भिंड(bhind)। चम्बल क्षेत्र की पहचान कुख्यात डाकुओं और अवैध हथियारों से बनी बंदूक और दबंगई से जाती है. आज भी पूरे मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा लाइसेंस भिंड जिले में ही हैं. लेकिन एक समय था जब जिला अवैध हथियारों के निर्माण का गढ़ माना जाता था .भिंड जिले में भी कई जगह देसी कट्टे, बंदूके तैयार होती थीं. लेकिन समय के साथ माफिया भी आसान राह खोजने लगे बन्दूकों का धंधा कम हुआ और इसकी जगह अवैध शराब ने ले ली है. माफिया के बदलते स्वरूप और ट्रेंड पर ETV भारत की यह खास रिपोर्ट देखिए .
बंदूकें छोड़ शराब का कारोबार हथियारों की जगह अब शराब का कारोबार कर रहें माफिया
चम्बल क्षेत्र आज भी अपराधों के मामले में काफी आगे है. गोलीबारी लूटपाट और हत्या जैसी वारदातें आज भी यहां सामान्य है. लेकिन अब अपराधी भी अवैध हथियारों से ज्यादा अवैध शराब के धंधे में लग गए है. माना जाता है की हथियार का निर्माण जोखिम भरा होता है . अवैध हथियारों के निर्माण में लागत ज्यादा आती है. अवैध हथियारों में सबसे प्रचलित देसी कट्टे माने जाते हैं. जिनके निर्माण के लिए ट्रकों के स्टीरिंग व्हील का इस्तेमाल होता है. जो अब आसानी से नहीं मिल पाते हैं ऊपर से ये हथियार कई बार खराब क्वालिटी के होते हैं. ऐसे कट्टे फायरिंग के दौरान ही फट जाते हैं. जिसकी वजह से खुद की जान का जोखिम तो रहता ही है साथ ही कीमत भी नहीं निकल पाती. ग्राहक के पकड़े जाने पर हथियार खरीदी की जानकारी लीक होने का भी डर रहता है. आर्म्स एक्ट में सजा भी ज्यादा होती है.
बंदूक पर भारी होता नशे का कारोबार
इन सभी जोखिमों को देखते हुए चंबल अंचल में अब अपराधियों ने नया ट्रेंड अपनाया है. अब हथियारों की जगह अवैध शराब ने ले ली है.क्योंकि इस बनाना आसान है. यही कारण है की ज्यादातर माफिया अब ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध शराब की फैक्टरियां चला रहे हैं. इस साल पुलिस विभाग भिंड जिले में चार बड़ी शराब फैक्टरियां पकड़ चुकी हैं जहां भारी मात्रा में बनी हुई अवैध शराब और भारी मात्रा में एक्स्ट्रा न्यूट्रल ऐल्कोहल जिसे ओपी कहा जाता है पकड़ा गया है .अपराधी कानूनी प्रावधानों के दांवपेंच से बच कर निकल जाते हैं और दोबारा इस धंधे में लिप्त हो जाते हैं.
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कानूनी प्रावधानों का फायदा उठाते है माफिया
जिले के एसपी का कहना है की जिले में लगातार अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. एक आरोपी पर तो ग्वालियर भिंड मुरेना में कुल 40 मामले एक्साइज ऐक्ट के तहत दर्ज हैं. 2 एनएसए लगे हैं. ग्वालियर में भी कानून के कुछ ऐसे प्रावधान है जिनका फायदा उठाकर अपराधी बच निकलते है. माफिया अब इस धंधे को मोबाइल के जरिए चला रहे है. जैसे आज फैक्ट्री यहां है तो कल कही और अवैध शराब तैयार की जाती है . भिंड जिले के कोविड प्रभारी मंत्री और राज्यमंत्री ओपीएस भदौरिया के गृहग्राम अकलौनी में ही पिछले कुछ समय में दो बड़ी अवैध शराब की फैक्ट्रियां पुलिस ने पकड़ी हैं. पिछले पांच माह में आर्म्स एक्ट के 84 मामले दर्ज हुए .जबकि अवैध शराब के 354 केस दर्ज हुए. यानी आर्म्स एक्ट की तुलना में चार गुना से अधिक आबकारी एक्ट के मामले जिले के थानों में दर्ज हुए हैं.
क्यों फल फूल रहा अवैध शराब का धंधा
इस क्रिमिनोलोजि को समझें के लिए हमने एक्स्पर्ट से बात की. बतौर एक्स्पर्ट भिंड पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह ने बताया की अवैध हथियारों के मामलों में देखा जाए तो अब सैचुरेशन आ चुका है. अब लोग हथियार रखना कम कर चुके है इन हथियारों से होने वाले अपराधों में भी कमी आयी है. ऊपर से आर्म्स एक्ट में सजा भी ज्यादा है. लेकिन शराब के धंधे में मुनाफा काफी है. अवैध कट्टों के मुकाबले अपराधी अवैध शराब की फैक्ट्री लगाकर 10 गुना तक ज्यादा पैसा काम लेते हैं. इसी वजह से इस तरह का परिवर्तन दिखाई देता है. सजा के मामले में बड़ी संख्या में अवैध हथियार पकड़े जाने पर आर्म्स एक्ट में पहले 3 साल की सजा का प्रावधान था. जो अब बढ़कर 7 साल हो गई है. जबकि बड़ी मात्रा में अवैध शराब के पकड़े जाने पर अधिकतम 5 साल और 49(ए) में 4 माह से 4 साल तक की सजा का प्रावधान है.
कैसे किया जा सकता है सुधार
पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह मानते हैं की हमारे एक्साइज एक्ट में काफी बदलाव की जरूरत है. पुलिस भी एक्साइज एक्ट के बारे में स्टडी कर रही है. एक्साइज एक्ट केंद्र का नहीं बल्कि स्टेट का कानून है. अल्कोहल बनाने वाली कंपनिया जिन्हें D1 लाइसेन्स के नाम से जाना जाता है. तस्कर वहीं से फर्जी दस्तावेजों के जरिया फर्जी फैक्ट्रियों के नाम से बल्क में एक्स्ट्रा अल्कोहल यानी ओपी भर लाते हैं और उससे ग्रामीण इलाको में पुलिस से बचकर अवैध शराब तैयार करते हैं .इसलिए अल्कोहल के लिए भी कानून में सुधार और मोनीटरिंग की जरूरत है. इक्स्प्लोसिव एक्ट की तरह जहां से इक्स्प्लोसिव रिलीज किया जाता है और जिस डेस्टिनेशन तक जाता है इस रास्ते के भी जितने जिले है वहां के कलेक्टर एसपी को सेंट्रल लेवल से सूचित किया जाता है. ठीक इसी तरह एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल ओपी की मॉनिटरिंग भी होना चाहिए.ओपी की मूवमेंट या फैक्ट्री से दारू बनाने वाली फैक्ट्री तक मूवमेंट कैसे हो रहा है इसकी जानकारी राज्य स्तर और केंद्र स्तर पर होना चाहिए तभी इस समस्या से निजात पाया जा सकता है.