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Sawan 2021: वनखंडेश्वर धाम का रोचक है इतिहास, जानें आखिर क्यों 11 वीं सदी में पराक्रमी राजा पृथ्वीराज ने बनवाया था ये मंदिर - Myths related to vankhandeshwar temple

भिंड स्थित वनखण्डेश्वर धाम का इतिहास बड़ा रोचक है. इस मंदिर का निमार्ण पराक्रमी राजा पृथ्वीराज सिंह चौहान ने कराया था. नाम क्यों पड़ा वनखण्डेश्वर, आखिर क्या है ऐसी विशेषता जो भक्तों को अपनी ओर खींचता है ये धाम? आइए जानते हैं.

vankhandeshwar temple
वनखंडेश्वर धाम

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Published : Jul 31, 2021, 10:56 AM IST

भिंड। श्रावण मास यानी सावन का पवित्र महीना भोलेनाथ की आराधना के लिए सबसे शुभ होता है वैसे तो भोलेनाथ हमेशा ही अपने भक्तों पर प्रसन्न रहते हैं लेकिन सावन में उनकी पूजा अर्चना और सावन के सोमवार को व्रत रखने वाले पर महादेव की असीम कृपा होती है यही वजह है कि इन दिनों शिवालयों में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है. ऐसे ही भिंड ज़िले में एक प्रसिद्ध और प्राचीन शिवालय में विराजमान है वनखंडेश्वर महादेव.

वनखंडेश्वर धाम का रोचक है इतिहास

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भोलेनाथ को समर्पित एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर है. जिसका निर्माण खुद पराक्रमी राजा पृथ्वीराज चौहान ने कराया था. इस मंदिर में भगवान शिव वनखंडेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं. 11वीं सदी का यह मंदिर भिंड में स्थित है. वन खंडेश्वर मंदिर में बनी शिवलिंग और पृथ्वीराज चौहान को लेकर एक किस्सा भी मशहूर है. कहा जाता है कि शिवलिंग से आशीर्वाद लेकर उन्होंने महोबा में युद्ध पर जीत हासिल की थी और इस जीत के बाद पूजा के लिए जलाई अखंड ज्योत सैकड़ों सालों से ऐसे ही प्रज्वलित है.

पृथ्वीराज चौहान ने कराया था मंदिर का निर्माण
भिंडी ऋषि की तपोभूमि पर विराजे वनखंडेश्वर महादेव का इतिहास बेहद रोचक है. वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है. मंदिर के महंत पंडित वीरेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि 11वीं सदी में जब राजा पृथ्वीराज चौहान 1175ई. में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने जा रहे थे. उस दौरान भिंड में उन्होंने डेरा डाला था. ठहराव के दौरान उन्हें रात में सपना आया कि जमीन में शिवलिंग है. जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने खुदाई करवाई तो शिवलिंग निकला. पृथ्वीराज ने इस शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया और देवताओं, शिल्पकारों द्वारा मंदिर का ऐतिहासिक मठ तैयार किया गया. चूंकि तब भिंड क्षेत्र पूरा वनक्षेत्र था इसलिए शिवलिंग का नाम वनखंडेश्वर पड़ा.

सैंकड़ों सालों से प्रज्ज्वलित हैं अखंड ज्योत
वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के मठ में भोलेनाथ के पास सैकड़ों सालों से दो अखंड ज्योत जल रही हैं. इसके पीछे की कहानी बताते हुए पुजारी वीरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि जब पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल राजा से युद्ध में जीत हांसिल की. उसके बाद वे भिंड लौटे और पूजन कर वनखंडेश्वर महादेव के मंदिर में दो अखंड ज्योत जलाईं जो करीब पिछले 840 सालों से आज तक निरंतर जल रही हैं. इनकी देखरेख के लिए अंग्रेजों के दौर में सिंधिया घराने ने दो पुजारियों की नियुक्ति की थी, जो मंदिर की देखरेख और अखंड ज्योत का ध्यान रखते थे. आज भी 2 पुजारी मंदिर में जल रही ज्योति की देखरेख करते हैं. भक्त घी दान भी करते हैं.

सावन में पूजा का ख़ास महत्व
वैसे तो साल में महाशिवरात्रि के दिन प्रदेश और देशभर के श्रध्दालु वनखंडेश्वर के दर्शन को पहुंचते हैं. लेकिन सावन के महीने में भोलेनाथ की अलग ही कृपा होती है. शिव पुराण में बताया गया है कि श्रावण की सोमवार के दिन शिवजी का अभिषेक करेगा, बेलपत्र धतूरा आदि चढ़ाएगा, पंचामृत या जल से अभिषेक करेगा वह समस्त कष्टों से छुटकारा पा लेगा और उसकी मनोकामनाएं पूरी होगी. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि शिव जी आपकी श्रद्धा से खुश होते हैं जरूरी नहीं कि फल फूल जैसी चीजों से उनकी सेवा करें.

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