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कितना कारगर है भिंड में पॉक्सो एक्ट ? - नाबालिग छेड़छाड़ मामला

भिंड जिले में वर्तमान स्थितियों को देखते हुए जिला स्तर पर एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया है. जिसमें अपर जिला एवं सत्र न्याधीश नियुक्त होते हैं. जिन्हें पॉक्सो एक्ट के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं.वहीं भिंड में पॉक्सो एक्ट कितना कारगर है देखिए इस रिपोर्ट में...

pocso act
पॉक्सो एक्ट

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Published : Mar 30, 2021, 9:47 PM IST

Updated : Mar 31, 2021, 2:04 PM IST

भिंड।भारत के कुल जनसंख्या का 37% हिस्सा बच्चों का है. विश्व में यह संख्या 20 प्रतिशत है, इसलिए बच्चों का यौन शोषण एक सामुदायिक चिंता का विषय बन गया है. क्योंकि ज्यादातर बच्चे अपने साथ हुई घटनाओं को सामने नहीं ला पाते हैं या समाज के दबाव में खुलकर अपनी बात नहीं रख पाते हैं. हालांकि कई बार योन शोषण से संबंधित मामले न्यायालय तक भी पहुंचते हैं. इस तरह के प्रकरण पॉक्सो (POCSO) ऐक्ट के अंतर्गत आते हैं. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेशों में पॉक्सो के मामलों की सुनवाई के लिए अलग से विशेष अदालतों के गठन के निर्देश दिए थे. भिंड जिले में भी पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत बनाई गयी है और इन मामलों की सुनवाई एडीजे द्वारा की जाती है.


ज़िले में पॉक्सो एक्ट के लिए बनायी गयी एक विशेष अदालत

भिंड जिले में वर्तमान स्थितियों को देखते हुए जिला स्तर पर एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया है. जिसमें अपर जिला एवं सत्र न्याधीश नियुक्त होते हैं. जिन्हें पॉक्सो एक्ट के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं. इस बात की जानकारी देते हुए जिला बार काउंसिल के अध्यक्ष एडवोकेट रज्जन सिंह ने बताया की वर्तमान में भी पॉक्सो की विशेष अदालत में करीब 70 मामले विचाराधीन हैं. जिनके लिए अलग से बनाए गए विशेष न्यायालय में षष्ठम अपर जिला एवं सत्र न्यायधीश जस्टिस श्वेता गोयल सुनवाई करती हैं. यह कोर्ट न्यायालय परिसर में लेकिन एकांत में अलग फ्लोर पर है, जिससे सुप्रीम कोर्ट की मंशा अनुसार बच्चों को अलग माहौल मिले.

रज्जन सिंह, बार काउंसिल अध्यक्ष

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पोर्न, उत्तेजक विज्ञापनों ने दिया मामलों को बढ़ावा

बार काउंसिल अध्यक्ष रज्जन सिंह का मानना है कि आजकल पॉक्सो एक्ट के तहत सामने आधे मामलों में आरोपियों का मेंटल स्टेट अलग रहता है. जिनका बड़ा करण है की मोबाइल पर पोर्न व उत्तेजक विज्ञापन आदि से उनके दिमाग पर कई बार गहरा असर पड़ता है. वे इस तरह की घिनौनी हरकतों को अंजाम दे देते हैं.

एक्सपर्ट की राय
क्या कहते हैं एक्स्पर्ट


पॉक्सो एक्ट से सम्बंधित मामलों में केस लड़ने वाले अधिवक्ता एड. अखिलेश सिंह भदौरिया कहते हैं कि पॉक्सो एक्ट में दर्ज मामलों की सुनवाई में सबसे बड़ी दिक्कत डीएनए रिपोर्ट को लेकर आती. क्योंकि इस तरह के मामलों में ज़्यादातर केस टीनेजर्स के होते हैं और लगभग इनकी उम्र 16- 18 वर्ष की होती है. इस दौरान उनका बौद्धिक विकास एक जैसा होता है. ऐसे में उनसे यह गलतियां भी होती हैं. लेकिन कंसर्न की उम्र 18 वर्ष होने की वजह से एक्चुअल मामलों की संख्या कई गुना तक बढ़ी है.

अखिलेश भदौरिया, अधिवक्ता

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DNA रिपोर्ट्स की वजह से करना पड़ता है इंतज़ार


वहीं कई बार इस तरह के केस में गलत DNA रिपोर्ट भी बड़ी परेशानी बनती हैं. जिसकी वजह से कई बार केस लंबा खिंच जाता है, पूरे प्रदेश में DNA टेस्टिंग के लिए सिर्फ़ एक ही लैब उपलब्ध है. जिसकी वजह से भी DNA रिपोर्ट के लिए कई बार 12 महीने तक का इंतज़ार करना पड़ता है. कई केस में तो यह अवधि डेढ़ साल तक देखी गई है. जबकि इन केस के ट्रायल काफी समय पहले ही खत्म हो चुकी होती है. जिसकी वजह से न्याय के लिए एक रिपोर्ट की वजह से पीड़ित पक्ष को इंतज़ार करना पड़ता है. इस तरह के मामलों की वजह से केस पेंडिंग होते हैं या कई बार न्यायालय तक पहुंचने में भी समय ले लेते हैं. यह एक बड़ा कारण है कि भिंड में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों की संख्या कोर्ट में कम है.

कम मामले की क्या है वजह?

यह है विशेष अदालतों के गठन का नियम
9 दिसम्बर 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने स्पष्ट किया था कि पॉक्सो कानून के तहत 100 से ज्यादा प्राथमिकियों वाले प्रत्येक जिले में एक अदालत गठित करने का उच्चतम न्यायालय के पहले एक निर्देश का यह मतलब है कि वहां कानून के तहत केवल ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक विशेष अदालत होनी चाहिए. जिन जिलों में पॉक्सो अधिनियम के तहत 100 प्रकरण हों, वहां एक विशेष अदालत का गठन किया जाना चाहिए. जहां 300 या उससे ज़्यादा केस हों वहां 2 विशेष अदालतें होंगी. पीठ ने यह भी स्पष्ट किया था की पॉक्सो के मामलों का विशेष पॉक्सो अदालतों को निपटारा करना चाहिए, जो अन्य मामलों पर सुनवाई नहीं करेगी.

Last Updated : Mar 31, 2021, 2:04 PM IST

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