भिंड।मंडियों और कृषि उपार्जन केंद्रों में खरीफ की फसलों की खरीदी शुरू हो गई है. भिंड में भी बाजरा और ज्वार खरीदी के लिए 8000 किसानों ने पंजीयन कराया है, तो वहीं जिले में 20 उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं, लेकिन इन केंद्रों पर तौल कांटों की कमी किसानों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है. अपनी फसल की तुलाई के लिए अन्नदाता घंटों लाइनों में लगने को मजबूर हैं. यह अवधि कई किसानों के लिए दिनों में बदल चुकी है, कई किसानों की दिवाली भी उपज बेचने के इंतजार में लाइनों में ही मन गई.
लाइन में लगा अन्नदाता परेशान केंद्र पर सुचारू नहीं तुलाई
फसल उपार्जन केंद्र पर पहुंचने पर सैकड़ों किसान ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं, ईटीवी भारत ने जब किसानों से परेशानी को लेकर बात करना शुरू किया तो प्रबंधकों ने ट्रैक्टर ट्रॉली अंदर बुलाना शुरू कर दिया. केंद्र में पाया गया कि कुछ कांटों पर बिना तुलाई के अंदाजन बोरियां भरी जा रही थी, लेकिन इस लापरवाही की जिम्मेदारी कोई लेने को तैयार नहीं.
तौल कांटों की कमी
ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर ईटीवी भारत ने पाया कि सेंट्रल वेयरहाउस उपार्जन केंद्र पर छह कांटों से तुलाई की जा सकती थी, लेकिन केवल तीन कांटे ही चालू स्थिति में पाए गए. ऐसे में फसल खरीदी की गति काफी धीमी है. यदि सभी तौल कांटे शुरू हो जाते तो यह गति दोगुनी होती.
एक दिन में सिर्फ 12 ट्रॉली की तुलाई
किसानों ने बताया कि फसल खरीदी केंद्र पर केवल एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 12 ट्रॉली तुल पा रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से आए किसानों को अपनी बारी के लिए अगले दिन का इंतजार करना पड़ रहा है. उसमें भी अगर नंबर आया तो ठीक नहीं तो यह इंतजार और भी बढ़ जाता है. कई किसानों ने तो बताया कि वह लोग 11 नवंबर से रुके हुए हैं और दिवाली भी फसल खरीदी केंद्र पर ही मनानी पड़ी है.
लाइन में लगा अन्नदाता परेशान अखर रहा ट्रैक्टर का भाड़ा
किसानों के मुताबिक सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीदी की व्यवस्था तो कर दी लेकिन, अपनी बारी के इंतजार में कई दिनों से यहां रुकना पड़ रहा है. ऐसे में हर रोज हो रही देरी की वजह से प्रतिदिन 600 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से ट्रैक्टर का भाड़ा लग रहा है. ऐसी स्थिति में फसल बेचने पर जितना फायदा नहीं होगा उससे ज्यादा तो नुकसान हो रहा है.
अधिकारियों के रटे रटाए जवाब
किसानों को हो रही समस्याओं को लेकर जब भिंड कलेक्टर से बात की गई तो एक बार फिर अधिकारियों के रटे रटाए जवाब सामने आए. कलेक्टर ने कहा कि कुछ समस्या किसानों को आ रही थी, जिनके लिए व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं. जहां तौल कांटों की कमी होगी वहां पर उनकी पूर्ति की जाएगी. जहां कर्मचारियों की जरूरत होगी वहां भी व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं. कुल मिलाकर किसानों को किसी तरह की परेशानी न हो इस बात का ध्यान रखने की पूरी कोशिश की जा रही है.
कलेक्टर ने कहा कि फसल बेचने का समय निकल चुका है, ऐसे में शासन को पत्र लिखकर सात दिन की अवधि बढ़ाने की मांग भी उन्होंने की है. वहीं खुले में रखा बाजरे की बात पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में जांच कराई जाएगी और जहां भी उसकी भी लापरवाही सामने आएगी उस पर कार्रवाई की जाएगी.
खत्म हो रही समय सीमा
अपनी बारी के इंतजार में खड़े किसानों का कहना है कि तुलाई केंद्र पर हो रही लापरवाही का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है. क्योंकि समय पर तुलाई नहीं होने से पात्रता पर्ची निष्क्रिय हो रही है. लेकिन 11 तारीख से खड़े अन्नदाता सोसाइटी की लापरवाही की वजह से फसल नहीं बेंच पाए हैं. कई किसानों के sms अब इनवैलिड हो चुके हैं. ऐसे में आगे अपनी फसल कैसे बेचे उन्हें समझ नहीं आ रहा है.
एसडीएम की बांटी पर्चियां भी अमान्य
कुछ किसानों को एसडीएम ने व्यवस्था बनाने के लिए हस्तलिखित प्रतियां तुलाई के लिए दी, लेकिन सोसायटी द्वारा उन्हें अमान्य कर दिया गया. किसानों का कहना है कि उन्हें लाइन में लगकर अपना टोकन लेने को कहा जा रहा है. जबकी उनके पास sms है फिर भी उन्हें लाभ नहीं दिया जा रहा है.
खाने-पीने की नहीं है व्यवस्था फसल उत्पादन केंद्र पर किसानों के लिए खाने पीने की व्यवस्था भी नहीं है. वे पिछले कई दिनों से अपनी फसल बेचने के लिए डटे हुए हैं, लेकिन उनके लिए प्रशासन द्वारा किसी तरह की व्यवस्था नहीं की है. उन्हें घर से खाना मंगवाना पड़ता है या बाजार में खाना पड़ता है. पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं है.
बारिश ने भी बढ़ाई मुसीबत
फसल खरीदी केंद्रों पर बाजरे की फसल खुले में रखी हुई है. ऐसे में पिछले दिनों हुई बारिश में कई जगह फसलें भीगकर खराब होने की स्थिति में आ गई हैं. किसानों ने तो तरपाल लगाकर ट्रॉली में रखी अपनी फसल बचा ली, लेकिन जो फसल तुलाई होने के बाद बाहर रखी हुई थी उस पर किसी का ध्यान नहीं.
इन सब समस्याओं को लेकर किसान नेता संजीव बरुआ का कहना है कि लगातार शासन द्वारा किसानों के साथ छलावा होता आया है. खुद को किसानों की सरकार कहने वाली शिवराज सरकार आज किसानों की समस्याएं हल करने में विफल नजर आ रही है. अगर जल्द ही इन समस्याओं को दूर नहीं किया गया तो एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा.