भिंड। पांडवों के अज्ञातवास की तरह पांडरी गांव में मौजूद ये धरोहर भी गुमनामी के अंधेरे में गुम होता जा रहा है, इसी गांव में पांडवों ने अज्ञातवास के दिन काटे थे, उसी दौरान भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी, जहां बाद में मंदिर तामीर कर दिया गया, जो देवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है, लेकिन वक्त के साथ इसकी पहचान खत्म होती जा रही है. भिंड जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पांडरी गांव. इस गांव का नाम पांडरी इसलिए पड़ा क्योंकि महाभारत काल में पांडव अज्ञातवास के दौरान यहीं ठहरे थे. यही वजह है कि पांडू नगरी अब पांडरी के नाम से प्रचलित है.
आम तौर पर शिवलिंग का आकार गोल होता है, लेकिन पांडरी में स्थापित शिवलिंग का आकार अष्टकोणीय है, जो अपने आप में अद्भुत है. ग्रामीण बताते हैं कि पुरातत्व विभाग ने शिवलिंग के आकार का पता लगाने का प्रयास भी किया था, लेकिन आज तक इसका पता नहीं लग सका कि शिवलिंग की लंबाई कितनी है. मुगलों ने भी इस शिवलिंग को ले जाने के अनगिनत प्रयास किए, लेकिन सफल नहीं हो पाए. जिससे नाराज मुगलों ने मंदिर की कलाकृतियों और मूर्तियों को खंडित कर दिया था.