भिंड। कोरोना महामारी से हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है. जिसमें बच्चों की शिक्षा भी अछूती नहीं रही है. महामारी के चलते यह पूरा साल खासकर बच्चों की पढ़ाई के लिए घर में ही निकल गया. कक्षा एक से 8वीं की क्लासिस तो अब भी शुरू नहीं हो सकी है. वहीं 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं जल्द ही होने वाली है, लेकिन एक बड़ी समस्या समय पर सिलेबस ख़त्म न हो पाने को लेकर है. ऐसे में भिंड जिले में छात्रों को क्या कुछ समस्याएं आ रही है. इस पर डालिए नजर ईटीवी भारत की रिपोर्ट के जरिये...
शासकीय उत्कृष्ट उच्च माध्यमिक विद्यालय शिक्षा की दृष्टि से बोर्ड परीक्षाएं छात्रों के जीवन का एक अहम पड़ाव होती है. दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं के लिए छात्र पूरे साल मेहनत करते हैं. क्योंकि उनके नतीजे उनके आने वाले भविष्य में भी बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं. लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के चलते शिक्षण सत्र 2020-21 पर गहरा असर हुआ है. कहने को बोर्ड परीक्षाएं देखते हुए 9वीं से लेकर बारहवीं तक की कक्षाएं लगाने की सरकार ने इजाज़त तो दी है. लेकिन इस फैसले के आते-आते शैक्षणिक सत्र का ज़्यादातर समय गुजर चुका था.
सिलेबस अब तक अधूरा, रिवीजन कैसे होगा
चंद महीने पहले शुरू हुई फिजिकल क्लासों के ज़रिए बच्चे अपने बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे हैं. लेकिन छात्र अब भी अपने परीक्षा की तैयारियों को लेकर संतुष्ट नहीं आ रहे हैं. जिसके पीछे एक बड़ी समस्या अधूरे सिलेबस को लेकर हो रही है, क्योंकि शासकीय स्कूल हो या प्राइवेट संस्थान सभी जगह कक्षाएं कुछ महीने पहले ही शुरू हुई है. इससे पहले ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से ही बच्चों को पढ़ाए जा रहा था. लेकिन फिजिकल क्लास और ऑनलाइन क्लास में अंतर होता है. जिसकी वजह से बच्चों को अपना सेलेब्स पूरा करने में काफी समय लग रहा है. फ़िलहाल अच्छा 9वीं से बारहवीं तक के ऑफ़लाइन क्लास शुरू हो चुकी है लेकिन शासन की मंशा थी कि जनवरी अंत तक बच्चों का सिलेबस पूरा हो जाए. लेकिन अब तो फरवरी का महीने भी गुजर चुका है.
एग्जाम पास लेकिन तैयारी की टेंशन
10वीं क्वलास की छात्र निकिता राजावत का कहना है कि अब तक उनका सिलेबस पूरा नहीं हुआ है ऐसे में परीक्षाएं अब नज़दीक आ गए हैं. तो इस बात की भी टेंशन है कि बुक रीडिंग के माध्यम से अधूरे सिलेबस के साथ किस तरह परीक्षा देंगे. स्कूल शिक्षा मंडल द्वारा लगातार नीतियों में बदलाव और नई नई नोटिफिकेशन की वजह से छात्र और शिक्षक दोनों ही परेशान हैं. बारहवीं के छात्र प्रवीण का कहना है कि लगातार बोर्ड की नीतियों में बदलाव से परीक्षा पैटर्न स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. अब तक छात्रों को यह समझ नहीं आ रहा है कि वे किस विषय पर फ़ोकस करें. क्योंकि इस तरह के हालात बने रहे तो, निश्चित ही उनका परीक्षा परिणामों पर इसका गहरा असर दिखाई देगा. वहीं छात्र रोहित दोहरे का भी कहना है कि अब तक सिलेबस पूरा नहीं हुआ है. ऐसे में टेंशन बढ़ गई है कि इसका असर कहीं न कहीं उनके परीक्षा के नतीजों पर भी पड़ेगा. इसमें एक बड़ी बात यह भी एक जब अब ही तक सिलेबस ही पूरा नहीं हुआ है रिवीज़न के लिए भी मुश्किल होगी क्योंकि रिवीज़न के लिए ज़्यादा समय नहीं बचेगा.
बिना ब्लूप्रिंट किस पर करें फोकस
दसवीं और बारहवीं की छात्रा से बात करने पर हमें यह भी पता चला बच्चों को तैयारियों के लिए अब तक ब्लूप्रिंट उपलब्ध नहीं कराए गए हैं. शासन ने कुछ समय पहले स्कूलों को एक ब्लू प्रिंट मुहैया कराया था. लेकिन बाद में उसे हटा लिया गया ऐसे में छात्र हो या शिक्षक दोनों को ही कई तरह के परेशानियां आ रही है. जहां छात्रों का कहना है कि बिना ब्लूप्रिंट के उन्हें अपनी तैयारी समझ नहीं आ रही. किस-किस विषय में किस अध्याय पर भी फोकस करें, किस चैप्टर से कितने अंकों के प्रश्न आएंगे ये सारी समस्याएं उनकी चिंताएं बढ़ा रही है. अमूमन शासन द्वारा पहले ही एक ब्लू प्रिंट जारी कर दिया जाता था जिससे परीक्षा के लिए तैयारियां करना छात्रों के लिए आसान हो जाता था. जिसमें ओटी से लेकर प्रश्नों का एक पूरा लेखा जोखा होता था और ज़्यादातर प्रश्न उसी ब्लू प्रिंट के आधार पर परीक्षा के दौरान आते थे लेकिन इस बार बच्चे बुक रीडिंग के आधार पर ही अपनी तैयारी कर रहे हैं.
छात्रों को एग्जाम की चिंता बदलती नीतियों ने बढ़ाई चिंता
वहीं छात्रा अंजलि का कहना है कि जिस तरह से बोर्ड अपने फैसलों में बार बार बदलाव कर रही है. ऐसे में खुद शिक्षा बोर्ड अभी तक संशय में हैं तो हम बच्चे तो कन्फ्यूजन का शिकार होंगे ही. अब तक न ब्लूप्रिंट मुहैया कराया गया है ना ही परीक्षाओं का भी प्रारूप स्पष्ट है. जिसकी वजह से उनकी तैयारी भी उस स्तर पर नहीं हो पा रही जैसा वे चाहते हैं.
ब्लूप्रिंट के अभाव में शिक्षक भी आश्वस्त नहीं
वहीं जब शिक्षकों से बात की तो उनका कहना था कि वाकई में बच्चे परेशान है. छात्रोंं के साथ ही टीचर्स को भी काफ़ी सारी समस्या देखने को मिल रही हैं. उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि वे बच्चों को क्या प्लान है महज़ किताबों के आधार पर उनकी तैयारियां कराई जा रही है. हमेशा से पहले ही ब्लूप्रिंट उपलब्ध करा दिया जाता था. पैटर्न पता होता था सारी समस्याएं उनके हिसाब से हल हो जाती थी. बच्चों को पढ़ाने के अलावा उन्हें अच्छे नतीजों के लिए तैयार कराना सभी शिक्षकों का दायित्व माना जाता है.
बेहतर परिणाम लाने की तैयारी
ऐसे में बिना ब्लूप्रिंट हम ये नहीं समझ पा रहे कि हम इस अध्याय पर फ़ोकस करें ऐसी कौन सी चीज़ें हैं जो हम बच्चों को बताएं. उनको ज़्यादा इम्पोर्टेंस दें. फिलहाल तो हमारी सबसे पहली कोशिश इस बात को लेकर है कि बच्चों को क्या समस्याएं आ रही है एक तरह से हम बच्चों की काउंसलिंग कर रहे हैं जो उनके डाउट है उन्हें हल किया जा रहा है. हमारी पूरी कोशिश है कि बच्चों को बचे हुए समय में बेहतर रिज़ल्ट के लिए तैयार कर लें. जिससे कि उनके भविष्य और बेहतर परिणामों मैं मदद मिल सके. शिक्षक प्रीति व्यास कहती हैं कि उन्हें 21 साल हो चुके हैं बच्चों को पढ़ाते हुए, लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि ब्लू प्रिंट के अभाव में वे ख़ुद है. इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हैं के बच्चों को कैसे तैयार करें.
अच्छे परिणाम आने के लिए बेहतक कोशिश
वहीं शिक्षक सुनील शर्मा का कहना है कि अधूरा सिलेबस समस्या तो है, लेकिन उनके सब्जेक्ट का लगभग 70 फीसदी सिलेबस में पूरा नहीं हुआ हैं. बच्चों को जो समस्याएं आ रही है उनका निराकरण करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है. उनकी पूरी कोशिश है कि बच्चों की पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी में है. इन सब परेशानियों का ज़्यादा असर न हो उनका मानना है कि डेढ़ महीने का समय बचा हुआ है और इस समय में वे बच्चों को तक परीक्षा के लिए तैयार कर रहे हैं. हर संभव कोशिश करेंगे, जिससे बेहतर नतीजे सामने आए.
पुराना पैटर्न या नई सेटिंग पर आएगा पेपर, स्थिति स्पष्ट नहीं
भिंड के सबसे टॉप स्कूल माने जाने वाले शासकीय उत्कृष्ट उच्च माध्यमिक विद्यालय क्रमांक -1 के प्राचार्य पीएस चौहान का भी मानना है कि शासन की मंच साथ ही जनवरी के महीने में सिलेब्स पूरा हो जाएगा और फरवरी तक बच्चे रिवीजन शुरू करते हैं लेकिन जनवरी तक छोड़िए फ़रवरी में अभी सिलेबस पूरा नहीं हो सका है और न ही बच्चों के लिए और शिक्षकों के लिए ये वाक़ई चिंता का विषय बनती जा रही है. क्योंकि इसमें एक बड़ा संस्थाएं इस बात को लेकर भी है कि पहले को भेंट की वजह से ऑनलाइन क्लासेस चल रही थी. उसके बाद आप ऑफलाइन क्लास लगाकर बच्चों को तो जो भी समस्याएं आ रही हैं उन्हें हल करने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन महामारी के बाद से ही बोर्ड की नीतियां समझ नहीं आ रही हैं.
बच्चों में फैली भ्रांतियां
प्राचार्य का मानना है कि अब तक बोर्ड ने यह स्थिति साफ़ नहीं की है कि आने वाली बोर्ड परीक्षाओं में जो परीक्षा पैटर्न आएगा. वह पुराने नीतियों के हिसाब से यह सेटिंग के हिसाब से आएगा या जो नया सेटिंग उन्होंने परीक्षा के लिए की है उस पद्धति पद्धति पर पेपर आएगा. जिसकी वजह से बच्चों में काफी भ्रांतियां है. हालांकि प्राचार्य पीएस चौहान का मानना है कि वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि बच्चों की सभी को एरिस दूर हो जाए और समय पर सिलेबस ख़त्म कराकर उन्हें तो रिवीज़न के लिए इतना समय दिया जा सके, जिससे कि उनके परीक्षा परिणाम बेहतर आए बच्चों की जो भी मदद हो सकती है. उसे पूरा करने के लिए टीचर्स पूरा प्रयास कर रहे हैं
स्कूल और छात्रों के आंकड़े
बता दें कि आने वाले कुछ महीनों के बाद होने वाली बारहवीं और दसवीं बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियों में प्रशासन भी जुड़ गया है. जानकारी के मुताबिक़ भिंड जिले में कुल 176 शासकीय स्कूल के बच्चे बोर्ड परीक्षाओं में बैठेंगे. जिनमें साल के हायर सैकंडरी स्कूलों की संख्या 70 है, जबकि 106 शासकीय हाई स्कूल है. वहीं निजी संस्थानों की बात की जाए तो ज़िले के 247 हायर सेकंडरी और हाईस्कूल के बच्चे इस बार परीक्षा में बैठने जा रहे हैं. इनमें छात्र संख्या की बात करें तो हाई स्कूल से कुल 26 हज़ार छात्र बोर्ड परीक्षा में बैठेंगे वहीं लगभग 13,000- छात्र 12वीं की बोर्ड परीक्षा में सम्मिलित होने वाले हैं.
आधे अधूरी तैयारी पर कैसे करें फोकस
आने वाले मई माह में बोर्ड परीक्षाएं मध्य प्रदेश में होने वाली है. बच्चों के लिए सिर्फ़ दो महीने का समय बचा है लेकिन बोर्ड परीक्षा के छात्रों का सिलेबस अब तक 70 फ़ीसदी ही पूरा नहीं हो सका है. ऐसे में उन्हें समय पर सिलेबस पूरा होने की ही सबसे बड़ी चिंता रिवीज़न को लेकर भी सता रही है. ऊपर से ब्लूप्रिंट उपलब्ध न कराया जाना उनका मनोबल गिरा रहा है. सरकार एक ओर शिक्षा पर विशेष फ़ोकस करने की बात कहती है लेकिन अब तक बोर्ड परीक्षाओं को लेकर खुद स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाई है. जिसका असर अब आने वाली बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों में देखने को मिल सकता है. क्योंकि इसबार यह बात कही ना कही छात्रों और शिक्षकों के मन में पहले ही घर का चुकी है.