भिंड। सावन के महीने में प्रति सोमवार शिवालय भक्तों से भरे होते हैं. पूरा माहौल शिवमयी होता है. सुबह से शाम तक लोग मंदिरों में भोलेनाथ को जल चढ़ाने पहुँचते हैं. सावन भोलेनाथ का प्रिय महीना है. भिंड के एतिहासिक वनखंडेश्वर धाम पर भी सावन में हज़ारों की तादाद में भक्त अपने आराध्य के दर्शन को पहुँचते हैं.वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पं. वीरेंद्र शर्मा ने बताया कि आषाढ़ के महीने में श्री विष्णु भगवान एकादशी के दिन चिर सागर में चले जाते हैं. साथ ही अपना कार्यभार भोलेनाथ को सौंप देते हैं. इसलिए श्रावण मास का महीना शिवजी का ही होता है.
भिंड जिले का वनखंडेश्वर मंदिर सदियों पुराना दो पुजारी करते हैं ज्योति की देखरेख :वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के मठ में भोलेनाथ के पास सैकड़ों सालों से दो अखंड ज्योत जल रही हैं. इसके पीछे की कहानी बताते हुए महंत वीरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि जब पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल राजा से युद्ध में जीत हांसिल की. उसके बाद वे भिंड लौटे और पूजन कर वनखंडेश्वर महादेव के मंदिर में दो अखंड ज्योत जलाईं जो करीब पिछले 845 सालों से आज तक निरंतर जल रही हैं. इनकी देखरेख के लिए अंग्रेजों के दौर में सिंधिया घराने ने दो पुजारियों की नियुक्तियां की थी, जो मंदिर की देखरेख और अखंड ज्योत का ध्यान रखते थे. आज भी 2 पुजारी मंदिर में जल रही ज्योति की देखरेख करते हैं.
भिंड जिले का वनखंडेश्वर मंदिर सदियों पुराना महादेव के आगे खिलाई जाती है क़सम :वनखंडेश्वर महादेव मंदिर से लोगों की आस्था काफी जुड़ी हुई है. आस्था से जुड़ा इस मंदिर में एक ऐसी विशेषता है की लोग यहां दूर-दूर से आते हैं. इस मंदिर के भीतर कोई भी व्यक्ति झूठी कसम नहीं खा सकता, जो भी ऐसा करता है उसके साथ अनहोनी घटित होती है. 11वीं सदी में जब राजा पृथ्वीराज चौहान 1175ई. में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने जा रहे थे. उस दौरान भिंड में उन्होंने डेेरा डाला था. ठहराव के दौरान उन्हें रात में सपना आया कि जमीन में शिवलिंग है. जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने खुदाई करवाई तो शिवलिंग निकला. पृथ्वीराज ने इस शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया और देवताओं, शिल्पकारों द्वारा मंदिर का ऐतिहासिक मठ तैयार किया गया. चूंकि तब भिंड क्षेत्र पूरा वनक्षेत्र था इसलिए शिवलिंग का नाम वनखंडेश्वर पड़ा.
सावन में अभिषेक का विशेष महत्व :पुजारी वीरेंद्र शर्मा ने बताया कि श्रावण महीने में भोलेनाथ का अभिषेक फलदायी होता है, सावन के माह में शिवजी पर बेल पत्र चढ़ाना चाहिए, दूध, दही पंचाम्रत से स्नान कराना चाहिए बेल, धतूरा और अकौआ का फूल चढ़ाने से भी शिवजी प्रसन्न होते हैं. उन्हें जल भी बहुत प्रिय है, जलाभिषेक से भी भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं.
भिंड जिले का वनखंडेश्वर मंदिर सदियों पुराना जलाभिषेक से शांत होती है शिव जी की गर्मी :शिव महिमा की बात करते हुए उन्होंने बताया कि जब देव और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था. उस दौरान समुद्र से विष निकला था, और देवों में हाहाकार मच गया था कि यह विष का सेवन कौन करेगा, क्योंकि अगर उसे धरती पर रख देते तो प्रलय आ जाती. ऐसे में सभी देवों के देव महादेव के पास पहुंचे, और उनसे पूछा कि यह विष कौन पियेगा. तब महादेव ने कहा था कि विश्वकल्याण के लिए वे खुद विषपान करेंगे. उसी विष को ग्रहण करने से उनका कंठ नीला हो गया था. इसी वजह वे नीलकंठ महादेव कहलाये जाते हैं. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जब भोलेनाथ पर पर गर्मी चढ़ जाती है तो वे हिमालय में चले जाते हैं. उसी गर्मी को शांत करने के लिए उन पर जल चढ़ाया जाता है.
भिंड जिले का वनखंडेश्वर मंदिर सदियों पुराना Ujjain Mahakaleshwar Temple: बाबा महाकाल का राजा के रूप में हुआ भव्य श्रृंगार
जब पेड़ पर बैठे शिकारी ने चढ़ाए शिवलिंग पर बेलपत्र :शिवजी की पूजा अर्चना में बेलपत्र अवश्य चढ़ाया जाता है. इसके पीछे भी शिव जी की एक महिमा है. पं. वीरेन्द्र शर्मा ने बताया कि महादेव को बेलपत्र भी प्रिय हैं. शिव पुराण का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक समय एक शिकारी जंगल मे शिकार करने के लिए भटक रहा था. दिन - रात शिकार करके ही वह जीवनयापन करता था. जब अंधेरा होने तक उसे शिकार नहीं मिला और रास्ते में ही बारिश होने पर वह एक पेड़ पर चढ़ गया. यह पेड़ बेल पत्र का था. उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग बना हुआ था. ऐसे में पेड़ पर बैठे बैठे उसके हाथ से टूटे बेलपत्र भोलेनाथ के शिवलिंग पर चढ़ गए. उससे पहले कभी महादेव पर बेलपत्र नहीं चढ़े थे. इससे वे उस शिकारी से प्रसन्न हो गए थे, और यहीं से बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा शुरू हो गई. पं. वीरेंद्र शर्मा कहते है कि बेलपत्र का श्रावण के महीने में बहुत महत्व होता है. सावन के महीने में एक बेलपत्र सौ के बराबर मन जाता है. बेलपत्र में तीन दल होते हैं, शिवजी भी त्रिनेत्र है. गंगा जमुना सरस्वती तीन नदियां है. इसे चढ़ाने से तीनों लोकों के पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्तों को शिवधाम की प्राप्ति होती है. (Vankhandeshwar Dham of Bhind) (Two Akhand Jyots for hundreds of years)