बैतूल। बैतूल में किसान पारंपपरिक खेती छोड़ अब फायदे की खेती कर रहे हैं. शाहपुर ब्लाक में रहने वाले आदिवासी किसान काजू की खेती कर मालामाल हो रहे हैं..बैतूल प्रदेश का पहला ऐसा जिला है, जहां काजू की व्यावसायिक खेती शुरू की गई है. यहां की लाल मिट्टी काजू उत्पादन के लिए वरदान साबित हुई है. खास बात ये है कि किसान काजू की खेती के लिए खेत के आसपास की बंजर जमीन का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. काजू की खेती से किसानों के जीवन में खुशहाली आई है.
बैतूल के किसानों के लिए वरदान साबित हुई काजू की खेती, साल भर में कमा रहे 4 से 5 लाख रुपए
बैतूल जिले के शाहपुर ब्लाक में रहने वाले किसान काजू की खेती कर रहे हैं. जिससे इन किसानों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया है. कल तक तंगहाली की जिंदगी गुजार रहे ये किसान अब काजू की खेती कर मालामाल हो रहे है. बैतूल जिले के शाहपुर ब्लाक की जमीन काजू की खेती के लिए उपयुक्त पाई गई है. ज़िले में अब तक 400 एकड़ में काजू का प्लांटेशन हो चुका है. और जल्द ही ये रकवा पांच हजार एकड़ तक होगा .यहां देश का बेहतरीन क्वालिटी का काजू होगा.
बैतूल में 250 से ज्यादा किसान 'व्हाइट गोल्ड' यानी काजू की व्यावसायिक खेती कर रहे हैं. शाहपुर ब्लॉक के निशाना गांव के किसान बताते है कि उन्होंने अपने खेतों में 15-15 काजू के पेड़ लगाए है जिनसे सीजन में 12 से 15 किलो प्रति पेड़ काजू मिल जाता है. काजू की खेती से वो सालाना 4 से 5 लाख रुपए तक कमा रहे है. आदिवासी किसानों को काजू की खेती करने की राह दिखाने का काम मध्यप्रदेश उद्यानिकी विभाग ने किया. क्योंकि वैज्ञानिकों को बैतूल की लाल मिट्टी काजू की खेती करने के लिए सबसे मुफीद मानी जाती है. उद्यानिकी विभाग ने किसानों को सस्ती दरों पर काजू के पौधे उपलब्ध कराए.
बैतूल ज़िले की आवोहवा व्हाइट गोल्ड यानी काजू के उत्पादन के लिए बेहतरीन साबित हो रहा है. इस बात पर देशभर से आए कृषि और उद्यानिकी वैज्ञानिकों ने मुहर लगा दी है. यही वजह है कि अब बैतूल ज़िला मध्यप्रदेश का काजू उत्पादन हब बनने जा रहा है. ज़िले में अब तक 400 एकड़ में काजू का प्लांटेशन हो चुका है. और जल्द ही ये रकवा पांच हजार एकड़ तक होगा .यहां देश का बेहतरीन क्वालिटी का काजू होगा.