बड़वानी। आज के आधुनिक दौर में जब लोगों में सामाजिक समरसता और सद्भावना की कमी देखी जा रही है, तब भी कई ऐसे लोग हैं जो जाति धर्म के उपर उठकर समाज में प्रकृति प्रेम और मानव धर्म की अलख जगा रहे हैं. ऐसे ही एक व्यक्ती हैं, खरगोन जिले के नांद्रा गढ़ी गांव के रहने नसीर खान, नसीर खान बीते 9 सालों से मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं. नसीर इस साल भी लगातार नौंवी बार नर्मदा की परिक्रमा पर निकले हैं, वे यात्रा के पड़ाव में इन दिनों नर्मदा किनारे बड़वानी के एक गांव में चातुर्मास कर रहे हैं, जहां ईटीवी भारत ने उनसे बात की और जाना कि आखिर उन्हें कैसे नर्मदा परिक्रमा की प्रेरणा मिली...
9 साल के कर रहे हैं परिक्रमामध्य प्रदेश की एकमात्र जीवनदायिनी नर्मदा नदी जिसे धार्मिक व पौराणिक महत्व तथा आस्था के चलते मां का दर्जा दिया गया है. वैसे तो हिंदू धर्म में नर्मदा की परिक्रमा का अपना एक अलग महत्व है. नर्मदा की परिक्रमा कर लोग खुद को धन्य समझते हैं, किंतु अगर इसे कोई मुस्लिम युवक ताउम्र समर्पित होकर नंगे पांव परिक्रमा का बीड़ा उठाए तो आश्चर्य होना स्वभाविक है. लेकिन खरगोन जिले के नांद्रा गढ़ी गांव के रहने नसीर खान बीते 9 सालों से मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं.
घर, समाज ने नहीं किया विरोधनसीर खान मुस्लिम समुदाए से आने के बाद भी नर्मदा की परिक्रमा कर हर हर नर्मदे कहते हुए लोगों को सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दे रहे हैं. बड़ी बात यह है कि मुस्लिम होकर परिक्रमा करने के बाद भी परिजनों व सामाजिक स्तर पर किसी ने विरोध नहीं किया.
नर्मदा किनारे करते थे बालू भरने का काम
53 वर्षीय नसीर कभी नर्मदा किनारे स्थित बेहगांव खदान पर बालू भरने का काम करता थे, इस दौरान परिक्रमा पर आने वाले साधु संतों व शृद्धालुओं से प्रभावित होकर 2007 में मथुरा में जय गुरुदेव से दीक्षा लिया और वर्ष 2012 में पहली बार नर्मदा की परिक्रमा की. उसी दौरान उन्होंने नर्मदा जल लेकर संकल्प किया कि जीवनभर बिना जूते- चप्पल के नर्मदा परिक्रमा ही करेंगे.
बाढ़ के कारण बढ़ा परिक्रमा मार्ग