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गुरूजी ने खींची कामयाबी की नई लकीर, अंधेरे में रहकर भी दूसरों की दुनिया कर रहे रोशन - आंखों में रोशनी नहीं है

गुरू का पद भगवान से भी ऊंचा है क्योंकि गुरू ही भगवान तक पहुंचने का रास्ता दिखाता है, हर इंसान के जीवन में गुरू का बड़ा महत्व होता है, गुरू के बताये मार्ग पर चलकर ही कामयाबी की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है. इस शिक्षक दिवस पर ऐसे शिक्षकों का जिक्र कर रहे हैं, जिन्होंने अपने हौसलों से कामयाबी की नई लकीर खींची है.

गुरूजी ने खींची कामयाबी की नई लकीर

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Published : Sep 4, 2019, 8:49 PM IST

बैतूल। दस साल की उम्र में अथाह अंधेरे में गुम होने के बावजूद वह हिम्मत नहीं हारा, परिस्थितियों से लड़ता रहा और अपने हौसलों को हमेशा नई उड़ान देने की तरकीब खोजता रहता. उसके इसी हौसले ने उसे अलग पहचान दी और आज वह खुद अंधेरे में रहकर भी सैकड़ों की दुनिया रोशन कर रहा है. इस शिक्षक दिवस पर ऐसे ही एक शिक्षक का जिक्र कर रहे हैं, जिनकी खुद की दुनिया अंधेरे में डूबी है, फिर भी वह चिराग बनकर लोगों की दुनिया रोशन कर रहे हैं.

गुरूजी ने खींची कामयाबी की नई लकीर
बैतूल के कोठी बाजार स्थित शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उच्चतर विद्यालय में पदस्थ इतिहास के शिक्षक रूपेश मानकर, जिनकी आंखों में रोशनी नहीं है. फिर भी बच्चों को पढ़ाने का उनका अंदाज सबसे अलग है, उनके इसी अंदाज के वहां पढ़ने वाली छात्राएं मुरीद हैं क्योंकि रूपेश किताबी ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक-व्यावहारिक ज्ञान से भी रूबरू कराते हैं.
गुरूजी ने खींची कामयाबी की नई लकीर
रूपेश मानकर बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाने के लिए वे लेक्चर मेथड का उपयोग करते हैं, जिसमें किताब का एक पैराग्राफ बच्चों से पढ़वा लेते हैं और उसके बाद उस पैराग्राफ पर बच्चों को समझाते हैं. उनका मानना है कि किताबी ज्ञान के साथ-साथ प्रैक्टिकल होना बहुत जरूरी है. इस क्षेत्र में आकर वे लोगों को संदेश देना चाहते थे कि अगर एक नेत्रहीन व्यक्ति बच्चों को पढ़ा-लिखा सकता है तो जीवन में कोई भी काम मुशकिल नहीं है.कहते हैं जहां चाह होती है, वहां राह होती है. रूपेश की यही चाहत उन्हें आम से खास बनाती है, जो समाज के लिए मिसाल बन गये हैं क्योंकि वह खुद अंधेरे में रहकर भी शिक्षा की रोशनी से समाज को रोशन कर रहे हैं. ईटीवी भारत मध्यप्रदेश

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