भिंड।चंबल क्षेत्र के भिंड ज़िले में ‘कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना’ की एक दशक बाद नींव रखी गई और काम शुरू हुआ. लेकिन कुछ वर्षों के बाद ग्रहण की तरह इस सिंचाई परियोजना में रोड़े लगते गए और 2010 में एनजीटी की रोक के साथ काम पूरी तरह ठप हो गया और ठंडे बस्ते में चला गया. अब हाल ही में पर्यावरण विभाग से इस परियोजना को क्लीयरेंस मिल गया है और एक बार फिर इसका काम जल्द शुरू हो सकता है. कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना साल 1977 में अस्तित्व में आयी. जब इसकी प्लानिंग की गई थी. साल 1980 में यह धरातल पर आयी, तब से आज तक इस परियोजना का तीन बार शिलान्यास हो चुका है.
1980 में स्वीकृत हुई थी परियोजना :सबसे पहले 1980 में अटेर से तत्कालीन विधायक शिवशंकर समाधिया इस परियोजना को स्वीकृत करा कर लाए और तत्कालीन संसदीय सचिव रहे जाहर शर्मा से इसका शिलान्यास कराया. बजट आवंटन के अभाव में कुछ वक़्त बाद काम रुक गया. इसके बाद जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार आयी तो 1986 में अटेर के तत्कालीन विधायक सत्यदेव कटारे ने प्रयास किए और माधवराव सिंधिया ने इसका दोबारा शिलान्यास किया. लेकिन इस बार भी कुछ समय बाद कनेरा सिंचाई परियोजना को ग्रहण लगा और काम बंद हो गया. इसके बाद वर्ष 2008 में अटेर से विधायक अरविंद भदौरिया ने प्रयास किए और परियोजना को एक बार फिर जीवंत किया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों इसका तीसरी बार शिलान्यास कराया लेकिन दो वर्ष बाद एक बार फिर यह योजना कम बंद होने के साथ ठंडे बस्ते में चली गई.
चार दशक में 125 करोड़ पर पहुंच गई लागत :इस परियोजना को बनाने का उद्देश्य उस समय भिंड ज़िले के अटेर क्षेत्र के 96 गांवों के किसानों को लाभ देने और 15,500 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करना था. साल 1980 में जब ज़मीनी स्तर और इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ उस दौरान इस योजना की लागत भी क़रीब 3 करोड़ 97 लाख 59 हज़ार 800 रुपय थी. जिसमें 2006 तक 3 करोड़ 61 लाख रुपय खर्च हो चुके थे. जबकि 2008 तक इसकी लागत बढ़कर 90 करोड़ रुपय तक पहुंच गई थी. वहीं एक बार फिर ये प्रोजेक्ट अब रिवाइव होगा और इसकी लागत अब क़रीब 125 करोड़ रुपये होने वाली है.
पहले ‘बजट’ ने रोका फिर वन विभाग ने ठप कराई :मध्यप्रदेश सरकार की किसान हितैषी इस कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना के सितारे शुरू से ही गर्दिश में चलते आ रहे हैं. 1980 में शिलान्यास के बाद जहां बजट ना मिलने से काम रुका था वहीं 1986 में भी परियोजना दोबारा शुरू हुई लेकिन दो साल में बजट के अभाव से एक बार फिर काम बंद हुआ और योजना ठंडे बस्ते में चली गई वहीं तीसरी बार जब 2008 में इसकी शुरुआत हुई तब वन विभाग द्वारा इस परियोजना के अन्तर्गत आ रही घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में निर्माण करने के लिए पर्यावरण विभाग की अनुमति ना लेने को लेकर सिंचाई विभाग को पत्र लिख कर आपत्ति दायर की गई. लेकिन अधिकारियों की ढीलपोल के चलते 2010 में इस परियोजना पर रोक लगा दी गई.