भिंड। विधानसभा उपचुनाव के मद्देनजर सूबे में सियासी बिसात बिछ चुकी है. जिन 24 सीटों पर चुनाव होना है उनमें चंबल संभाग के भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट भी शामिल है. कांग्रेस विधायक ओपीएस भदौरिया के इस्तीफे के बाद खाली हुई इस सीट की सियासी जंग रोचक होने वाली है. इसकी सबसे बड़ी वजह जनता में ओपी भदौरिया के खिलाफ रोष है.
ईटीवी भारत की टीम जब क्षेत्र की जनता का मिजाज जानने पहुंची तो कुछ लोग ओपीएस भदौरिया से खफा तो कुछ उनके कामकाज से संतुष्ट नजर आए. लोगों का आरोप है कि क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. किसी भी जनप्रतिनिधि ने मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं किया. यही वजह है कि लोग अब ऐसा विधायक चाहते हैं जो उनकी समस्याओं को हल करे और क्षेत्र का विकास करे.
मेहगांव विधानसभा सीट का सियासी इतिहास दिलचस्प रहा है, यहां की जनता किसी एक राजनीतिक दल पर भरोसा नहीं करती. यही वजह है कि मेहगांव में बीजेपी-कांग्रेस और बसपा से लेकर निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी जीत दर्ज की है. यानि किसी एक राजनीतिक दल का मेहगांव विधानसभा सीट पर कभी दबदबा नहीं रहा. मेहगांव विधानसभा सीट पर अब तक कुल 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिनमें तीन-तीन बार बीजेपी और कांग्रेस को जीत मिली है, तो तीन बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाया है. जबकि एक बार बसपा ने भी यहां से जीत दर्ज की है.
मेहगांव विधानसभा सीट के सियासी समीकरण
- मेहगांव में जातिगत समीकरण सबसे अहम भूमिका निभाते हैं
- यहां ठाकुर और ब्राह्राण मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं
- ओबीसी और एससी वर्ग के मतदाताओं का भी अच्छा खासा दखल रहता है
- मेहगांव विधानसभा में करीब 56 हजार ब्राह्मण वोट हैं
- क्षत्रिय 46 हजार वोटों के साथ दूसरा सबसे प्रभावी वोटर है
- ओबीसी और एससी वोटर भी प्रभावी भूमिका में नजर आते हैं
ओपीएस भदौरिया की परेशानी
इस बार जनता के मूड को भांपा जाए तो वोट चेहरों पर नहीं, बल्कि विकास पर गिरेगा. कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में गए ओपीएस भदौरिया पर लगे रेतखनन और जातिवाद के आरोप उनके लिए मुसीबत बन सकते हैं, क्योंकि इसको लेकर लोगों में रोष है, हालांकि ओपीएस भदौरिया इस तरह के आरोपों को नकार रहे हैं और चुनाव में जीत का दावा कर रहे हैं.