भिंड।नए कृषि कानूनों का विरोध पूरे देश भर में दिखाई दे रहा है. किसान आंदोलन के तहत पूरे देश में मंगलवार को भारत बंद का आह्वान पर किसान संगठनों के साथ ही राजनीतिक दल भी किसानों के इस आंदोलन के समर्थन में हैं. भिंड जिले में भी किसान संगठनों और राजनीतिक दलों ने भारत बंद का आह्वान किया. लेकिन भिंड में इसका मिलाजुला असर दिखा. व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठान बंद भी रखे, लेकिन कई व्यापारी ऐसे भी रहे जिन्होंने रैलियां निकलने के बाद अपने प्रतिष्ठान वापस खोल लिए. इन सब के बीच किसान रैलियों में समर्थन देने पहुंचे.
दिखा मिला-जुला असर
भारत बंद को लेकर व्यापारियों में कल से ही संशय की स्थिति बनी हुई थी. जहां कुछ व्यापारी किसानों के आंदोलन का समर्थन करने भारत बंद का हिस्सा बनना चाहते थे, तो वहीं कई व्यापारी अपनी रोजी-रोटी के लिए दुकान खोलना चाहते थे. सुबह से ही जिलेभर में निकली किसान संगठनों की रैलियों ने इन प्रतिष्ठानों को बंद कराने की कोशिश की. ऐसे में मुख्य बाजार में ज्यादातर दुकानें बंद दिखीं. हालांकि, कई व्यापारियों ने रैलियों के गुजरने के बाद अपनी दुकान वापस खोल ली.
गोहद और मेहगांव में बेअसर हुआ 'बंद'
गुहागर के ग्रामीण इलाके में भी भारत बंद का कुछ खास असर नजर नहीं आया. वहीं गोहद में गोहद चौराहा इलाका जो कि सिख बहुल ग्रामीण क्षेत्र से लगा है, वहां किसानों ने पूरा क्षेत्र बंद करा दिया था. लेकिन गोहद कस्बे के अंदर बंद का कोई असर नजर नहीं आया. इसके साथ ही मेहगांव में भी ज्यादातर दुकानें खुली रहीं.
किसान संगठन और राजनीतिक दलों ने निकाली अलग-अलग रैलियां
भारत बंद के दौरान सुबह से ही भिंड शहर में राजनीतिक दलों और किसान संगठनों ने अलग-अलग रैलियां निकाली. इस दौरान वे लगातार व्यापारियों से अपने प्रतिष्ठान बंद करने का आह्वान करते रहे. कई जगह इन संगठनों ने दुकानदारों को जबरन दुकान बंद करने के लिए भी दबाव बनाया. हालांकि साथ चल रही पुलिस की वजह से यह दबाव नजर नहीं आ सका.
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समर्थन देने वाली कांग्रेस की हुई किरकिरी
किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली कांग्रेस की एक नहीं दो-दो बार भिंड शहर में किरकिरी हुई. सुबह गोल मार्केट पर गुजर रही किसानों की रैली में अपना समर्थन जताने आए कांग्रेस कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों को किसान संगठन ने मना कर दिया. किसान नेता संजीव बरुआ ने मौके पर मौजूद रहे कांग्रेस पदाधिकारियों को साफ लफ्जों में कह दिया कि अगर वे आम किसान की तरह आंदोलन का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो ठीक है. वे किसी राजनीतिक दल को इस आंदोलन का समर्थन कर राजनीतिकरण नहीं होने देंगे.
राजनीति नहीं, आम किसान की तरह करो विरोध
वहीं गोल मार्केट इलाके पर ही गांधी मार्केट में पिछले एक हफ्ते से धरने पर बैठे मध्य प्रदेश किसान महासभा के सदस्यों ने भी कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाया. क्योंकि जिस समय मध्य प्रदेश किसान महासभा के सदस्य धरने से उठ कर शहर में रैली निकाल रहे थे, उस दौरान धरना स्थल पर कांग्रेस पदाधिकारियों ने अपनी बैठक जमाते हुए भाषण बाजी शुरू कर दी. ऐसे में रैली से लौटते ही मध्य प्रदेश किसान महासभा के सदस्यों ने इसका विरोध किया. अपना आंदोलन हाईजैक करने की बात कहते हुए उन्होंने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से दो टूक कह दिया कि वह किसान हितेषी मुद्दों पर समर्थन देना चाहते हैं. ये अच्छी बात है. लेकिन इस तरह किसी पार्टी के बैनर को वे अपने आंदोलन से नहीं जोड़ना चाहते. उनका मंच किसानों के लिए है. किसी की राजनीति को चमकाने के लिए नहीं है.
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कांग्रेस में 85 फीसदी कार्यकर्ता किसान
वहीं इस मामले पर कांग्रेसियों का कहना है कि कांग्रेस में 85 फीसदी कार्यकर्ता किसान हैं. ऐसे में इस मुद्दे पर कांग्रेस ने आंदोलन का समर्थन देने का फैसला किया है. रहा सवाल किसी बैनर का तो उसमें कोई गलत बात नहीं है. अगर कोई दल समर्थन दे रहा है तो उस दल का सिंबल यह झंडा तो दिखाई देगा ही.
सरकार को दी चेतावनी
इन सभी समीकरणों के बाद धरने पर बैठे किसानों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि इस आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार से बुधवार को छठी वार्ता होनी है. अगर उसमें कोई संतोषजनक निष्कर्ष नहीं निकलता है तो आने वाले समय में किसानों का आंदोलन और उग्र हो जाएगा, जिसके लिए सरकार तैयार रहे.