भोपाल। कोरोना संक्रमित मरीजों और संदिग्धों का इलाज करने के वाले डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ अपने बचाव के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई किट) का इस्तेमाल करते हैं. जिसमें ग्लव्स, मास्क और गोगल शामिल हैं. डॉक्टर्स पीपीई किट को केवल एक बार ही इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे एक बार उतारने के बाद दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे भी संक्रमण का खतरा रहता है. इसके साथ ही कोविड वार्ड से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट से भी संक्रमण का खतरा बना रहता है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि कोविड वार्ड और सर्वे-सैंपलिंग के बाद निकले बायो मेडिकल वेस्ट का ठीक से निष्पादन किया जाए.
राजधानी भोपाल में बायो मेडिकल वेस्ट के निष्पादन के लिए अलग से 3 स्तरीय विधि अपनाई जा रही है, ताकि इनसे किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमण ना फैले. भारत सरकार की गाइडलाइन के तहत ही कोविड19 का इलाज कर रहे अस्पतालों में बायो मेडिकल कचरे को निष्पादित किया जा रहा है. भोपाल के एम्स, हमीदिया, चिरायु अस्पताल, शासकीय होम्योपैथिक अस्पताल, जे के हॉस्पिटल, बंसल हॉस्पिटल समेत अब आयुष्मान भारत निरामयम में आने वाले अस्पतालों में कोविड-19 मरीजों को इलाज दिया जा रहा है. इन अस्पतालों में इस्तेमाल की गई पीपीई किट और अन्य बायो मेडिकल कचरे को किस तरह से निष्पादित किया जाए इसके लिए भारत सरकार की गाइडलाइन का पालन किया जा रहा है.
बायो मेडिकल कचरे के लिए राजधानी भोपाल में जो प्रकिया अपनाई जा रही है. उस बारे में नगर निगम कमिश्नर वीएस चौधरी ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइड लाइन के मुताबिक ही राजधानी भोपाल के कोविड सेंटर्स से निकले बायो मेडिकल वेस्ट का निष्पादन इंसीनरेटर में किया जा रहा है. भोपाल इंसीनरेटर संस्था से हमारा टाई अप है. यह संस्था क्वारेंटाइन सेंटर और कोविड सेंटर से निकले कचरे का प्रबंधन कर रही है.