बड़वानी। सतपुड़ा की हरी-भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम है. सतपुड़ा पर्वत पर चारों ओर से हरियाली ओढ़े भीलट देव धाम किसी तीर्थ से कम नहीं है. नाग पंचमी पर यहां लाखों श्रद्धालु भीलट देव के दर्शन कर खुद को भाग्यशाली मानते हैं. मंदिर का निर्माण गुलाबी पत्थरों से किया गया. इस मंदिर की वास्तुकला दर्शनीय है. नागपंचमी के दिन करीब 5 से 7 लाख श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.
नागपंचमी पर भीलट देव धाम में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब खासतौर पर निःसंतान दंपतियों के लिए ये मंदिर श्रद्धा का केंद्र है. लोगों का दावा है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है. कुछ लोग इस मंदिर को चमत्कारिक मानते हैं.
भीलट देव धाम का इतिहास
पौराणिक कथाओं के मुताबिक प्राचीन समय में एक किन्नर ने संतान प्राप्ति की मनोकामना कर इन्हें आज़माना चाहा था, तब कुछ समय बाद भिलट देव के आशीर्वाद से किन्नर गर्भवती हो गया था.
इस मंदिर की वास्तुकला दर्शनीय है हरदा जिले के रोल गांव पाटन में जन्मे भिलट देव भगवान शिव के वरद पुत्र माने जाते हैं. उनका जन्म एक गवली परिवार में हुआ था. इसी गांव में रहते थे जागीरदार राणा रेलन और उनकी पत्नी मैदा बाई. संतान नहीं होने से दुखी पति-पत्नी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिसके बाद शिव ने उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दिया, लेकिन उन्होंने दंपति को कहा कि जिस दिन आप मेरी भक्ति करना छोड़ देंगे, उस दिन मैं उस पुत्र को वापस ले लूंगा.विक्रम संवत 1220 में राणा के यहां बाबा भिलट देव का जन्म होता है, लेकिन कुछ साल बाद पति-पत्नी भगवान का स्मरण करना भूल जाते हैं. इस समय भगवान शंकर जोगी का वेश धर रोलन गांव आते हैं और एक वृक्ष के नीचे अपना डेरा जमा कर बैठ जाते हैं. मैदा बाई बाबा भीलटदेव को झोली में सुलाकर मकान के समीप पानी लेने बह रही माचक नदी पर जाती है. इधर भगवान शिव बच्चे को झोली से निकाल कर ले जाते हैं और उस झोली में एक नाग को छोड़ देते हैं. भीलट देव की मां जब पानी लेकर वापस आती है तो झोली खाली देख कर बहुत विलाप करती है और झोली में रखे नाग को निकालती है, तभी उन्हें वचन की याद आती है. वह नाग को सिलट नाम देकर पालती है. सतपुड़़ा की हरी-भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम माना जाता है कि वे आसुरी शक्तियों से लोहा लेने के लिए अवतरित हुए थे. बाबा भीलट देव ने अपनी शक्तियों से जनमानस की सेवा के लिए नांगलवाड़ी गांव और तपस्या के शिखर को चुना. मंदिर संचालकों का कहना है कि वर्षों से चली आ रही पशु बलि को इस स्थान पर प्रतिबंधित कर दिया है. नागलवाडी शिखर धाम पर भीलट देव के दर्शन कर मन्नतधारी यहां नारियल पर उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगते हैं, साथ ही मन्नत पूरी होने पर नारियल पर सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान को नारियल चढ़ाते हैं. निःसंतान दंपतियों के लिए ये मंदिर श्रद्धा का केंद्र है बालक भीलट देव की तंत्र शिक्षा-दीक्षा भगवान शिव और पार्वती की देखरेख में संपन्न होना माना जाता है. तांत्रिक शक्तियों को आजमाने के लिए बाबा भीलट देव अपने साथी भैरव के साथ देशभर में जाकर कई तांत्रिकों ओझाओं को पराजित कर किया था. बाबा भीलट देव का विवाह बंगाल की राजकुमारी राजल के साथ हुआ था. बाद में बाबा तपस्या के लिए पत्नी सहित सतपुड़ा के पर्वत पर चले गए और दिव्य ज्योति में विलीन हो जाते हैं. मान्यता है कि बाबा आज भी एक अलौकिक शक्ति के रूप में सतपुड़ा के पर्वत पर विराजित है.