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फूलों का बिजनेस डाउन, लाखों का घाटा झेल रहे फूल उत्पादक - Lockdown 2.0

भिंड में लॉकडाउन के कारण फूलों का उत्पाद पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है. न शादियां हो रही है न मंदिर खुले हैं. जिसके चलते किसानों से फूल व्यापारी भी माल नहीं खरीद रहे हैं. इसका सीधा असर उत्पादकों की रोजी रोटी पर पड़ रहा है.

Flower business down
फूलों का बिजनेस डाउन, लाखों का घाटा झेल रहे फूल उत्पादक

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Published : Apr 26, 2020, 11:59 PM IST

भिंड। महामारी कोरोना वायरस ने दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला दिया है. अगर दुनिया इस संकट पर जीत भी हासिल कर लेगी तो भी गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभाल पाना मुश्किल होगा. देश के अंदर भी कुछ ऐसे ही हालात है. जहां लॉकडाउन की वजह से छोटे और बड़े धंधे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. किसान भी अपनी कटी हुई फसल को लेकर काफी चिंतित है. एक तो खेतों में तैयार रखी फसल और दूसरी प्रदेश में मंडराते बादल, ऐसे में फूल की खेती करने वाले किसानों का भी हाल बुरा कुछ अच्छा नहीं है.

फूलों का बिजनेस डाउन, लाखों का घाटा झेल रहे फूल उत्पादक

भिंड में फूलों का उत्पाद पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है. न शादियां हो रही है ना मंदिर खुले हैं. जिसके चलते किसानों से फूल व्यापारी भी फूल नहीं खरीद रहे हैं. इसका सीधा असर उत्पादकों पर पड़ रहा है. खेतों में फूलों की फसल खड़ी है लेकिन खरीदने वाला कोई नहीं हैं. फूल की खेती करने वाले किसानों की हालत यह हो गई है कि उन्हें फसल की लागत निकलने की भी उम्मीद कम ही दिखाई दे रही है. फूल उत्पादक के लिए जीवन यापन के करना टेड़ी खीर साबित हो रहा है.

फूल उत्पादक बताते हैं कि हमेशा वे तीन से चार बीघा खेत में फूल लगाते थे लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते समय पर बीज नहीं खरीद सके. जो दो बीघा खेत में फूलों की खेती की है वह भी अब झुलसने वाली गर्मी में सूख रहे हैं. साल के आठ महीने शादियों का सीजन और मंदिरों के लिए भी माला तैयार करने के लिए फूलों की बराबर मांग रहती है लेकिन मांग नहीं होने पर चार से पांच लाख का नुकसान हो चुका है.

फूल की खेती करने वाले पुनीत पाठक और अरविंद सिंह बताते हैं कि उनके पास न तो राशन कार्ड है न ही गरीबी रेखा कार्ड है. जिसके कारण उन्हें प्रशासन की ओर से मदद नहीं मिल पा रही है.फूल उत्पादकों के लिए अब जीवन एक संघर्ष बनता जा रहा है. क्योंकि यह किसी को नहीं पता कि लॉकडाउन कब खुलेगा. ऐसे में शादियों और मंदिरों से चलने वाला बिजनेस कब तक बंद रहेगा यह कोई नहीं जानता. ऊपर से प्रशासन की मदद न मिल पाना भी इनकी मुश्किलों को बढ़ा रहा है.

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