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Water Crisis के लिए जिम्मेदार 'मालनपुर औद्योगिक क्षेत्र', पानी की चोरी से प्यास बुझा रहे ग्रामीण

भिंड के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले इंडस्ट्रियल एरिया मालनपुर (Industrial Area Malanpur) में स्थानीय लोग, पानी की चोरी कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं. जानिए पूरी स्टोरी..

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Published : Jun 21, 2021, 8:54 PM IST

भिंड। पानी की कमी (Lack of Water) से आज देश के कई इलाके जूझ रहे हैं. लेकिन भिंड (Bhind) के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले मालनपुर इंडस्ट्रियल एरिया (Malanpur Industrial Area) में स्थानीय लोग पानी की चोरी कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं. जिसकी एक बड़ी वजह खुद इंडस्ट्रियल क्षेत्र है. जानें क्यों बन रहे हैं ऐसे हालात, मालनपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में.

गिर चुका है भू-जल स्तर

इंडस्ट्रियल एरिया (Industrial Area) किसी भी क्षेत्र के विकास में अहम आयाम स्थापित करता है. जहां भी इंडस्ट्रियल एरिया बनाया जाता है वहां स्थानीय लोगों को रोजगार के साथ साथ सुविधाएं और पहचान मिलती है. लेकिन भिंड जिला अब तक इनमें से किसी भी व्यवस्था का लाभ नहीं ले सका है. यहां तक कि मालनपुर इंडस्ट्रियल क्षेत्र में जैसे- जैसे इंडस्ट्रियल लगती गई. स्थानीय लोग बूंद- बूंद को महताब होते जा रहे हैं. मालनपुर औद्योगिक केंद्र के आसपास के छह से ज्यादा गांव में जल स्तर इतना गिर चुका है, कि लोग प्यासे मार रहे हैं और उनकी सुनवाई भी नही हो रही है.

Water Crisis के लिए जिम्मेदार 'मालनपुर औद्योगिक क्षेत्र'

पानी किल्लत से परेशान आधा दर्जन गांव

सिंघवारी, गिरोंगी, तिरौली, कुमार का पुरा, मालनपुर और आसपास लगे अन्य गांव के हालत बाद से बदतर हो गए हैं. कारण है पानी की भारी किल्लत, यहां तो बारिश का फायदा नहीं क्योंकि ना तो गांव में तालाब हैं, और ना कुएं नतीजा पानी की कोई व्यवस्था नहीं. कई बार ग्रामीणों ने अफसरों से भी गुहार लगाई लेकिन कोई सुनता तक नही. गोहद के सिंघवारी गांव में तो ETV भारत ने खुद पहुंचकर हालातों का जायजा लिया तो ग्रामीणों की हालत और प्यास का अहसास हुआ.

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पानी की चोरी से बुझ रही प्यास

सिंघवारी पंचायत की हरिजन बस्ती में दाखिल होते ही हमें पानी भरती ग्रामीणों की लम्बी कतार मिली. क्या बच्चे क्या बड़े और बूढ़े. सभी बारी बारी से पानी भरने खड़े थे. जानकारी लेने पर पता चला कि गांव में पानी की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में सभी पानी भरने के लिए कतार में खड़े हैं जब उनसे पूछा कि यह पानी कहां से आ रहा है, तो जवाब चौंकाने वाला था. ग्रामीणों ने बताया कि यह पानी ‘चोरी’ का है. जी हां यहां लोग पानी की चोरी कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं. उन्होंने बताया कि यह पानी कोटवार डैम से इंडस्ट्रीयल एरिया की फैक्ट्रियों में सप्लाई होता है और उसी लाइन में जुगाड़ कर ग्रामीण अपने लिए एक लाइन डालकर मोटर के ज़रिए पाने की व्यवस्था करते हैं

फैक्ट्रियों की सप्लाई में किया कनेक्शन

गांव के ही रहने वाले एक शख्स ने बताया कि उसके पिता फौज में नौकरी करते हैं. वह देश के लिए सेवा कर रहे हैं. ऐसे में ग्रामीणों की समस्या को लेकर वह कई बार अधिकारियों के पास पहुंचे लेकिन कहीं से कोई सुनवाई नहीं हुई. आखिर में जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो चोरी छिपे फैक्ट्रियों में आने वाला पानी की लाइन में ही जुगाड़ कर ग्रामीणों के लिए पानी की व्यवस्था की. पानी की चोरी करना मजबूरी हो गई है. क्योंकि नगर परिषद की ओर से भी कोई टैंकर की व्यवस्था यहां की जाती है. यही हाल आसपास के गांवों में भी हैं

हफ्ते- 10 दिन में आता है फैक्ट्रियों का पानी

कुछ और ग्रामीणों से बात करने पर पता चला कि फैक्ट्री में आने वाला पानी ही पर्याप्त नहीं है. क्योंकि यह पानी भी फैक्टरियों की ज़रूरत के हिसाब से हफ्ते 8 दिन में छोड़ा जाता है, ऐसे में ही हमेशा पानी की राह देखनी पड़ती है और जब पानी आता है लोगों की लाइन लग जाती है. लोगों के लिए पानी की व्यवस्था भी एक और दो किलोमीटर तक पैदल चलकर हो पाती है और जापानी भी उन्हें 8-10 दिन तक इस्तेमाल करना होता है. क्योंकि अगली बार पानी कब आएगा इसका पता नहीं होता.

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कभी 30 फीट पर निकलता था पानी, सालों पहले बोर भी सूखे

ग्रामीण से बात करने पर पता चला के क्षेत्र में एक समय तीस फुट खुदाई पर ही पानी उपलब्ध था. लेकिन इंडस्ट्रियल एरिया बनने के बाद यहां जो फैक्ट्रियां लगी. उन्होंने अपने गहरे- गहरे और बड़े बोर्ड लगाए, जिसकी वजह से पानी का जल स्तर बुरी तरह प्रभावित हुआ साथ ही जो कुएं तालाब और बावड़ी थी. वह भी इन फैक्ट्रियों की जमीन में मिल गई. जिसकी वजह से पानी का कोई स्रोत नहीं बचा और न ही किसी जिम्मेदार अधिकारी या विभाग ने इस बात पर ध्यान है.

दूषित पानी पीने की मजबूरी

चोरी के पानी से भी प्यास बुझाना काफी नहीं है. क्योंकि हमने देखा कि जिन पानी को ग्रामीण भर रहे थे. वह काफी दूषित था. ऐसे में ग्रामीणों का कहना था कि प्यासे मरने से अच्छा है, यह गंदा पानी पीकर बीमार होकर मर जाए. इस तरह कम से कम कुछ दिन तो जी सकेंगे. क्योंकि जब गला सूख रहा हो और पानी ना मिले तो छटपटाहट, पानी के बिना मछली जैसी हो जाती है.

आश्वासन, इंतजार कब तक?

पीने की पानी की समस्या को लेकर भिंड कलेक्टर डॉक्टर सतीश कुमार एस से बात की, तो उन्होंने जल्द समस्या के बारे में पता कर समाधान का आश्वासन दिया है. लेकिन यह आश्वासन धरातल पर भी नजर आएगा या नहीं. इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. कब तक इन ग्रामीणों को साफ और स्वच्छ पानी मिल पाएगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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