बैतूल। जाकी पांव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई, जब किसी को दर्द ही नहीं हो रहा तो कोई इस किसान का दर्द समझे भी तो क्यों, जो हल खींचने के लिए बेटे-बहू-पत्नी तक को बैल बना दिया है. हालांकि, सूबे में इंसानों का बैल बनना कोई नई बात नहीं है. पहले भी सरकारी दावों की पोल खोलने वाले ऐसे कई मामले आये हैं, जबकि न जाने कितने इंसानी बैल ऐसे हैं, जिन पर किसी की नजर ही नहीं पड़ती. अब सुनाते हैं आपको इस किसान की दर्द भरी दास्तां किसान की जुबानी.
आर्थिक तंगी से गुजर रहा किसान परिवार खुद बैल बनकर सालों से खेती कर रहा है, किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरण और खाद-बीज पर अनुदान दिया जाता है, इस किसान के सामने ये सभी योजनाएं धूल फांकती नजर आती हैं क्योंकि इस परिवार को आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका है.
बैतूल ब्लॉक के बरसाली पंचायत के काजी काठी गांव के सद्दू मर्सकोले का परिवार अब तक पूरी तरह से बैल बन चुका है क्योंकि इस परिवार के सदस्य कई सालों से हल खींचते आ रहे हैं. सद्दू के पास महज 75 डिसमिल खेती की जमीन है, इसी के सहारे 7 सदस्यों की जीविका चलती है. बाकी कुछ कमाई मजदूरी से भी हो जाती है. कृषि विभाग भी किसान की मदद करने की बजाय दूसरे विभाग पर डाल रहा है, अधिकारी की मानें तो इतनी कम जमीन पर किसान को लाभ दिया जाना मुश्किल है, फिर भी उसकी खेती को उन्नत बनाकर उसकी मदद की जाएगी.
हिंदुस्तान की आत्मा गांवों में बसती है और उस गांव की आत्मा है किसान, जिसकी तरक्की के बिना देश की तरक्की मुमकिन नहीं है, फिर किसानों की ये सिसकी सरकारों को क्यों सुनाई नहीं पड़ती. जब तक किसानों के चेहरे पर मुस्कान नहीं आयेगी, या यूं कहें कि अंतिम छोर तक खुशहाली नहीं पहुंची तो तरक्की की कल्पना करना भी बेमानी है.