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Published : Nov 8, 2021, 9:18 PM IST

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बूंद बूंद को तरसेगा भिंड! खतरे की आहट, 10 साल में 38 फीट नीचे चला गया पानी

भिंड में पानी का स्तर चिंताजनक स्थिति तक नीचे गिर चुका है. 10 सालों में यहां पानी जमीन में 38 फीट नीचे चला गया है. अगर यही हालात रहे तो वो दिन दूर नहीं जब भिंड एक रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा.

water problem in bhind
बूंद बूंद को तरसेगा भिंड!

भिंड। चम्बल अंचल का भिंड खनिज सम्पदा से सम्पन्न है, लेकिन जल स्तर के मामले में ज़िले के हालत बिगड़ते जा रहे हैं. बीते 10 सालों में भिंड का जल स्तर 38 फ़ीट तक नीचे जा चुका है. जो आने वाले समय में बड़े संकट की आहट है.

38 फीट नीचे गिर गया पानी

चम्बल, सिंध, क़्वारी सहित क़रीब दर्जन भर सहायक नदियों से घिरा होने के बावजूद भिंड ज़िला धीरे धीरे सूखे की ओर बढ़ रहा है. पानी की बर्बादी और जल संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी यहां सूखे के रूप में खतरनाक रूप लेता जा रहा है. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बीते 10 सालों में क़रीब 38 फ़ीट तक जलस्तर में गिरावट आ चुकी है.

बूंद बूंद को तरसेगा भिंड! खतरे की आहट, 10 साल में 38 फीट नीचे चला गया पानी


पीएचई विभाग के मुताबिक़ अभी ज़िले का एवरेज जलस्तर क़रीब 125 फ़ीट है. हालांकि ज़िले के हर इलाक़े में जल स्तर अलग अलग होता है. गोहद की बात की जाए तो यहां जल स्तर दो अलग अलग बेल्ट में मापा जाता है. पहला बेल्ट चन्दोखर, राय की पाली है. जहां जल स्तर 80 से 100 फ़ीट है. जबकि गोहद का ही मौ- मेहगांव बेल्ट पर जल स्तर 100-125 तक है. मेहंगाव और लहार विधानसभाओं में भी जल स्तर 80 से 100 फ़ीट तक है. लेकिन अटेर और भिंड ज़िले में जल स्तर में ज़्यादा गिरावट आती जा रही है. नदियों के किनारे लगे इलाक़ों में भी जल स्तर 60 फ़ीट है. जो हैरान करता है.

38 फीट नीचे गिर गया पानी

अतिक्रमण और जल संरक्षण का अभाव है समस्या की जड़

लगातार जल स्तर में गिरावट के पीछे कई वजह हैं. एक है तालाबों पर अतिक्रमण और दूसरा है बारिश के पानी का बह जाना. भिंड ज़िले में सरकार की मंशा अनुसार हर ग्राम पंचायतों में तालाब बनाए गए हैं. जिससे जल संचय किया जा सके. लेकिन तालाबों की अनदेखी और दबंगों द्वारा कई तालाबों पर अतिक्रमण के चलते बारिश का पानी तालाबों में इकट्ठा नहीं होता. दूसरी बड़ी वजह है बारिश के पानी का संरक्षण नहीं हो पाना. मौसम में बदलाव के चलते भिंड ज़िले में बारिश कम रहती है, इस बार अच्छी बारिश हुई, लेकिन बारिश के पानी की उचित निकासी व्यवस्था नहीं होने से वह नालियों और गंदे नलों से होते हुए नदियों में चला जाता है. जिसकी वजह से वह ज़मीन तक वापस नहीं पहुंच पाता .

एक्सपर्ट संजीव बरुआ के मुताबिक वाटर रिचार्जिंग और पेड़ लगाना ही विकल्प

वाटर रिचार्जिंग और पेड़ लगाना ही विकल्प

भूजल स्तर पर शोध कर रहे भिंड के संजीव बरुआ पिछले कई सालों से भी जलस्तर के आंकड़े इकट्ठा कर रहे हैं. उनके मुताबिक़ भिंड ज़िले का भूजल स्तर क़रीब 155 फ़ीट है. जबकि साल 2011 में यह जलस्तर 115-120 फ़ीट तक था. संजीव के मुताबिक़ इस तरह जल स्तर गिरने के कई कारण है. लेकिन इनसे निजात पाने के लिए कोई ख़ास कदम नही उठाए जाते. संजीव का मानना है कि लगातार कृषि के लिए ट्यूबवेल और घरेलू जल आपूर्ति के लिए बड़े बड़े बोरवेल की खुदाई और उपयोग भी जलस्तर में गिरावट के लिए ज़िम्मेदार हैं. इससे बचने के लिए हमें वॉटर रीचार्जिंग पर ध्यान देना होगा इसके लिए पेड़ लगाना एक मात्र सार्थक विकल्प है.

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बोरवेल के ज़रिए भिंड ज़िले में जल निकासी तो भारी मात्रा में हो रही है लेकिन ज़मीन में पानी का स्तर फिर से बढ़ाने के लिए कोई रीचार्ज सिस्टम नहीं है. ना ही बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए कोई वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की व्यवस्था है.

अतिक्रमण और जल संरक्षण का अभाव है समस्या की जड़

खतरे में भविष्य

समय रहते अगर भूजल स्तर की गिरावट पर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो भिंड ज़िले में जल संकट एक विकराल समस्या के रूप में उभरेगा. पहले ही भिंड ज़िले के कई क्षेत्र खारे पानी जैसी समस्या से जूझ रहे हैं. ऊपर से जलस्तर की गिरावट अंचल को रेगिस्तान की ओर धकेल रहा है. यही हाल रहे तो कौन जाने आने वाले सालों में कृषि बाहुल्य भिंड ज़िला पानी की बूंद बूंद को मोहताज हो जाए.

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