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Mahashivratri 2023: MP के इस शिवालय में 848 वर्ष से निरंतर जल रही अखंड ज्योति, जानें किसने कराया था निर्माण

इस वर्ष 18 फरवरी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाएगा. इस मौके पर हम आपको एक ऐसे शिवालय के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका निर्माण खुद सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने कराया था. चम्बल में स्थित वनखंडेश्वर महादेव मंदिर में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के द्वारा जलाई दो अखंड ज्योति आज भी प्रज्वलित हैं. आइये जानते हैं इस ऐतिहासिक मंदिर से जुड़े इतिहास और महत्व के बारे में.

Mahashivratri 2023
848 वर्ष से निरंतर जल रही अखंड ज्योति

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Published : Feb 17, 2023, 12:09 PM IST

भिंड।महाशिवरात्रि का पर्व आते ही शिवालयों में भक्ति का जमावड़ा उमड़ता है दूर दूर से शिव भक्त अपने आराध्य को पूजने भोलेनाथ के दर पर पहुंचते हैं. ऐसा ही मंदिर चम्बल घाटी के भिंड में स्थित है. जिसे वनखण्डेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. महाशिवरात्रि के मौके पर दूर दूर से ना सिर्फ भक्त दर्शन को आते हैं, बल्कि हजारों कांवड़िए कई कोस चलकर कांवड़ चढ़ाने लाते हैं.

महाशिवरात्रि का त्योहार

मंदिर के इतिहास की दास्तान:भारतीय पुरातत्व सर्वे के मुताबिक, वनखण्डेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करीब 11वीं सदी में पृथ्वीराज चौहान ने कराया था. महादेव के इस मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में गिना जाता है. माना जाता है कि 1175 ई. में जब सम्राट पृथ्वीराज चौहान महोबा के चंदेल राजाओं से युद्ध लड़ने जा रहे थे. उस दौरान सम्राट ने अपनी सेना का पड़ाव भिंड में बनाया था. यहां बनाई गई सुरक्षा चौकी आज भिंड किले के रूप में जानी जाती है.

वनखण्डेश्वर महादेव मंदिर

स्वप्न में देखा था शिवलिंग:कहा जाता है कि, जब युद्ध से पहले एक रात सम्राट पृथ्वीराज चौहान यहां ठहरे हुए थे तो रात्रि में सोते समय उन्हें स्वप्न में पता चला की जमीन के अंदर भोलेनाथ का शिवलिंग है. नींद खुलने पर उन्होंने उस स्थान पर खुदाई करवाई तो जमीन से शिवलिंग प्रकट हुआ. सम्राट शिवजी के भक्त थे. इसलिए उन्होंने उसी जगह मंदिर का मठ तैयार करा कर शिवलिंग की स्थापना की .11वीं सदी में भिंड का पूरा इलाका वन क्षेत्र था. इसलिए शिवजी के इस मंदिर को वनखण्डेश्वर महादेव नाम से जाना गया.

848 वर्ष से निरंतर जल रही अखंड ज्योति

आज भी प्रज्वलित अखंड ज्योति: मंदिर की स्थापना के बाद सम्राट पृथ्वीराज चौहान महोबा पर चढ़ाई करने गए और युद्ध फतह किया. युद्ध जीतने के बाद वे जब वापस लौटे तो वनखण्डेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की और उनकी आराधना में घी से दो अखंड ज्योति जलाई जो 8 शताब्दी बाद आज भी निरंतर मंदिर के गर्भग्रह में शिवलिंग के पास प्रज्वलित हैं. सम्राट के बाद भी इन अखंड ज्योति को जनमानुस और शिवभक्तों ने ठंडा नहीं होने दिया. 18वीं शताब्दी में जब अंग्रेजी हुकूमत थी उस दौरान ग्वालियर के सिंधिया राजघराने ने इस मंदिर की देखभाल और अखंड ज्योति का ध्यान रखने के लिए दो पुजारी नियुक्त किए जिनके वंशज अब भी इस मंदिर में शिवजी की सेवा कर रहे हैं.

शिवालयों में भक्तों का जमावड़ा

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करोड़ों की लागत से मिलेगा नया स्वरूप: करीब 848 वर्ष पुराने इस शिवालय में हजारों लाखों श्रद्धालु वनखंडेश्वर महादेव के दर्शन को आते हैं. महाशिवरात्रि और सावन में तो भक्तों की भीड़ देखने लायक़ होती है लेकिन समय की मार इस एतिहासिक मंदिर पर भी पड़ी है मंदिर को सुरक्षित रखने और मरम्मत के लिए जीर्णोद्धार जरुरी हो चुका है जिसके लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की क्लीयरेंस मिलने के बाद मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जीर्णोद्धार का फ़ैसला लिया गया जिसके लिए क़रीब 4 करोड़ का बजट प्रस्तावित है क़रीब 50 लाख रुपय तो इसके लिए दिये भी जा चुके हैं इस एतिहासिक मंदिर की मरम्मत और नया रूप देने की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग को सौंपी गई है. जो इसका खाका भी तैयार कर चुके है. जल्द ही मरम्मत और निर्माण कार्य भी शुरू होंगे.

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