बैतूल। बदतर हो चुकी स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते आदिवासी अंचलों में मासूम बच्चों को बीमार होने पर दवा की जगह एक ऐसा इलाज दिया जा रहा है, जिसे देखकर लोगों की रूह कांप उठेगी. इस इलाज में लोहे की सलाखों और कीलों को गर्म करके बच्चों के पेट, सीने और पीठ पर दाग लगाए जाते हैं. स्वास्थ्य विभाग का अमला डमा लगाने की इस परंपरा को रोकने में अब तक नाकाम रहा है.
इलाज का अमानवीय तरीका, सलाखों को गर्म करके बच्चों के पेट और सीने को दागते हैं आदिवासी - स्वास्थ्य विभाग
आदिवासी अंचलों में मासूम बच्चों को बीमार होने पर दवा की जगह इलाज में लोहे की सलाखों और कीलों को गर्म करके बच्चों के पेट, सीने और पीठ पर दाग लगाए जाते हैं. जिले के आदिवासी इसे डमा लगाना कहते हैं. अब तक स्वास्थ्य विभाग इसे रोकने में नाकाम साबित हुआ है.
![इलाज का अमानवीय तरीका, सलाखों को गर्म करके बच्चों के पेट और सीने को दागते हैं आदिवासी](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/images/768-512-2990335-thumbnail-3x2-betul.jpg)
सलाखों को गर्म कर होता है इलाज
गुराड़िया गांव, बैतूल
जिले के भीमपुर ब्लॉक के गुराड़िया गांव में कोरकू समुदाय के आदिवासी किसी भी उम्र के बच्चे हों, अगर वे कुपोषित हो जाएं या उन्हें मौसमी बीमारियां हो जाए, तब लोहे के औज़ारों को आग में रखकर तपाते हैं और फिर उन गर्म औजारों से इन मासूम बच्चों के शरीर पर सैकड़ों दाग लगाए जाते हैं. जिले के आदिवासी इसे डमा लगाना कहते हैं. अब तक इस एक ही गांव में पिछले कुछ दिनों में 22 से ज़्यादा बच्चों को डमा लगाया गया है.