भिंड।कहते हैं कि 'हौसलों में दम हो तो उम्र भी मायने नहीं रखती, मेहनत से की गई कोशिशों से मंजिल भी दूर नहीं दिखती, खोज लेता है मुसाफिर भी खुद-ब-खुद रास्ता, जब तूफानों में भी कोई कश्ती नहीं मिलती.' किसी शायर की ये गजल बहुत खूबसूरती से जीवन की सच्चाई को दर्शाती है. यही शब्द भिंड के जय शर्मा के जीवन के मूल मंत्र नजर आते हैं. भारत के एक छोटे से जिले भिंड का स्कूली छात्र जिसने अपनी मेहनत के बलबूते पर अपने घर अपने गांव अपने जिले का नाम रौशन किया, एक ऐसे खेल में जिसे क्वालीफाई करने में अच्छे अच्छों के पसीने आ जाते है. बतौर स्कूली छात्र जय शर्मा बंदूक से अपने भविष्य पर निशाना लगा रहे हैं. जय एक स्कूल लेवल एयर राइफल शूटिंग प्लेयर या कहें पहले ऐसे प्लेयर हैं जिसने भिंड जिले में ही नहीं बल्कि ग्वालियर और चंबल संभाग से स्कूल गेम्स में शूटिंग के लिए नेशनल गेम्स में पार्टिसिपेट किया है.
2021 में बंदूक की तरफ बढ़ाया कदम:भिंड के मीरा कॉलोनी में रहने वाले 17 साल के जय शर्मा एक मध्यम परिवार से हैं. शहर के ही एक निजी स्कूल से पढ़ाई की और इस साल 12वीं पास कर स्कूली शिक्षा पूरी कर ली है. शूटिंग प्लेयर जय ने बताया कि ''उन्होंने एयर राइफल शूटिंग गेम की शुरुआत करीब तीन साल पहले की थी. वे पहले से स्पोर्ट्स से जुड़े हुए थे उन्होंने अलग लग खेलों में पार्टिसिपेट किया था, लेकिन 2021 में उन्होंने बंदूक की तरफ कदम बढ़ाया. भोपाल में आयोजित हुए शूटिंग ओपन ट्रायल में हिस्सा लिया लेकिन अन्य खिलाड़ियों के मुकाबले कुछ खास नहीं कर सके और बाहर हो गए. यहीं से मोटिवेशन मिला. राजधानी में शूटिंग फेडरेशन ज्वाइन की और कुछ दिन शूटिंग के बारे में जाना. इसके बाद वापस भिंड लौटे और जिला स्तरीय शूटिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. जिसके लिए भोपाल से उन्हे सरकारी स्कूल के कोच भूपेंद्र सिंह भदौरिया का नाम रिकमेंड किया गया. उनसे मुलाकात के बाद प्रैक्टिस सेशन की शुरुआत हो गई.''
प्रैक्टिस के लिए घर में ही बनाई शूटिंग रेंज:भिंड की ओर से पहले डिस्ट्रिक्ट फिर संभाग और स्टेट लेवल स्कूल गेम्स में हिस्सा लेने तक के लिए जय को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ा. क्योंकि शूटिंग एक महंगा खेल है जिसकी वजह है इसमें इस्तेमाल होने वाले टूल्स इक्विपमेंट बहुत महंगे होते हैं. उस वक्त भिंड जिले में कहीं शूटिंग रेंज भी नही थी कि ठीक से प्रैक्टिस हो सके. ऐसे में शुरुआती दिनों में कोच की मदद से कुछ दिन जुगाड़ से काम चलाया लेकिन जब बात नहीं बनी तो जय शर्मा ने कोच भूपेंद्र की मदद से खुद के खर्चे पर ढाई लाख रुपए की लागत से अपने ही घर में एक शूटिंग रेंज बना ली, जिसमे वे प्रैक्टिस करते हैं और कोच भूपेंद्र सिंह समय समय पर उन्हें गाइडेंस भी देते हैं. अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने स्कूल गेम्स में स्टेट लेवल टूर्नामेंट में मेडल भी जीता. इसके साथ ही उन्हें इसी महीने आयोजित हुए स्कूल गेम्स के नेशनल्स में खेलने का मौका मिला. जिसके साथ ही वे स्कूल गेम्स में नेशनल खेलने वाले ग्वालियर चंबल अंचल के इकलौते शूटिंग खिलाड़ी भी बन गए.
परिवार का मिलता है पूरा सपोर्ट:शिक्षा के साथ बच्चे के करियर की चिंता हर माता पिता को होती है. यही चिंता जय के पिता अखिलेश कुमार शर्मा को भी थी. अखिलेश एक प्राइवेट जॉब करते हैं. लेकिन उन्होंने अपने बेटे जय के स्पोर्ट्स में आगे बढ़ने की इच्छा को सपोर्ट करते हुए उसका साथ दिया, यह साथ न सिर्फ मनोबल बढ़ाने तक साथ रहा बल्कि आर्थिक रूप से भी वे लगातार जय की मदद कर रहे हैं. शूटिंग रेंज बनाने के लिए भी उन्होंने जय को आर्थिक सपोर्ट दिया.