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परंपरा के नाम पर जान की बाजी: ग्रीस लगे 55 फीट लंबे खंभे पर चढ़ते हैं लोग, खतरनाक होने के बाद भी 100 साल से चल रहा खेल - बैतूल रोंढा गांव मेघनाथ मेला

आज के युग में भी में आस्था और परंपरा के नाम पर जान की बाजी लगाने का खेल चल रहा है. बैतूल के रोंढा गांव में होली के बाद यह खेल शुरू होता है. मेघनाथ मेले में जैरी तोड़ने की परंपरा को निभाने के लिए लोग 55 फीट ऊंचे खंभे पर चढ़ते हैं. 100 सालों से यह परंपरा चली आ रही है. (100 years old tradition in Betul)

100 years old tradition in Betul
बैतूल में जैरी तोड़ने की परंपरा

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Published : Mar 23, 2022, 1:37 PM IST

बैतूल।वैसे तो दुनिया में कई तरह की अजीब अजीब घटनाएं होती हैं, जिन्हें देख या सुन आप दांतो तले उंगली दबा लेते हैं. हमारे देश में भी कई लोग होते हैं जो ऐसे करतब दिखाते हैं, जिनसे कोई फायदा नहीं होता साथ ही जान भी दांव पर लगी होती है. ऐसा ही खेल को परंपरा का नाम दिया गया है बैतूल के रोंढा गांव में. यह खेल होली के बाद शुरू होता है. रोंढा गांव में हर साल होली के बाद मेघनाथ मेले का आयोजन किया जाता. जहां जैरी तोड़ने की परंपरा देखने को मिलती है. यहां लोग 55 फीट ऊंचे खंभे पर चढ़ते हैं, जिसे चिकना करने के लिए ग्रीस और ऑयल लगाया जाता है.

100 साल से चली आ रही परंपरा
मेघनाथ मेले में हर साल आसपास के गांव के सैंकड़ों लोग आते हैं. इस मेले की खास बात यह है कि यहां जैरी तोड़ने की परंपरा लगभग 100 सालों से चली आ रही है. यह जैरी सागौन की लकड़ी की होती है जिसकी लंबाई लगभग 55 से 60 फिट होती है. पुराने समय में जैरी में सवा रुपये और नारियल बांधा जाता था. लेकिन अब 11 रुपये और नारियल बांधा जाता है. जैरी तोड़ने वाले व्यक्ति को इनाम के तौर पर ग्राम प्रधान प्रोत्साहन राशि देते हैं.

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चिकना करने के लिए खंभे पर लगे हैं ऑयल और ग्रीस
लकड़ी के खंभे को चिकना करने के लिए ऑयल, ग्रीस के अलावा और भी कई तरह के तरल पदार्थ लगाए जाते हैं. ताकि खंभे पर चढ़ना और मुश्किल हो जाए. यह इतना जोखिम भरा होता है कि चढ़ने वाला व्यक्ति अगर फिसल जाए तो उसकी जान भी जा सकती है. पिछले 28 साल से जान जोखिम में डालकर गज्जू इस परंपरा को निभा रहा है. उसका कहना है कि जैरी पर रस्सी के सहारे चढ़ते हैं, उसे इस काम को करने में किसी तरह का डर नहीं लगता, न ही पैसों के लिए वह ऐसा करता है. परंपरा को जारी रखने के लिए जैरी पर चढ़ते हैं और नारियल व पैसे नीचे लाते हैं.

जैरी टूटने तक चलता है मेला
इस मेले की एक अजीब बात यह और है कि जब तक जैरी नहीं टूटेगी तब तक मेला लगा रहेगा. इस परंपरा को लेकर एक बुजुर्ग माधो राव कालभोर का कहना है कि यह खतरनाक जरूर है लेकिन परंपरा चली आ रही है इसलिए निभाना पड़ता है, अभी तक कोई घटना नहीं घटी है.

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