भिंड।आमतौर पर माना जाता है कि जब तेज ठंड के साथ रह रहकर बुख़ार आ रहा हो तो ये मलेरिया के लक्षण हैं. डॉक्टर भी सबसे ऐसे मरीजों को तुरंत मलेरिया का टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जो साफ़ पानी में उत्पन्न हुए प्लाज़्मोडियम परजीवी मच्छर के काटने से होती है. अगर सही इलाज ना मिले तो मरीज़ की जान भी जा सकती है. हर साल विश्व में लाखों लोग इस बीमारी के आगे दम तोड़ देते हैं. मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी से विश्व के 11 देश प्रभावित हैं और भारत भी इस सूची में शामिल हैं.
मलेरिया और इसके लक्षण :भिंड ज़िला स्वास्थ्य विभाग में मलेरिया नियंत्रण विभाग के प्रभारी डॉ.डीके शर्मा ने बताया कि आमतौर पर लोगों को पता है कि मच्छर के काटने से मलेरिया होता है, लेकिन असल में यह बीमारी किसी सामान्य मच्छर से नहीं बल्कि ऐनोफिल्ज़ नाम के मादा मच्छर के काटने से होती हैं. अक्सर लोग अपने घर में जमा पानी में पैदा हो रहे इन प्रजातियों के लार्वा को पानी के कीड़े समझ लेते हैं और उन्हें ऐसे ही छोड़ देते हैं जबकि वह लार्वा कुछ दिनों में मच्छर बनता है और फिर लोगों में मलेरिया का प्रसार करता है.
कितने प्रकार का होता है मलेरिया :डॉ.डीके शर्मा ने बताया कि मेडिकल साइंस में अब तक यह पाया गया है कि मलेरिया बीमारी 5 तरह के पैरासाइट्स (परजीवी) प्रजातियों के कारण हो सकती है. यानी मलेरिया 5 तरह का होता है. प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम- यह मलेरिया पैरासाइट अफ्रीका में पाया जाता है. प्लास्मोडियम विवैक्स-यह परजीवी दिन में काटता है. इसका असर 48 घंटे बाद दिखना शुरू होता है. प्लास्मोडियम ओवेल-यह असामान्य परजीवी है जो वर्षों तक मरीज़ के लीवर में बिना लक्षण रह सकता है. प्लास्मोडियम मलेरिया- यह मलेरिया प्रोटोजोआ का एक प्रकार है. इसमे मरीज को हर चौथे दिन बुखार आने लगता है. प्लास्मोडियम नॉलेसि यह परजीवी आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है. और यह एक प्राइमेट मलेरिया पैरासाइट है. हालांकि मलेरिया विभाग के प्रमुख डॉ. डीके शर्मा का कहना है कि भारत में इन पांचों से सिर्फ दो पैरासाइट प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम और प्लास्मोडियम विवैक्स ही पाए जाते हैं.