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महाशिवरात्रि पर वनखंडेश्वर महादेव में कैसे होगी पूजा, क्या है इस मंदिर का इतिहास?

महाशिवरात्रि का पर्व श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है. साल 2022 में एक मार्च यानी की कल मंगलवार को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी. इस अवसर पर वन खंडेश्वर महादेव मंदिर पर कांवरियों की कतारें लगी रहेंगी. आइए जानते हैं क्या है भिंड के प्रसिद्ध मंदिर वनखंडेश्वर धाम का इतिहास. (Mahashivratri in Bhind)

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भिंड में वनखंडेश्वर महादेव मंदिर

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Published : Feb 28, 2022, 10:53 AM IST

भिंड।वनखंडेश्वर धाम उन प्रसिद्ध शिवालयों में से है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. 11वीं सदी का यह मंदिर भिंड मुख्यालय पर स्थित है. इस शिवलिंग की स्थापना और मंदिर का निर्माण पराक्रमी राजा पृथ्वीराज चौहान ने कराया था. महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर आइये आपको भी बताते हैं वनखंडेश्वर महादेव से जुड़ी रोचक जानकारियां. इसमें आपको मंदिर के इतिहास के बारे में भी हम बताएंगे.

वनखंडेश्वर धाम में महाशिवरात्रि पर भगवान का श्रृंगार

पृथ्वीराज चौहान ने कराया था मंदिर का निर्माण
वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के इतिहास की बात करें तो भिंडी ऋषि की तपोभूमि पर विराजे महादेव का इतिहास बेहद रोचक है. वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है. मंदिर के महंत पंडित वीरेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि 11वीं सदी में जब राजा पृथ्वीराज चौहान 1175 ई. में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने जा रहे थे. उस दौरान भिंड में उन्होंने डेरा डाला था. यहां अपनी सेना के साथ ठहरने के दौरान पृथ्वीराज चौहान को रात में सपना आया कि जमीन में शिवलिंग है. इसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने खुदाई करवाई तो शिवलिंग निकला. पृथ्वीराज ने इस शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया और देवताओं, शिल्पकारों द्वारा मंदिर का ऐतिहासिक मठ तैयार किया गया. जिस समय शिवलिंग की भिंड में स्थापना हुई थी तब यह पूरा क्षेत्र जंगल था, इसलिए शिवलिंग का नाम वनखंडेश्वर पड़ा.

सैंकड़ों सालों से प्रज्ज्वलित हैं अखंड ज्योति
वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के मठ में भोलेनाथ के पास सैकड़ों सालों से दो अखंड ज्योति भी जल रही हैं. इसके पीछे की कहानी बताते हुए पुजारी ने बताया कि पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल राजा से युद्ध में जीत हासिल की. जीत के बाद पृथ्वीराज चौहान भिंड लौटे और पूजन कर वनखंडेश्वर महादेव के मंदिर में दो अखंड ज्योति जलाई थी, वो करीब पिछले 846 सालों से आज तक निरंतर जल रही हैं. इनकी देखरेख के लिए अंग्रेजों के दौर में सिंधिया घराने ने दो पुजारियों की नियुक्ति की थी, जो मंदिर की देखरेख और अखंड ज्योत का ध्यान रखते थे. आज भी 2 पुजारी मंदिर में जल रही ज्योति की देखरेख करते हैं, इसकी मान्यता इतनी है की इसे अखंड बनाए रखने के लिए श्रद्धावान भक्त घी दान भी करते हैं.

महाशिवरात्रि पर भिंड के वनखंडेश्वर महादेव मंदिर में पूजा

1 और 15 को होता महादेव का अद्भुत श्रृंगार
वनखंडेश्वर महादेव की पूजा अर्चना का बहुत महत्व है. माना जाता है की भोलेनाथ से जो भी दिल से मांगोगे वनखंडेश्वर महाराज की कृपा से वह मनोकामना जरूर पूरी होती है. यही वजह है कि नेता, मंत्री हों या आम श्रद्धालु हर कोई भोलेनाथ के शिवलिंग पर जल चढ़ाने जरूर आता है. सोमवार को यहां भक्तों की भारी भीड़ इकट्ठा होती है, कई भक्त तो महीने की पहली और 15 तारीख को भगवान का विशेष शृंगार करते हैं. जो देखने में बेहद मनमोहक होता है.

महाशिवरात्रि पर चढ़ते हैं हजारों कांवड़
महाशिवरात्रि पर्व आते ही शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, दूर-दूर से शिवभक्त कांवड़िये सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर गंगाजल भरते हैं और फिर पैदल उस कांवड़ को कंधे पर रखकर चलते हुए अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ पर वह गंगाजल चढ़ाते हैं. भिंड के वनखंडेश्वर धाम पर भी महाशिवरात्रि से एक रात पहले ही हजारों की संख्या में कंवरिए पहुंच जाते हैं, और फिर जल चढ़ाने का सिलसिला शुरू होता है, जो महाशिवरात्रि की देर शाम तक चलता है. माना जाता है कि इस दिन वनखंडेश्वर महाराज पर काम से काम 10 हजार तक कांवड़ चढ़ती हैं. इसकी वजह से पुलिया और प्रशासन को विशेष इंतजाम भी करने पड़ते हैं.

महाशिवरात्रि पर भिंड के वनखंडेश्वर महादेव मंदिर में पूजा

राम मंदिर के लुक वाली कांवड़ पर रहेगी सबकी नजर
हर बार की तरह ही इस बार भी भिंड से युवाओं का एक ग्रुप कांवड़ भरने के लिए उत्तर प्रदेश के श्रृंगीरामपुर गया है जो सबके आकर्षण का केंद्र होगा. माना जा रहा है कि ये प्रदेश की सबसे बड़ी कांवड़ है जिसमें कांवड़िये 251 बोतलों में 35 लीटर गंगाजल लेकर आ रहे हैं. कांवड़ का वजन करीब 80 किलो है, कांवड़ को अयोध्या के राम मंदिर की तरह सजाया गया है. इसे लेकर करीब 150 किलोमीटर पैदल चलकर ये ग्रुप सोमवार देर रात भिंड पहुंच जाएगा, और महाशिवरात्रि की सुबह वनखंडेश्वर महादेव पर गंगाजल चढ़ाएंगे.

इस बार महाशिवरात्रि पर पूजा का है खास महत्व
वैसे तो महाशिवरात्रि के दिन प्रदेश और देशभर के श्रद्धालु वनखंडेश्वर के दर्शन को पहुंचते हैं, लेकिन इस बार पूजन का विशेष महत्व है. फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को देवाधिदेव महादेव को समर्पित महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाएगा. इस बार महाशिवरात्रि पर पंचग्रही योग के साथ ही केदार योग का महासंयोग निर्मित हो रहा है. इस महासंयोग में की गई महादेव की आराधना पुण्य फलदायी और सर्व मनोरथ को पूरी करने वाली होगी. भिंड के पंडित गोपालदास महाराज जमुहां वाले के अनुसार महाशिवरात्रि के एक दिन पहले यानि आज 28 फरवरी को सोम प्रदोश व्रत रहेगा, एक मार्च को महाशिवरात्रि और दो मार्च को अमावस्या का विशेष पूजन अनुष्ठान सम्पन्न होगा. सभी मनोरथों को पूरा करने के लिए इस बार महाशिवरात्रि पर पंच ग्रहों के योग का महासंयोग और दो महाशुभ योग बन रहे हैं. मंगलवार को मकर राशि में शुक्र, मंगल, बुध, चंद्र, शनि के संयोग के साथ ही केदार योग भी बनेगा, जो पूजा उपासना के लिए विशेष कल्याणकारी है ऐसे में इस बार शिवरात्रि पूजन का विशेष महत्व है.

महाशिवरात्रि पर वनखंडेश्वर महादेव में कैसे होगी पूजा

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लाल बत्ती लगी पालकी में सवार होकर निकलेंगे भोलेनाथ
भिंड में महाशिवरात्रि पर शिव बारात का जश्न भी देखने लायक होता है, क्योंकि जहां नेता, मंत्री तक को लालबत्ती लगी गाड़ी में चलने की इजाजत नहीं वहां वनखंडेश्वर महादेव लाल बत्ती लगी पालकी में सवार हो कर निकलते हैं. पालकी को उठाने का काम सम्भव पहले कलेक्टर और एसपी करते हैं, और भोलेनाथ की बारात में पूरा शहर शामिल होता है. दर्जनों बैंड, झांकियां और हजारों लोगों के साथ भव्य बारात देखने लायक होती है, जो पूरे शहर से होकर गुजरती है. इस बारात में पूरा माहौल ही शिवमय हो जाता है.

जल्द होगा मंदिर का जीर्णोद्धार
भिंड का एतिहासिक वनखंडेश्वर धाम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में भी आता है, इतने वर्षों में अब प्रशासन इसका जीर्णोद्धार कराने जा रहा है, जिसके लिए अध्यात्म विभाग की ओर से इसके जीर्णोद्धार का खाका तैयार किया जा रहा है. नए निर्माण के साथ मंदिर और भी बड़ा रूप लेगा. जिसके लिए शुरुआती तौर पर विभाग द्वारा राशि भी आवंटित की गयी है. मंदिर के महत्व और इतिहास को देखते हुए इसका जीर्णोद्धार कराया जाना जनता के अनुसार भी सराहनीय कदम माना जा रहा है. (Vankhandeshwar Mahadev on Mahashivratri in Bhind) (Mahashivratri in Bhind)

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