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थैलेसीमिया-सिकलसेल से पीड़ित बच्चों के लिए चिकित्सकों और स्टॉफ ने किया रक्तदान

अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस के मौके पर बैतूल जिला अस्पताल में भर्ती थैलेसीमिया, एनीमिया और सिकलसेल से पीड़ित बच्चों को फल, बिस्किट और चॉकलेट बांटी और उनका उत्साहवर्धन किया.

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सांकेतिक चित्र

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Published : May 11, 2021, 1:31 PM IST

बैतूल/छिंदवाड़ा। अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस के मौके पर जिला चिकित्सालय में भर्ती थैलेसीमिया, एनीमिया और सिकलसेल से पीड़ित बच्चों को फल, बिस्किट और चॉकलेट बांटकर उनका उत्साहवर्धन किया, साथ ही उन्हें रक्तपूर्ति नोटबुक भी बांटी गई. इस नोटबुक में समय-समय पर जो ब्लड दिया जाएगा, उसके आंकड़े संधारित किये जाएंगे. अंतर्राष्ट्रीय थैलीसिमिया दिवस पर जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ. अशोक बारंगा सहित स्टाफ ने थैलेसीमिया, स्किल सेल और एनीमिया से पीड़ित भर्ती बच्चों से मुलाकात की और बच्चों का उत्सावर्धन करने के लिए उन्हें फल, बिस्किट और चॉकलेट बांटे.

बच्चों को बांटी खाने पीने की चीजें

इसके साथ ही ब्लड बैंक द्वारा तैयार की गई रक्तपूर्ति नोटबुक और स्वेच्छिक रक्तदान की जानकारी वाला पम्पलेट उन्हें दिए गए. बच्चों को जानकारी दी गई कि जब भी वो जिला चिकित्सालय में भर्ती होंगे, तो वे ये डायरी साथ में लाएंगे, जिसमें उनको दिए जाने वाले रक्त की जानकारी अंकित की जाएगी. इस नोटबुक के संधारित होने से यह पता चल सकेगा कि बच्चे को या मरीज को कब-कब रक्त दिया गया है और उसे कितने दिन में रक्त की आवश्यकता होती है. इस हिसाब से इन मरीजों के लिए ब्लड बैंक में रक्त की उपलब्धता की जाएगी.

चैकअप करवाते मरीज

क्रोनिक एनीमिया

इस मौके पर डॉ. बारंगा ने बताया कि सिकलसेल, एनीमिया और थैलेसीमिया के जिले में लगभग 350 मरीज है. इस बीमारी से बच्चे ही ज्यादा पीड़ित होते हैं. इन्हें 2 माह में एक या दो बार ब्लड लग जाता है. उस हिसाब से साल में इन्हें 8 बार ब्लड लगता है और पूरे मरीजों के हिसाब से एक साल में 2800 यूनिट के लगभग ब्लड की जरूरत होती है. इन बच्चों के पालक का ब्लड इसलिए नहीं लिया जाता है, क्योंकि वे भी इसी बीमारी से पीड़ित रहते हैं. इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को एक साल में लगभग 2 हजार यूनिट ब्लड लगता है. इसके साथ ही क्रोनिक एनीमिया से पीड़ित मरीजों को भी एक साल में लगभग 800 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है.

जरूरतमंद मरीजों की जान बचाता है खून

डॉ. अंकिता सीते ने बताया कि ब्लड बैंक से निजी अस्पतालों में एक साल में लगभग 1500 यूनिट ब्लड भेजा जाता है. इस हिसाब से एक साल में लगभग 7000 यूनिट ब्लड की आवश्यकता है. जिसकी पूर्ति, बैतूल जिले के रक्तदाता करते हैं. वैसे भी जिले के रक्तदाता हमेशा रक्तदान के लिए तैयार रहते हैं और उनके कारण जरूरतमंद मरीजों की जान बचती है.

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अनुवांशिक बीमारी है थैलेसीमिया

सिविल सर्जन डॉ. अशोक बारंगा ने आगे बताया कि विश्व थैलेसिमिया दिवस को हम जागरूकता के लिए मनाते हैं. थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से बच्चों में आती है. इसमें बच्चों को समय-समय पर ब्लड लगाना पड़ता है, इसलिए इन पीड़ित बच्चों के लिए ब्लड बैंक की रक्तकोष अधिकारी सहित डॉक्टर और स्टाफ ने रक्तदान किया है.

ब्लड कलेक्शन एंड ट्रांसपोर्टेशन वैन

छिंदवाड़ा में अगर आप रक्तदान कर किसी की जिंदगी बचाना चाहते हैं तो आपको ब्लड बैंक या किसी रक्तदान शिविर में जाने की जरूरत नहीं है. एक फोन कॉल पर आपके घर बैठे ब्लड कलेक्शन वैन पहुंच जाएगी. मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत छिंदवाड़ा जिले में ब्लड कलेक्शन एंड ट्रांसपोर्टेशन वैन दी है. इसके जरिए कोई भी रक्तदान करने का इच्छुक व्यक्ति एक फोन कॉल करके वैन बुला सकता है और रक्तदान कर किसी की जान भी बचा सकता है. जिला प्रशासन ने इसके लिए एक नंबर जारी किया है जिसके द्वारा रक्तदान करने का इच्छुक व्यक्ति पूरी सुरक्षा और सावधानी के साथ अपना रक्त देकर किसी की जान बचा सकते हैं.

ब्लड कलेक्शन एंड ट्रांसपोर्टेशन वैन

ब्लड डोनेशन वैन में है सारी सुविधाएं

ब्लड कलेक्शन एंड ट्रांसपोर्टेशन वैन में ब्लड बैंक जैसी सारी सुविधाएं हैं. जिसमें रक्तदाता के बैठने से लेकर रजिस्ट्रेशन और फिर रक्तदान करने के बाद उसे आराम करने की व्यवस्था है इतना ही नहीं ब्लड को सुरक्षित कैसे रखा जा सकता है, इसके लिए भी एक बॉक्स का अलग से वैन में निर्माण किया गया है. कोरोना के भयंकर संक्रमण काल के दौरान मरीजों को रक्त की आवश्यकता भी पड़ रही है. लेकिन आसानी से मिल नहीं रहा अधिकतर लोग रक्तदान करने में डर भी रहे हैं. ऐसे समय में ब्लड डोनेशन वैन संजीवनी का काम कर रही है. जिसके चलते रक्तदाता फोन कॉल करके अपने इलाकों में बुला रहे हैं और रक्तदान कर रहे हैं.

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