बजट का अभाव या बेवजह एक्स-रे का विकल्प है पेपर प्रिंटआउट भिंड। जब किसी व्यक्ति के शरीर में गम्भीर चोट लगती है तो डॉक्टर एहतियातन एक्स-रे कराते हैं. जिससे हड्डी की चोट की गंभीरता का पता लगाया जा सके. कई बार साधारण एक्सरे में जब सटीक एनालिसिस नहीं होता तो डॉक्टर इसके लिए डिजिटल एक्सरे कराते हैं. भिंड जिला अस्पताल में भी आए दिन एक्सीडेंट या हड्डी के चोट के केस के चलते एक्सरे कराने वालों की भीड़ लगी रहती है. बाजार में साधारण के मुकाबले डिजिटल एक्सरे कराना चार गुना तक महंगा होता है. ऐसे में सरकार ने सरकारी अस्पतालों में डिजिटल एक्सरे मशीनों की सुविधा शुरू कर दी थी. जेब के बोझ को कम करने के लिए कीमत भी बहुत कम रखी थी. पहले जिला अस्पताल में डिजिटल एक्सरे कराने के लिए 100 रुपय की रसीद कटाना पड़ती थी. लेकिन अब शासन ने यह सुविधा पूरी तरह निशुल्क उपलब्ध कराने के आदेश जारी कर दिए हैं.
पेपर एक्सरे देख असमंजस में मरीज:सरकारी आदेशों के बाद भी भिंड जिला अस्पताल में डिजिटल एक्सरे फिल्म की बजाए साधारण पेपर पर प्रिंटआउट के रूप में दिए जा रहे हैं. एक्स-रे के रूप में इस तरह के प्रिंटआउट मिलने पर मरीज काफी असमंजस में नजर आ रहे हैं. अस्पताल में डिजिटल एक्सरे कराने वाले मरीजों का कहना है कि हमेशा से एक्सरे प्लास्टिक की निगेटिव फिल्म पर दिया जाता है, लेकिन सरकारी अस्पताल में इसे पेपर पर प्रिंट कर दिया जा रहा है. ये परेशानी उनके लिए ज्यादा है, जिन्हें किसी बाहरी चिकित्सक से परामर्श करना हो या इन एक्सरे को किसी किसी मेडिकल क्लेम में लगाना हो वहां ये पेपरप्रिंट मान्य नहीं होते है.
डॉक्टर भी हो रहे परेशान:सरकारी अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टर भी इस नये बदलाव से परेशान हो रहे हैं. क्योंकि उनका भी कहना है कि फिल्म की बजाए पेपर पर एक्सरे प्रिंटआउट से मरीज की चोट की स्थिति समझने में मुश्किल हो रही है. जिला अस्पताल में ही पदस्थ डॉ. हरेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं कि ''एक निगेटिव फिल्म पर एक्सरे को देख कर डैमेज को डायग्नोज करना आसान होता है. लेकिन पेपर उतना समझ नहीं आता है. अक्सर इसके लिए मोबाइल फोन पर एक्स-रे रूम से उसका फोटो मंगाना पड़ता है.''
एक्स-रे से होने वाले नुकसान बेवजह मरीज कराते हैं 80 फीसदी एक्स-रे:भिंड जिला अस्पताल प्रबंधन और जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. यूपीएस कुशवाह का कहना है कि ''प्रतिदिन अस्पताल में एक सैकड़ा से अधिक एक्स-रे होते हैं. इतनी संख्या में एक्सरे फिल्म पर उपलब्ध कराना संभव नहीं है. क्यूंकि फिल्म बहुत ही महंगी पड़ती है इसके लिए उतना बजट नहीं है. साथ ही अस्पताल में होने वाले 80 फीसदी एक्स-रे जबरन और बेवजह मरीजों द्वारा ही कराये जा रहे हैं. जिससे बेवजह निगेटिव फिल्म बर्बाद होती है. इसलिए फिल्म पर इतने एक्स-रे उपलब्ध नहीं करा सकते हैं.'' हालांकि पुलिस द्वारा मेडिकल केस के मामले में होने वाले एक्स-रे अभी भी फिल्म पर ही उपलब्ध कराए जाते हैं. जो सीधा पुलिस ऑफिसियल्स को ही दिये जाते हैं. शासन ने सिर्फ निशुल्क एक्स-रे करने के आदेश दिये हैं. प्रिंटआउट के संबंध में कोई निर्देश नही है.
डॉक्टर्स को मोबाइल पर उपलब्ध करा रहे एक्स-रे इमेज:सीएमएचओ डॉ. कुशवाह एक हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं, उनका कहना है कि ''लोगों को ये समझना चाहिए की बार-बार एक्स-रे कराना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. इससे निकालने वाली एक्स-रे किरणें कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी की ओर ले जा सकती हैं, इसलिए बेवजह एक्स-रे कराने से बचना चाहिए. पेपर पर प्रिंटआउट से मरीज भी संतुष्ट रहता है और इससे बेवजह का खर्च भी नहीं आता. यदि किसी डॉक्टर को इन्हें समझने में परेशानी होती है तो उसे डिजिटल इमेज मोबाइल फोन पर भेज दी जाती है.''
निशुल्क होने के बाद भी डिजिटल एक्स रे पर बना असमंजस सामान्य और डिजिटल एक्स-रे में अन्तर:बात अगर डिजिटल एक्स-रे और साधारण एक्स-रे में अंतर की करें तो इसे फोटोग्राफी के उदाहरण से समझा जा सकता है. पूर्व में सामान्य रूप से जब फोटोग्राफ लिए जाते थे तो उसकी छवि में किसी तरह का बदलाव नहीं होता था. लेकिन डिजिटल फोटोग्राफी में किसी फोटो को एनहान्स यानि उसकी डिटेलिंग को परखा और बढ़ाया घटाया जा सकता है. ठीक उसी तरह जब पारंपरिक सामान्य एक्स-रे होते हैं तब उनमें सिर्फ शरीर के अंदर हड्डी की स्थिति या किसी ठोस मेटल को देख सकते हैं, लेकिन डिजिटल एक्स-रे परतों की तरह काम करता है. एक बार में लिए गए एक्सपोजर से ना सिर्फ हड्डी बल्कि मांस और मसल्स की भी जांच की जा सकती है. इसे मशीन से जुड़े एक कंप्यूटर की मदद से सेट किया जा सकता है. इसे बड़ा या छोटा, बारीक परीक्षण के लिए जूम किया जा सकता है और डॉक्टर द्वारा बताये अनुसार उसका प्रिंट निगेटिव फिल्म पर दिया जा सकता है. यह प्रक्रिया काफी आसान होती है और इससे डायग्नोसिस में भी आसानी रहती है.
- एक माह से एक्स-रे की फिल्म खत्म, मरीजों को हो रही परेशानी
- नरसिंहपुर में लाखों रुपए की एक्स रे मशीन खा रही धूल, राज्यसभा सांसद ने किया दुख व्यक्त
- झाबुआ: स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल, जिला अस्पताल में बंद पड़ी है एक्स-रे मशीन, मरीज हो रहे परेशान
साधारण एक्स-रे में करनी पड़ती है मशक्कत:सामान्य रूप से लिए जाने वाले एक्स-रे के लिए मरीज के शरीर में तकलीफ वाले हिस्से को रेडियोग्राफ मशीन से लिया जाता है. इसके लिए निगेटिव फिल्म को खास एक एक्स-रे कैसेट में लोड किया जाता है. जहां एक्स-रे किरणों की मदद से मांस के भीतर मौजूद हड्डियों का छाप इस निगेटिव फिल्म पर आ जाता है. इसके बाद इसे एक अंधेरे कमरे में रेड लाइट की रोशनी में तैयार करना होता है. लाइट फोटॉन यानी रोशनी पड़ते ही एक्सरे खराब हो सकता है, इसलिए इन्हें डार्क रूम में तैयार किया जाता है. एक्स-रे लेने के बाद फिल्म को डार्क रूम में लाया जाता है. यहां तीन चरणों में कार्य किया जाता है. सबसे पहले फिल्म को डेवलपर सोल्युशन टैंक में डुबोया जाता है, जो सिल्वर हलाइड को एक्सपोज करता है, इसके बाद दूसरे टैंक में जिसने पानी होता है. आखिर में इसे फिक्सर सोल्युशन टैंक में रखा जाता है. जो एक्स-रे को स्थाई बनाने का काम करता है. आखिर में इसे सुखाया जाता है. यह पूरी प्रॉसेस एक लंबी और समय लेने वाली प्रक्रिया है. जरा सी गलती पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती है.
कागज पर दिया जा रहा एक्सरे प्रिंट डिजिटल एक्स-रे की प्रक्रिया आसान:डिजिटल एक्स-रे में सामान्य एक्सरे के मुकाबले इतना समय और मेहनत नहीं करनी पड़ती. ये एक डिजिटल फोटोग्राफ की तरह है. सबसे पहले एक्सरे मशीन पर सामान्य मशीन की तरह ही मरीज का एक्स-रे लिया जाता है. यहां फिल्म कैसेट की जगह डिजिटल कैसेट का उपयोग किया जाता है, जो एक्स-रे किरणों की मदद से हड्डी के छाप को डिजिटल पिक्सल में बदलकर रिकॉर्ड कर लेती है. इसके बाद कैसेट को सीधा डिजिटल एक्सरे प्रिंटर स्कैनर में लोड किया जाता है. जो कैसेट में रिकॉर्ड एक्सरे को कंप्यूटर पर दिखाती है. यहां इसके सॉफ्टवेयर के माध्यम से एक्सरे की इमेज को एडजस्ट किया जाता है. जैसा हमने बताया था कि इसी सॉफ्टवेयर पर हड्डी के साथ मांस या मसल्स जैसा भी एक्स-रे डॉक्टर को चाहिए सेट किया जाता है और फिर खास प्रिंटर की मदद से इसे निगेटिव फिल्म पर प्रिंट कर दिया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया 5 मिनट से भी कम समय में पूरी हो जाती है. और इससे बेवजह निगेटिव फिल्म खराब होने का भी डर नहीं रहता.