बैतूल/छिंदवाड़ा। अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस के मौके पर जिला चिकित्सालय में भर्ती थैलेसीमिया, एनीमिया और सिकलसेल से पीड़ित बच्चों को फल, बिस्किट और चॉकलेट बांटकर उनका उत्साहवर्धन किया, साथ ही उन्हें रक्तपूर्ति नोटबुक भी बांटी गई. इस नोटबुक में समय-समय पर जो ब्लड दिया जाएगा, उसके आंकड़े संधारित किये जाएंगे. अंतर्राष्ट्रीय थैलीसिमिया दिवस पर जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ. अशोक बारंगा सहित स्टाफ ने थैलेसीमिया, स्किल सेल और एनीमिया से पीड़ित भर्ती बच्चों से मुलाकात की और बच्चों का उत्सावर्धन करने के लिए उन्हें फल, बिस्किट और चॉकलेट बांटे.
बच्चों को बांटी खाने पीने की चीजें
इसके साथ ही ब्लड बैंक द्वारा तैयार की गई रक्तपूर्ति नोटबुक और स्वेच्छिक रक्तदान की जानकारी वाला पम्पलेट उन्हें दिए गए. बच्चों को जानकारी दी गई कि जब भी वो जिला चिकित्सालय में भर्ती होंगे, तो वे ये डायरी साथ में लाएंगे, जिसमें उनको दिए जाने वाले रक्त की जानकारी अंकित की जाएगी. इस नोटबुक के संधारित होने से यह पता चल सकेगा कि बच्चे को या मरीज को कब-कब रक्त दिया गया है और उसे कितने दिन में रक्त की आवश्यकता होती है. इस हिसाब से इन मरीजों के लिए ब्लड बैंक में रक्त की उपलब्धता की जाएगी.
क्रोनिक एनीमिया
इस मौके पर डॉ. बारंगा ने बताया कि सिकलसेल, एनीमिया और थैलेसीमिया के जिले में लगभग 350 मरीज है. इस बीमारी से बच्चे ही ज्यादा पीड़ित होते हैं. इन्हें 2 माह में एक या दो बार ब्लड लग जाता है. उस हिसाब से साल में इन्हें 8 बार ब्लड लगता है और पूरे मरीजों के हिसाब से एक साल में 2800 यूनिट के लगभग ब्लड की जरूरत होती है. इन बच्चों के पालक का ब्लड इसलिए नहीं लिया जाता है, क्योंकि वे भी इसी बीमारी से पीड़ित रहते हैं. इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को एक साल में लगभग 2 हजार यूनिट ब्लड लगता है. इसके साथ ही क्रोनिक एनीमिया से पीड़ित मरीजों को भी एक साल में लगभग 800 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है.
जरूरतमंद मरीजों की जान बचाता है खून
डॉ. अंकिता सीते ने बताया कि ब्लड बैंक से निजी अस्पतालों में एक साल में लगभग 1500 यूनिट ब्लड भेजा जाता है. इस हिसाब से एक साल में लगभग 7000 यूनिट ब्लड की आवश्यकता है. जिसकी पूर्ति, बैतूल जिले के रक्तदाता करते हैं. वैसे भी जिले के रक्तदाता हमेशा रक्तदान के लिए तैयार रहते हैं और उनके कारण जरूरतमंद मरीजों की जान बचती है.