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फेल साबित हो रही सूत्र सेवा, जानिए भिंड के क्या है हाल

2018 में प्रदेश की जनता को बेहतर परिवहन सेवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सूत्र सेवा शुरू की गई थी, लेकिन पूरे मध्य प्रदेश में इस योजना पर सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो सका, जिसका नतीजा यह हुआ कि भिंड जिले में सूत्र सेवा फेल साबित होती जा रही है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट..

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फेल साबित हो रही सूत्र सेवा

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Published : Feb 28, 2021, 10:03 PM IST

भिंड। साल 2018 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने प्रदेश की जनता को बेहतर परिवहन सेवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 'एमपी की अपनी बस' यानी सूत्र सेवा शुरू की थी. इस परिवहन सेवा की शुरुआत प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान द्वारा अमृत योजना के तहत की गई थी. ऑपरेटरों को प्रोत्साहित करने के लिए बसों पर सब्सिडी भी दी गई थी, जिससे इस योजना में ज्यादा से ज्यादा बसें यात्रियों के लिए सड़क पर उतारी जा सकें, लेकिन पूरे प्रदेश में इस योजना पर अपेक्षाकृत क्रियान्वयन न हो सका, जिसका नतीजा यह हुआ कि सूत्र सेवा मध्य प्रदेश में फेल साबित होती जा रही है.

विधानसभा चुनाव 2018 से पहले प्रदेश सरकार द्वारा अमृत योजना के तहत सूत्र सेवा बस चलाई गई, लेकिन इन बसों का संचालन रोडवेज बसों की तर्ज पर किया जाना था. सूत्र सेवा के तहत चलाई जा रही बसों में एसी और नॉन एसी बसें संचालित हो रही थी, जबकि इनका किराया एक जैसा ही था, लेकिन जिले में इस योजना का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो सका है.

फेल साबित हो रही सूत्र सेवा
राह का रोड़ा बने निजी बस ऑपरेटर, प्रशासन उदासीनसूत्र सेवा बस की जब शुरुआत हुई, तो एक बड़ा कार्यक्रम जिले में भी आयोजित किया गया था. मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इसका उद्घाटन किया था. बस का संचालन टेंडर के मुताबिक रोडवेज बस स्टैंड से किया जाना था, लेकिन इस योजना में मुसीबतों का दौर शुरू हो चुका था, क्योंकि सूत्र सेवा के तहत कॉन्ट्रेक्टर सुरेंद्र सिंह कुशवाह ने 39 बसों का करार किया था, लेकिन पहले चरण में उन्होंने 16 बसें शुरू की, पर इनके परमिट नहीं मिल रहे थे. काफी मशक्कत के बाद उन्हें बस संचालन के लिए परमिट मिले, लेकिन बसों का संचालन रोडवेज बस स्टैंड से किए जाने को लेकर प्राइवेट ऑपरेटरों से विवाद खड़ा हो गया. जिला प्रशासन ने जैसे-तैसे इस विवाद को निपटाया, तो निजी बस ऑपरेटरों ने उनके परमिट को लेकर आपत्ति खड़ी कर दी.

हाई कोर्ट में परिवाद दायर कर दिया गया, जिस पर कोर्ट ने परमिट निरस्त कर दिया. परिणाम स्वरूप करीब ढाई वर्ष का समय गुजरने के बाद भी अब तक सिर्फ 11 बसों को ही परमिट मिल पाया हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से सहयोग नहीं मिलने की वजह से सिर्फ 6 बसों का संचालन हो पा रहा है.

BCTSL के तहत बसों का ठेका लेने वाली कंपनी के संचालक सुरेंद्र सिंह कुशवाह का कहना है कि महज परमिट लेने से बस नहीं चलती. उन्हें जिला प्रशासन अब किसी तरह से सहयोग नहीं कर रहा है.

प्रशासन ने न बस स्टैंड दिया, न बुकिंग काउंटर की जगह
एक ओर जहां प्रशासन सूत्र सेवा की बाकी बसों को परमिट नहीं दिला पा रहा है, तो वहीं BCTSL की बसों के लिए बस स्टैंड तक नहीं दे पा रहा है. कॉन्ट्रेक्टर का कहना है कि जब हमने इन बसों का कॉन्ट्रैक्ट लिया था, तब टेंडर के अनुसार रोडवेज बस स्टैंड से इस सेवा को चलाने की बात थी, लेकिन निजी ऑपरेटर द्वारा विवाद खड़े कर दिए जाने के बाद बस स्टैंड का बंटवारा कर दिया गया. साथ ही सूत्र सेवा का नया बस स्टैंड बनाने की बात नगर पालिका द्वारा कही गई थी, लेकिन ढाई साल बाद भी यहां बस संचालन के लिए कोई बस स्टैंड नहीं है, जिसकी वजह से 16 बसों को रखने के लिए उनके पास कोई व्यवस्था नहीं है और न ही बस स्टैंड पर उन्हें बुकिंग के लिए कोई काउंटर दिया गया है. जिला प्रशासन से कई बार इन परेशानियों को बताने के बाद भी किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है.

धूल फांक रही करोड़ों की बसें
यह एक बड़ा प्रोजेक्ट था. ऐसे में इस प्रोजेक्ट की लागत भी ज्यादा थी. शुरुआती दौर में 39 बसों में से 16 बसें खरीदने की वजह यहीं थी कि 1 बस बनाने में 40 लाख रुपये की लागत लग रही थी. ऐसे में पहले चरण में 16 बसें मंगाई गई, जिसके लिए अच्छी खासी रकम खर्च की गई. कुछ हद तक सरकार से भी सब्सिडी मिली, लेकिन इस योजना का संचालन न हो पाने की वजह से 10 बसें कबाड़ में तब्दील हो रही हैं. ऐसे में सूत्र सेवा बस कॉन्ट्रेक्टर को करोड़ों रुपये का घाटा हो रहा है. उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि वह सहयोग करें और बस स्टैंड पर उन्हें बस खड़ी करने की जगह दें.

मनमाना किराया वसूल रहे निजी बस ऑपरेटर
इधर निजी बस ऑपरेटरों द्वारा यात्रियों से मनमाना किराया वसूला जा रहा है. हालात ये हैं कि भिंड से ग्वालियर की दूरी 78 किलोमीटर है, लेकिन इस रूट पर निजी बस ऑपरेटर 70 से 100 रुपये तक का किराया ले रहे हैं. वही भिंड से इटावा की दूरी महज 35 किलोमीटर है. इस रूट पर 70 रुपये का किराया वसूला जा रहा है. यही स्थिति अन्य छोटे रूटों पर भी है.

एक ओर निजी बस ऑपरेटरों द्वारा यात्रियों से मनमाना किराया वसूला जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर छोटे वाहनों में अधिक सीटें लगवा दिए जाने से यात्री ढंग से बैठ कर भी नहीं जा पाते है. यही वजह है कि बस स्टैंड से ग्वालियर जाने के लिए ज्यादातर यात्री सूत्र सेवा की बसों को पसंद करते हैं.

कलेक्टर ने दिया सहयोग का आश्वासन
सरकार की महत्वपूर्ण योजना ठंडे बस्ते में है. BCTSL के एमडी और कलेक्टर डॉ. वीएस रावत ने कहा कि बस ऑपरेटरों और सूत्र सेवा ठेकेदारों को बातचीत के लिए बुलाया जा रहा है. जल्द ही उनके साथ मीटिंग कर सभी समस्याओं पर विचार किया जाएगा. जो भी सहयोग जिला प्रशासन की ओर से हो सकता है, वह सूत्र सेवा कॉन्ट्रेक्टर को प्रदान कर बस सेवा सुचारू रूप से संचालित करने का प्रयास किया जायेगा.

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