भिंड। भारत उन देशों में गिना जाता है जिसने समय के साथ-साथ अपने आपको मजबूत किया है. खासकर शिक्षा के क्षेत्र में, यही वजह है कि विदेशों में भारतीय डॉक्टर्स, इंजीनियर और साइंटिस्ट्स की मांग रहती है. खासकर भारत में कई बड़े संस्थान हैं. जहां बच्चे पढ़कर MBBS, MS या अन्य मेडिकल संबंधी डिग्री डिप्लोमा लेकर डॉक्टर बनते हैं. लेकिन इनके अलावा प्रतिवर्ष हज़ारों की संख्या में रूस, यूक्रेन ऑस्ट्रेलिया जैसे अलग-अलग देशों में पढ़ाई करने के लिए भी इंडियन स्टूडेंट्स बाहर जाते हैं. इसके पीछे कई कारण सामने आए है.
प्रदेश में शासकीय मेडिकल कॉलेजों की कमी
ETV भारत द्वारा इस विषय पर की गई रिसर्च में पाया कि मध्यप्रदेश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 22 हैं. इनमें AIIMS भोपाल समेत प्रदेश में सरकारी मेडिकल कॉलेज 14 हैं. जिनमें से कुल 2135 मेडिकल सीट छात्रों के लिए उपलब्ध हैं. PMT और NEET जैसी परीक्षाओं में प्रदेश के लाखों छात्र हिस्सा लेते हैं. लेकिन किस्मत चंद छात्रों पर ही मेहरबान होती है. यही कारण है कि प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में छात्र अन्य देशों का रुख करते हैं.
विदेश जाने में आरक्षण की बड़ी भूमिका
PMT और NEET एग्जाम फाइट करने के लिए देश में करोड़ों बच्चे 12वीं के बाद तैयारी में जुट जाते हैं. तैयारी में काफी पैसा भी खर्च होता है बावजूद इसके माइनस मार्किंग की वजह से बच्चों को मेहनत का फल नहीं मित पाता हैं. इतना ही नहीं आरक्षण की वजह से भी छात्रों का मनोबल टूटता है. भिंड के ग्राम सर्वा के रहने वाले गौरव यादव इन दिनों यूक्रेन में हैं. युद्ध की वजह से मझधार में अटके हुए हैं. गौरव के चाचा धर्मेंद्र तोमर का कहना है. हमारे देश में मेडिकल की पढ़ाई इतनी आसान नही है. एडमिशन के लिए बच्चों पर भारी प्रेशर होता है. लेकिन आरक्षण की वजह से कई बच्चे सिलेक्शन से चूक जाते हैं. 100 में 70 नम्बर लाने के बाद भी आरक्षण की वजह से 40 नम्बर प्राप्त करने वाले छात्रों को सीट मिल जाती है. होनहार छात्र पीछे रह जाता है.
धर्मेंद्र सिंह तोमर का कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण होना ही नही चाहिए. वे आरक्षण के खिलाफ नही हैं. लेकिन आरक्षण सिर्फ आर्थिक आधार पर होना चाहिए. जो खुद बच्चे पैसा भरने में सक्षम नहीं होते हैं उनकी फीस सरकार को माफ कर देना चाहिए. यदि आरक्षण से ज़्यादा काबिलियत को महत्व दिया जाए तो देश में बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सकता है.
भारत में महंगी है मेडिकल की पढ़ाई
यूक्रेन से भारत लौटे भिंड के मेहदोली गांव निवासी MBBS के छात्र अरमान खान के पिता बिखारी खान कहते हैं. भारत में मेडिकल की पढ़ाई महंगी है. अरमान ने 2 साल तक कोटा में तैयारी की फिर 2 बार PMT की परीक्षा दी थी. लेकिन उसका सिलेक्शन नही हो सका. ऐसे में निजी मेडिकल संस्थानों का विकल्प बचता है. लेकिन वर्तमान में निजी संस्थानों में बिना डोनेशन एडमिशन संभव नही है. डोनेशन के नाम पर 80 लाख रुपये तक देने पड़ते हैं. जो माध्यम वर्गीय परिवार के लिए सम्भव नही है. अरमान खान के पिता कि मानें तो वह भी इतना खर्च नही कर सकते थे. लेकिन पता चला कि यूक्रेन में 6 साल की डिग्री महज़ 25 लाख रुपये में पूरी हो जाएगी. जिसमें एकोमोडेशन भी कॉलेज की ओर से रहेगा. जितना भारत में डोनेशन नही होता उससे लगभग एक तिहाई कीमत में अरमान की पूरी डिग्री हो जाएगी. इसलिए उसे यूक्रेन भेजा था.
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पढ़ाई के लिए विदेशों का रुख करना मजबूरी
कुछ इसी तरह के बोल उज़रोइड यूनिवर्सिटी से MBBS कर रहे ऋषिकेश नरवरिया के भाई के हैं. ऋषिकेश भी हाल ही में यूक्रेन से वापस भारत आये हैं. उनके भाई रामू नरवरिया कहते हैं कि भारत में जितने मेडिकल संस्थान हैं सरकारी को छोड़ दिया जाए तो सभी जगह बिना डोनेशन दाखिला नही मिलता. इतना पैसा देने की क्षमता हर किसी की नही हो पाती है. इससे बेहतर विकल्प है कि, बच्चे को रूस, चाइना या यूक्रेन भेज दें. जहां मेडिकल की पढ़ाई ज्यादा खर्चीली नही है. अगर सरकार इस विषय में कुछ करती है तो आगे से भारतीय छात्रों पढ़ने के लिए नही जाना पड़ेगा.
आपसी जंग की वजह से युद्ध की बली चढ़ी पढ़ाई
सामान्य परिवार का बच्चा मेहनती होने के बावजूद मेडिकल के क्षेत्र में अपनी मनपसंद डिग्री के लिए जद्दोजहद करता है. नंबर अच्छे होने के बाद भी अलग अलग कारणों से चूक जाता है. डोनेशन देने की हालत नही होती और डॉक्टर बनने का सपना लिए दूसरे देश का रुख करता है. लेकिन छात्रों को नहीं पता था कि दो देशों के बीच आपसी जंग की वजह से उनकी पढ़ाई युद्ध की बली चढ़ जाएगी. लेकिन छात्र हालातों के आगे मजबूर होने के अलावा कर भी क्या सकते हैं. भारत में सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए यहां अगर पढ़ाई सस्ती होगी तो देश का पैसा देश में रहेगा और हमारे छात्रों को विदेश में नही जाना पड़ेगा.