भिंड।कहा जाता है चंबल के पानी की तासीर गर्म है यहां बात बात पर बंदूक की गोलियां चल जाती हैं. लंबे समय तक यहां डकैतों का राज भी रहा, लेकिन इसी चंबल में डाकुओं से पीड़ित एक ऐसी मां भी रहती है, जिसने अपने बच्चों को खून का बदला खून की चंबल की रीति में नहीं ढलने दिया. मां पढ़ा लिखा कर अपने बेटों को शिक्षित किया. इस मदर्स डे पर ईटीवी भारत आपको ऐसी मां से रूबरू कराने जा रहा है. जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष और तपस्या से अपने दोनों बेटों को न्यायधीश बनाया. (bhind mother struggled and made children judge)
दोनों बेटों को बनाया न्यायधीश:जिस चंबल में खून का बदला लोग खून से ले लेते हैं, वहीं एक मां की तपस्या ने अपने बच्चों को उस काबिल बनाया है कि वे खूनीखेल खेलने वालों को सलाखों के पीछे पहुंचा सके उन्हें सजा दे सकें. ये मां हैं कृष्ण कुमारी भदौरिया, जिनके दो बेटे हैं. बड़े बेटे कृष्णपाल सिंह भदौरिया और छोटे बेटे कौशलेंद्र सिंह भदौरिया दोनों न्यायाधीश बन चुके हैं. जज कृष्ण पाल सिंह भदौरिया छत्तीसगढ़ के जशपुर में पदस्थ हैं, जबकि कौशलेंद्र सिंह भदौरिया मध्य प्रदेश के डबरा में एडीजे हैं.
डाकुओं ने कर दी थी पति की हत्या: कृष्ण कुमारी भदौरिया पहले भिंड के कनावर गांव में परिवार के साथ रहती थी. पति बृजभूषण सिंह न्यायालय में क्लर्क थे. 25 नवंबर 1989 में डकैतों ने उनकी हत्या कर दी थी. उससे पहले भी गांव में जमीनी विवाद में उनके देवर की हत्या हो गयी थी. वहीं पति की हत्या के बाद दूसरे देवर की भी हत्या कर दी गयी थी. इस तरह के हालात देखते हुए कृष्ण कुमारी भदौरिया ने गांव से भिंड शिफ्ट होने का फैसला लिया.
बदले की परंपरा से बच्चों को रखा दूर:बड़ा बेटा कृष्ण पाल सिंह जब 16 साल का था और छोटा बेटा कौशलेंद्र सिंह जब 13 साल का था, तब उसके पिता की हत्या हुई थी. दोनों बेटों के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी अब मां पर ही थी. ग्रामीण परिवेश में बदले की परंपरा में कहीं बच्चे भी ना ढल जाएं यह सोच कर उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाने का फैसला लिया, और भिंड के राजपूत बोर्डिंग में रहकर पढ़ाने का संकल्प किया.