मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

इस गांव में होली पर छाया रहता है मातम, 100 सालों से दुलहेंडी पर नहीं खेला गया रंग - बैतूल के गांव में सौ साल से नहीं खेला गया रंग

देश भर में होली का खुमार छाया हुआ है, लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगा कर बधाई दे रहे हैं. किंतु मध्य प्रदेश के बैतूल के ग्राम डहुआ में होली के त्यौहार से पांच दिन तक पूरा गांव मातम में डूबा रहता है. 107 साल पहले गांव के प्रधान की होली खेलते हुए मौत हो गयी थी. ग्रामीण बताते हैं कि सौ साल से ज्यादा समय से गांव में इसलिए होली नहीं मनाई कि कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए.

Weeds remain in Dahua village of Betul on Holi
होली पर बैतूल के डहुआ गांव में छाया रहता है मातम

By

Published : Mar 17, 2022, 1:09 PM IST

बैतूल। पूरा देश होली की मस्ती में डूबा हुआ है. लेकिन बैतूल में एक गांव ऐसा भी है, जहां सौ साल से होली पर मातम होता है. जहां होली पर न तो कोई रंग-गुलाल उड़ाता है और न ही घरों मे पकवान बनाए जाते हैं. यहां तक कि कोई होली के नाम पर किसी को बधाई तक नहीं देता. 107 सालों से लगातार होली पर गांव मे लगे इस अघोषित प्रतिबंध के दायरे मे बच्चे ,जवान और बूढ़े सभी आते है. यही वजह है कि कोई भी यहां होली पर रंग खेलने की हिमाकत नहीं करता.

डहुआ गांव में रंगों को हाथ लगाना गुनाह

पूरे देश में हर तरफ रंगो की बौछार है, हर कोई मस्ती में डूबा हुआ है. हर तरफ होली की धूम मची हुई है, आम हो या खास सभी पर होली का खुमार चढ़ा हुआ है. सभी रंगो से खेलने की तैयारियों मे जुटे हैं, लेकिन बैतूल के गांव डहुआ में होली पर रंगो को हाथ लगाना भी गुनाह समझा जाता है. होली पर ना तो यहां कोई रंग खेलता है और न ही कोई किसी को होली की बधाई देता है. होली के दिन गांव मे रोज होने वाली चहल पहल भी यहां नही दिखाई देती, हर तरफ अगर कुछ दिखाई देता है तो वो है सन्नाटा. त्यौहार पर यहां अजीब तरह का मातम छाया रहता है. होली पर ऐसा मातमी माहौल यहां पिछले सौ सालों से यूं ही दिखाई देता है. सिर्फ होली ही नहीं, होली के बाद पूरे पांच दिन यहां लेाग ऐसे ही मातम मे डूबे रहते हैं. लोगो में ये डर है कि यदि उन्होंने होली मनाई, तो कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए.

होली स्पेशल: अनहोनी के डर से इस गांव में 1 दिन पहले मनाई जाती है होली, जानें क्यों है ये अजीबोगरीब नियम

कुंए में डूबने से हुई थी प्रधान की मौत

पिछले 107 सालों से 2500 की आबादी वाला यह गांव होली पर यूं ही मातम मे डूबा रहता है, इसके पीछे की दास्तां भी बडी अजीब है. कहते हैं 107 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली खेलते हुए मौत हो गयी थी, उस दिन हर कोई होली की मस्ती मे डूबा हुआ था. परम्परा के अनुसार होली खेलने के बाद गांव के बड़े बुजुर्ग गांव के ही एक कुंए पर इकट्ठा होते थे. उस दिन भी रंग खेलने के बाद कुएं मे कूदकर नहाने का सिलसिला चल रहा था. प्रधान भी कुएं में नहाने कूद पड़ा, सारे लोग तो कुंए से बाहर निकल गए लेकिन प्रधान की लाश ही उस दिन कुए से बाहर निकली. उस दिन से गांव वालों ने फिर कभी होली की मस्ती नहीं देखी.

त्यौहार के पांच दिन तक मातम में डूबा रहता है गांव

गांव मे अब हर होली पर यूं ही सन्नाटा पसरा होता है, गांव की गलियां ऐसे ही मातम मे डूबी रहती हैं. आसपास के गांव में होली की मस्ती और बिखरते रंगो के बावजूद बच्चे यहां अपना मन मसोसकर होली न मनाने के मातम मे शरीक हो जाते हैं. गांव से दूर जाकर पढ़ने वाले बच्चे भी अपने गांव की इस होली ना मानाने की परम्परा को बदलने की बात कर रहे हैं. दोस्तों को होली मनाते देख उन्हें मन मसोस कर अपने आप को मनाना पड़ता है, नहीं तो अपने रिश्तेदारों के यहाँ जाकर होली मानते हैं. उनका मानना है कि ये अन्धविश्वास और रूढ़िवादी परम्परा है, जिसे बदलना चाहिए. गांव में बहू बनकर आई महिलाएं भी बुजुर्गो की इस होली ना मानाने की परम्परा को निभा रही है.

For All Latest Updates

ABOUT THE AUTHOR

...view details