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जमीन से 10 फीट अंदर बसा है शिव का ये अद्भुत पातालेश्वर मंदिर, जानें क्या है इस मंदिर की खासियत - Phuljwari Mahadev Barwani

बड़वानी जिले में प्रकृति के बीच जमीन से 10 फीट अंदर बसे इस शिव मंदिर की कलाकृति देखते ही बनती है. स्थानीय लोग इस मंदिर को पातालेश्वर, गुप्तेश्वर और फुलजवारी महादेव के नाम से जानते हैं. मान्यता है कि यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है.

Ancient shiva mandir
प्राचीन शिव मंदिर

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Published : Aug 2, 2020, 1:54 PM IST

Updated : Aug 2, 2020, 2:18 PM IST

बड़वानी। वैसे तो बड़वानी जिले में सांस्कृतिक और धर्म से जुड़ी कई प्राचीन सम्पदा जगह-जगह बिखरी पड़ी हैं, लेकिन लापरवाही के चलते अब भी प्राचीन सभ्यता से जुड़े कई दर्शनीय स्थान लोगों और प्रशासन की नजरों से दूर हैं. निवाली विकासखंड में फुलजवारी गांव से करीब 2 किलोमीटर अंदर जंगल में छठवीं-सातवीं शताब्दी में निर्मित इस परमारकालीन पाषाण शिव मंदिर की कलाकृति और नक्काशी देखते ही बनती है. इसके अलावा प्रकृति के बीच जमीन से 10 फीट अंदर बसे शिव मंदिर को स्थानीय लोग पातालेश्वर, गुप्तेश्वर व फुलजवारी महादेव के नाम से जानते हैं.

प्राचीन शिव मंदिर

ऐसी हुई मंदिर की स्थापना

कहा जाता है कि इस गांव से 3 किमी दूर इस निर्जन स्थान पर कोई नहीं रहता था, लेकिन 100 साल पहले किसी को सपने में यह मंदिर दिखाई दिया और मंदिर के ऊपर फूलों का झाड़ लगा हुआ था, जिसके नीचे खुदाई करने पर भूमिगत प्राचीन शिवमंदिर निकला, तब कुछ लोग आसपास निवास करने लगे और इस स्थान का नाम फुलजवारी पड़ गया.

यहां खुदाई में 100 से अधिक मूर्तियां निकली थी, जिसमें ब्रह्मा की भी पाषाण प्रतिमा निकली, जो मंदिर के मुख्य दरवाजे के सामने स्थापित है. पलसूद-निवाली मार्ग से अंदर जंगल में बसा होने के कारण शिवभक्तों की पहुंच से ये मंदिर दूर है. स्थानीय लोग इसे भोलेनाथ का चमत्कारी मंदिर बताते हैं, वहीं विभिन्न अवसरों पर मंदिर के अंदर नाग-नागिन के जोड़े के साथ दर्शन होते हैं. वहीं सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना यहां पूरी होती है.

पानी में डूबा रहता है आधा शिवलिंग

इतिहासकार बताते हैं कि 1300 से 1400 साल पहले परमारकालीन इस मंदिर की बनावट अनूठी है, जमीन के ऊपर पत्थरों से नक्काशीदार कलाकृतियों है, वही जमीन के अंदर शिवलिंग स्थापित होने से मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है. जंगल में होने के कारण इस मंदिर की बनावट व खासियत ऐसी है कि मंदिर के समीप नाला है, जो बरसात में बहता है जो अच्छी बारिश होने पर साल भर बहता रहता है, जिसके चलते मंदिर के गर्भगृह में पानी से आधा शिवलिंग सालभर डूबा रहता है.

हजारों साल पुरानी मुर्तियां

बताया जाता है कि साल 1882 में कुछ कॉलेज के छात्रों के साथ इतिहासकार और पूर्व कुलपति रीवा विश्वविद्यालय द्वारा सर्व कर इसके आसपास की झाड़ियां हटाकर साफ सफाई की गई. वहीं मंदिर के आसपास 100 से अधिक बिखरी पड़ी भगवानों की विभिन्न मूर्तियों को संरक्षित रखा गया. लेकिन प्रशासन की लापरवाही से आज प्राचीन मंदिर के अवशेष जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं, हालांकि फुलजवारी के ग्रामीणों और सरपंच की शिवभक्ति के चलते मुख्य सड़क मार्ग से मंदिर तक सीसी रोड का निर्माण कर मार्ग सुगम बना दिया गया है.

Last Updated : Aug 2, 2020, 2:18 PM IST

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