भिंड।मध्य प्रदेश में इस साल मानसून कुछ दिन पहले ही दस्तक दे चुका है, लेकिन क्या आप बिना गूगल बता पाएंगे कि 2004 में मानसून कब आया या 2009 में या 2017 की सबसे सर्द रात कौन सी थी. दिमाग के घोड़े दौड़ा कर भी कोई फायदा नही, क्योंकि इतनी बारीक जानकर कई बार Google राजा के पास भी नहीं होती, पर भिंड के संजीव बरुआ के पास पिछले 16 साल का रिकॉर्ड है कि कब किस मौसम ने दस्तक या किस दिन कितना तापमान रहा या फिर उस दिन हवा में शुद्धता कितनी थी. अपने इस अनूठे शौक के पीछे एक बेहद खास मकसद लेकर चल रहे संजीव बरुआ का दावा है कि लगातार जलवायु परिवर्तन का असर मौसमों पर पड़ता हैं.
शहर के छोर पर एक छोटे से घर में रहने वाले संजीव बरुआ वैसे तो बीमा कम्पनी में काम करते हैं, लेकिन उनकी रुचि समाजसेवा, किसानों की आवाज बनना और उनकी समस्याएं दूर करना है, लेकिन इन सबके बीच उनके प्रकृति प्रेम के बारे में क्या कहने?. अब तक निजी खर्च से ही हजारों पौधे लगा चुके हैं. इस उम्मीद में कि आने वाली पीढ़ी इन वृक्षों की महत्वता समझे और उनका संरक्षण करें, लेकिन उनके एक काम ने प्रकृति से लगाव को एक अलग ही आयाम में पहुंचा दिया है. वह काम दिन-प्रतिदिन मौसम की गणना करना हैं. वैसे तो मौसम विभाग इस काम को करता है, पर संजीव बरुआ पिछले डेढ़ दशक से बिना रुके मौसम का लेखा जोखा तैयार कर रहे हैं. उनका यह काम सन् 1995 से जारी है.
उस दौरान शौकिया तौर पर शुरू की गणना कब आदत में बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला. 1995 से ही वह रजिस्टर मेंटेन कर रहे हैं, जिसमें कई कोलम है. वह प्रतिदिन चारों पहर के तापमान का रिकॉर्ड इस रजिस्टर में लिखते हैं. हर दिन हर पहर हवा की शुद्धता, कोहरा, बारिश, भूकम्प की तीव्रता, आंधी/तूफान, ग्रहण और विशेष टिप्पणी भी इस बही खाते में देखने को मिलती हैं. साथ ही हर 15 दिन में भू-जल स्तर का भी अध्ययन किया जाता हैं. यह सारे रिकॉर्ड भिंड से सम्बंधित हैं, लेकिन कोई बड़ी या छोटी प्राकृतिक घटना का उल्लेख भी विशेष टिप्पणी में देखने को मिलता है. फिर चाहे वह देश के किसी भी कोने में घटित हुई हों.
आम गृहस्थ जीवन में लोग व्यस्त है. ऐसे में इस रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए उनके कुछ सहयोगी भी उन्हें यह जानकारियां मैसेज पर उपलब्ध करवा देते हैं. उन्होंने बताया कि भू-जल की जानकारी उन्हें मशीन के जरिए बोरिंग करने वाले कर्मचारी बता देते हैं. वहीं तापमान और हवा की शुद्धता मापने के लिए वह मोबाइल फोन में दर्ज ऐप्लिकेशन की मदद लेते हैं. हालांकि कुछ सालों पहले मोबाइल की सुविधा नहीं थी. उस दौरान मौसम विभाग से आंकड़े मिल जाते थे. इस तरह उन्होंने माने समय से पूरा लेखा जोखा अपने पास सहेज कर रखा हैं.