भिंड। क्षेत्र के ग्राम पंचायतों में स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों के निर्माण को लेकर नेताओं और अधिकारियों के दावे दम तोड़ते नजर आ रहे हैं. सरकार द्वारा शौचालय निर्माण की प्रोत्साहन राशि के रूप में करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, फिर भी इस योजना का लाभ गरीब लोगों को नहीं मिल पा रहा है.
भिंड में ओडीएफ का रियलिटी चेक साल 2018 में जिले के डिड़ी पंचायत को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है, लेकिन पंचायत में आने वाले गांवों में शौचालयों की निर्माण स्थिति का जायजा लिया गया तो पता लगा कि शौचालय का 70 फीसदी काम ही पूरा हो सका है. इसको लेकर ग्रामीणों में नाराजगी है, जबकि वे लोग खुले में शौच जाने को भी मजबूर हैं.
रियलिटी चेक में सामने आयी ओडीएफ की सच्चाई
डिड़ी ग्राम पंचायत के सरपंच ने 100 फीसदी शौचालय बने दिखाकर पंचायत को ओडीएफ तो घोषित करा लिया. लेकिन पंचायत के मनफूल का पुरा गांव में जब रियलिटी चेक किया तो पता चला कि इस गांव में 55 घर हैं, जहां 300 से ज्यादा लोग रहते हैं. लेकिन शौचालय वमुश्किल 25 घरों में ही बने हैं. हालात यह है कि इनमें से कुछ शौचालय घटिया निर्माण के चलते टूट भी गए हैं.
गांव के एक बुजुर्ग बताते हैं कि साल भर पहले भी अपना शौचालय बनवा रहे थे लेकिन सरपंच ने सरकारी शौचालय बनवाने का हवाला देकर काम रुकवा दिया, लेकिन साल भर बीतने के बाद भी शौचालय नहीं बना और घर में रखा पुराना मटेरियल ही बर्बाद हो रहा है. ऐसे में यह लोग शौच के लिए बाहर खेतों में जाने को मजबूर हैं. वहां डिड़ी ग्राम पंचायत के सरपंच सोमवीर सिंह का कहना है कि हर घर में शौचालय बनवा दिए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत सरपंच का झूठ साफ उजागर कर रही हैं.
ऐसे कैसे पूरा होगा खुले में शौच मुक्त का सपना
स्वच्छता मिशन के तहत केंद्र सरकार ने गांवों को खुले में शौच मुक्त कराने का जो सपना संजोया वह महज कागजों में सिमट कर रह गया है. यूं तो साल भर पहले जिले की लगभग सभी पंचायतों को ओडीएफ करार दिया गया है, लेकिन हकीकत में ग्रामीण इलाकों में 30 फीसदी आबादी आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर है. यह हालत तब है जब सरकार द्वारा लगातार शौचालय निर्माण के लिए ग्राम पंचायतों को राशि मुहैया कराई जा रही है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में शौचालय निर्माण की जमीनी हकीकत कई सवाल खड़ा करती है.