जा सकेगा. हालांकि ऐसे पेड़ों को बचाने के लिए प्रयास चल रहे हैं.