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धरती को खोखला कर रहा खनिज संपदा का लालच, धमाकों से जूझ रही जिंदगियां, देखें खास रिपोर्ट

भिंड के एक गांव में खनिज संपदा का लालच धरती को खोखला कर रहा है. यहां पत्थर तोड़ने के लिए रॉक ब्लास्टिंग की जाती है. इससे घरों में दरारें आने लगी हैं. ग्रामीणों को हर पल मकान गिरने का डर सता रहा है.

rock blasting in stone mining in bhind
भिंड में पत्थर खनन में पत्थरबाजी

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Published : Mar 17, 2023, 2:37 PM IST

Updated : Mar 17, 2023, 7:14 PM IST

धमाकों से जूझ रही ग्रामीणों की जिंदगियां

भिंड।चंबल अंचल का भिंड जिला खनिज संपदा के मामले में संपन्न है. रेत हो या पत्थर, दोनों की ही यहां भरमार है. इनकी डिमांड भी पूरे प्रदेश में है. भिंड के गोहद क्षेत्र को प्रकृति ने निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाले काले और सफेद दोनों तरह के ही पत्थरों की सौगात से नवाजा है. यही वजह है कि खनिज विभाग ने गोहद में दर्जन भर से अधिक पत्थर खदानों की स्वीकृति अलग-अलग एजेंसियों को दी है. लेकिन यही पत्थर अब खदानों के नजदीक बने रिहायशी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए मुसीबत बने हुए हैं.

खनिज संपदा की चाहत में खोखली होती धरती

यह है ग्रामीणों में दहशत की वजह:ग्रामीणों में दहशत की वजह और ग्राउंड जीरो के हालात जानने के लिए ETV Bharat ने गोहद का रुख किया. डांग पहाड़िया पर स्थित दिलीप सिंह का पुरा गांव और नाके का पुरा गांव में जब हम पहुंचे तो यहां के हालात बेहद चिंताजनक नजर आए. यहां पहाड़ तो खत्म हो ही चुका है, खदानों से पत्थर निकाले जाने की वजह से तालाब नुमा बड़े-बड़े गड्ढे भी हो गए हैं. कई खदानों से तो इतना पत्थर निकाला जा चुका है कि ये गड्ढे 100 मीटर चौड़े और 100 फीट तक गहरे हैं. आलम यह है कि इन गड्ढों में अगर कोई गिरे तो उसका शव तक नहीं बचेगा. ऐसी जानलेवा खदानों के पास ये दोनों गांव बसे हैं, जहां कई क्रेशर भी लगे हैं. चिंता की बड़ी वजह इन खदानों से पत्थर निकालने वाली प्रक्रिया है, क्योंकि यहां पत्थर तोड़ने के लिए ब्लास्टिंग की जाती है.

धमाकों से जूझ रही ग्रामीणों की जिंदगियां

धमाकों से आई दरारें:दिलीप सिंह का पुरा गांव में बनी सरकारी स्कूल की बिल्डिंग खदानों में ब्लास्टिंग की वजह से जर्जर हो रही है. स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक लोकेंद्र सिंह जादौन ने बताया, "स्कूल बिल्डिंग के पास ही पत्थर की खदान और क्रेशर दोनों लगे हुए हैं. यहां जब भी खदान शुरू होती है, ब्लास्टिंग होने लगती है. जिसकी वजह से पूरे स्कूल में कंपन होता है. बिल्डिंग में कई जगह इसकी वजह से दरारें तक आ चुकी हैं." शिक्षक अमृतलाल पवैया का कहना है, "पत्थर खदानों में माइनिंग की कोई टाइमिंग निश्चित नहीं है. कई बार स्कूल में पढ़ाई के समय भी ब्लास्टिंग होती है. ऐसे में जब स्कूल में कंपन होता है तो बच्चे डर जाते हैं. सरपंच से इस बारे में चर्चा कर बात आगे पहुंचाने को कहा जा चुका है. लेकिन सुनवाई न होने की वजह से हालात अब भी जस के तस हैं. कई बच्चे माइनिंग और ब्लास्टिंग की वजह से ही स्कूल नहीं आ पाते हैं."

गिर रहीं घरों की दीवारें:दिलीप सिंह का पुरा गांव के सरकारी स्कूल के हालात जानने के बाद हमने खदान के पास बसे नाके के पुरा गांव जाने का फैसला लिया. यहां ग्रामीणों से बात करने पर पता चला कि पत्थर खदानों में अक्सर होने वाली ब्लास्टिंग की वजह से पूरा गांव दहशत में रहता है. कई लोगों के कच्चे मकान माइनिंग और ब्लास्टिंग की वजह से कमजोर हो चुके हैं. कई मकानों की कच्ची दीवारें तक गिर चुकी हैं.

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ब्लास्टिंग होती है तो पूरा परिवार खेतों में होता है खड़ा:खदान के ही नजदीक रहने वाले बचन सिंह ने बताया, "जब भी यहां खदान चलती है तो कई ब्लास्ट होते हैं. पत्थर उड़कर घरों पर गिरते हैं. हमारे घर की छत कुछ समय पहले ही ब्लास्टिंग की वजह से टूट गई थी, जिसे बाद में खुद रिपेयर करना पड़ा. मवेशियों के बाड़े की दीवार और घर के सामने पत्थरों से बनी कच्ची दीवार भी अक्सर गिर जाती है. जब भी खदान संचालकों से कहो तो वे सांत्वना दिखाकर बात आई-गई कर देते हैं. हम कई बार सरपंच से लेकर भोपाल तक शिकायत कर चुके हैं, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई. इन खदानों की वजह से अब पूरा परिवार दहशत में जी रहा है. जब खदानें चलती हैं तो परिवार के सभी लोग घर से दूर खेतों में जाकर खड़े हो जाते हैं. इस डर से कि कहीं कोई बड़ा पत्थर ब्लास्टिंग में उड़कर हमारे लिए जानलेवा न बन जाए."

कार्रवाई का प्रावधान नहीं:जब इन हालातों को लेकर ETV Bharat ने जिला माइनिंग अधिकारी से बात की तो उन्होंने कहा, "समय-समय पर इन खदानों का इंस्पेक्शन किया जाता है. संबंधित विभाग से जो भी एनओसी होती हैं, उनके आधार पर कार्रवाई की जाती है. डांग सरकार इलाके में सफेद पत्थर की 7-8 खदानें स्वीकृत हैं, जिनके पास ब्लास्टिंग परमिशन भी होगी. इस वजह से वे समय-समय पर ब्लास्टिंग करते हैं. हो सकता है कि उनका समय निर्धारित न हो. रहा सवाल स्कूल का तो जिस समय खदानें स्वीकृत हुई होंगी, उस समय कोई स्कूल नहीं बना होगा, वहां स्कूल का निर्माण बाद में हुआ होगा. हमारे माइनिंग विभाग में सिर्फ खदानों पर कार्रवाई की अनुमति है. जब भी कोई अनियमितता पाई जाती है, तब संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाती है. स्कूल में दरार या नुकसान के लिए कोई प्रावधान या जिम्मेदारी हमारे हाथ में नहीं है. फिर भी हमने हादसों को देखते हुए खदान ठेकेदारों को चिट्ठी जारी की है कि वे अपनी खदानों के आसपास तारों की फेंसिंग कराएं, जिससे खदानों में लोगों के गिरने की घटनाओं को रोका जा सके."

कौन होगा जिम्मेदार: पत्थर खदानों में ब्लास्टिंग से ग्रामीणों के आशियाने तो उजड़ ही रहे हैं, उनकी जान का खतरा भी हमेशा सिर पर मंडराता रहता है. दूसरी ओर, खदान संचालक बिना किसी बात की परवाह किए लगातार धरती का सीना धमाकों के साथ छलनी करते जा रहे हैं. जिला खनिज विभाग इन पर सख्ती दिखाने की जगह कार्रवाई का कोई प्रावधान न होने की बात कह कर ब्लास्टिंग की खुली छूट देते हुए हाथ पर हाथ रख कर बैठा नजर आ रहा है. ऐसे में अब सवाल इस बात का है कि अगर कोई गंभीर हादसा आने वाले समय में होता है तो उसका जिम्मेदार किसे माना जाएगा.

Last Updated : Mar 17, 2023, 7:14 PM IST

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