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Bhind में कानूनी साक्षरता शिविर का हुआ आयोजन, जानें क्या है मध्यस्थता कानून

भिण्ड में विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. इसमें लोगों को मध्यस्थता कानून समेत कई जनहित योजनाओं के बारे में जानकारी दी गई. इस एक्ट के तहत लोक अदालत के माध्यम से प्रकरण में राजीनामा किया जाता है, जिससे लोग अपने समय,धन एवं परिश्रम की बचत कर सकते हैं. (Bhind Legal Aid Workshop) (MP High Court)(arbitration law)

Bhind: Legal literacy and awareness camp organized
भिण्ड में विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का हुआ आयोजन

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Published : Sep 11, 2022, 3:28 PM IST

भिंड। प्रदेश के भिंड जिले में कानूनी साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. जिसमें लोगों को मध्यस्थता योजना, लोक अदालत, जनउपयोगी लोक अदालत, विधिक सहायता योजना तथा नालसा योजना 2015 के बारे में बताकर जागरूक किया गया. जानकारी के मुताबिक़ मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जबलपुर तथा प्रधान न्यायाधीश (अध्यक्ष जिला न्यायालय भिण्ड) के आदेश से तथा जिला न्यायाधीश (सचिव जिविसेप्रा) सुनील दण्डौतिया के मार्गदर्शन में डिडी खुर्द में यह आयोजन हुआ. (Bhind Legal Aid Workshop)

भिण्ड में विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का हुआ आयोजन

राजीनामा होना बेहतर विकल्प:शिविर का हिस्सा रहे विधिक सहायता अधिकारी सौरभ कुमार दुबे ने ग्रामीणों को मध्यस्थता योजना, समेत विभीन्न जनहित योजनाओं के बारे में जागरूक किया. उन्होने बताया कि इस ऐक्ट में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से प्रशिक्षित मध्यस्थ राजीनामा योग्य मामलों का निराकरण करते हैं. वे प्रकरण जिसमें राजीनामा हो सकता है उसे प्री-लिटीगेशन स्तर पर ही मध्यस्थता एवं लोक अदालत के माध्यम से निराकरण कराया जाना चाहिए. जिससे लोग अपने समय, धन एवं परिश्रम की बचत कर सकते है. (Information about mediation plan)

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भारत में 4.7 लाख मामले न्यायालयों में लम्बित:इस मौके पर ग्रामीणों को संबोधित करते हुए सौरभ कुमार दुबे ने बताया कि वर्तमान समय में भारत के अधीनस्थ न्यायालयों में कुल लगभग 4.7 लाख मामले लंबित हैं जिसके कारण किसी मामले के निराकरण में औसतन लगभग 5-10 वर्ष का समय लगता है. जिसके कारण लोगों को न्याय मिलने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. जिससे उन्हें समय, पैसा एवं परिश्रम आदि का भार सहन करना पड़ता है. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए मध्यस्थता एवं लोक अदालत प्रणाली ने राजीनामा योग्य प्रकरणों के निवारण हेतु भारत की संसद ने लीगल सर्विसेस ऑथोरिटी एक्ट 1987 को पारित किया है. (MP High Court)

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